Friday, 2 July 2021

ड्रोन हमले ने बदल दिया आतंकी युद्ध का स्वरूप

जम्मू में एयरफोर्स स्टेशन पर शनिवार रात हुए ड्रोन अटैक ने यह साफ कर दिया है कि हमारी आर्म्स फोर्सेज को ड्रोन से निपटने के अपने मिशन में तेजी लानी होगी। जिस तरह पिछले दो साल से पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों को हथियार मुहैया कराने के लिए लगातार ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है, उससे सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हो गई थीं। कई फोरम पर इस पर चर्चा भी होती रही कि ड्रोन से किस तरह भविष्य के युद्ध की तस्वीर बदलेगी। इंडियन आर्मी ने इस साल आर्मी डे पर दिखाया कि किस तरह ड्रोन अटैक कर सकते हैं। आर्मी डे परेड के दौरान इसका प्रदर्शन किया गया कि किस तरह ड्रोन बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के दुश्मन के ठिकानों का सटीक निशाना बना सकते हैं। सेनाएं ड्रोन के खतरे से निपटने की तैयारी तो कर रही हैं, लेकिन अभी तैयारी पूरी नहीं है। अभी सरकारी सहित कई फर्म (प्राइवेट) भी एंटी ड्रोन सिस्टम बनाने का काम कर रही हैं। इंडियन नेवी ने दुश्मन के छोटे ड्रोन से निपटने के लिए इजरायल को सीमित संख्या में स्मैश-2000 कम्प्यूटराइज्ड फायर कंट्रोल और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम वाला है। इसे राइफल के ऊपर फिट किया जा सकता है। हथियार पर लगाने के बाद इसकी मदद से छोटे ड्रोन को हवा में मारकर गिराया जा सकता है। डीआरडीओ ने भी दो एंट्री ड्रोन सिस्टम विकसित किए हैं। पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री भाषण दे रहे थे तब सुरक्षा में डीआरडीओ का एंटी ड्रोन सिस्टम भी तैनात था। तब पहली बार आधिकारिक तौर पर इसकी जानकारी दी गई थी। ड्रोन किसी न किसी कम्युनिकेशन सिस्टम से ऑपरेट होता है और उस कम्युनिकेशन को जैम करने से ड्रोन अपने आप नीचे आ जाता है। दूसरा सिस्टम जो लाल किले पर तैनात था वह लेजर बेस्ड डायरेक्टेड एनर्जी वेपन है, जो किसी भी छोटे से छोटे ड्रोन को लेजर बीम के जरिये गिरा सकता है। जम्मू-श्मीर में बीते 30 साल से जारी आतंकी हिंसा का स्वरूप वायुसेना के जम्मू स्थित टेक्निकल एयरपोर्ट पर हुए ड्रोन हमले से पूरी तरह बदल गया है। इसने सभी सुरक्षा एजेंसियों के कड़े बंदोबस्त, एंटी ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस तरह के हमले आतंकी संगठन आईएस ने सबसे पहले इराक में कुर्द लड़ाकों के खिलाफ किए थे। यह अपनी तरह का जम्मू-कश्मीर पर ही नहीं, पूरे देश पर पहला आतंकी हमला है। जम्मू एयरपोर्ट पर ड्रोन हमले से एक बात साबित हो गई है कि जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों ने भी आईएस की तर्ज पर हमले की शुरुआत कर दी है। ड्रोन कोई भी खरीद सकता है। इसे ऑनलाइन भी मंगवाया जा सकता है। यह विस्फोटक के साथ निशाने पर गिरते हुए धमाका कर सकता है। यह खुद भी तबाह होकर एक तरह का आत्मघाती बम की तरह भी काम कर सकता है। बाजार में कई ऐसे इवाडकॉप्टर मिलते हैं, जिन्हें 15 किलोमीटर की दूरी तक रात के अंधेरे में भी उड़ा सकते हैं। इनके जरिये किसी क्षेत्र विशेष के सिग्नल प्राप्त कर सकते हैं। यह किसी निशाने पर सामान गिरा सकते हैं और क्रेश भी नहीं होंगे। इस ड्रोन हमले ने आतंकी हिंसा का स्वरूप ही बदल दिया है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा से करीब 20-25 किलोमीटर दूर स्थित वायुसेना अड्डे पर ड्रोन से हमला हो और उसमें पाकिस्तानी सेना का हाथ न हो, यह कैसे हो सकता है? आतंकियों को इस तरह के ड्रोन और टेक्नोलॉजी पाकिस्तानी सेना ने ही दी है।

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