Friday 23 July 2021

विधायिकी नहीं चाहती कि राजनीति में अपराधियों को रोके

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहाöहमें यकीन है कि विधायिका कभी राजनीति से अपराधीकरण को मुक्त नहीं करेगी। हम आश्वस्त हैं कि निकट भविष्य में नहीं, बल्कि भविष्य में कभी वह ऐसा नहीं करेगी। शीर्ष अदालत ने अफसोस जताया कि किसी भी पार्टी की न तो राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने के लिए कानून बनाने और न ही उन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने में दिलचस्पी है, जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में कोर्ट ने आरोप तय किए हैं। इस मामले में सभी राजनीतिक दलों की विविधता में एकता है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस वीआर गवई की पीठ ने कहाöसरकार की विधायी शाखा कानून लाने पर कोई कदम उठाने में दिलचस्पी नहीं ले रही। अफसोस की बात है कि हम कानून नहीं बना सकते। हम विधायिका से लगातार कहते आ रहे हैं कि जिन उम्मीदवारों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करे। हालांकि अब तक कुछ भी नहीं किया गया, न किसी पार्टी द्वारा कभी कुछ किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने अवमानना के इस मामले में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, लोजपा, माकपा और राकांपा सहित विभिन्न पक्षों के वकीलों को भी सुना। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। दरअसल पीठ वकील ब्रिजेश सिंह द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2020 में बिहार चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का जानबूझ कर पालन नहीं करने का आरोप है। फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी का व्यापक प्रकाशन करने का आदेश दिया था। बता दें कि लोकसभा के 539 सांसदों में से 233 पर केस दर्ज हैं। भाजपा के 39 प्रतिशत, कांग्रेस के 57 प्रतिशत सांसद दागी हैं। जैसा माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिकी कभी भी दागियों के खिलाफ कानून नहीं बनाएगी और सुप्रीम कोर्ट कानून से बंधा हुआ है। यह समस्या हमें तो हल होती नहीं दिखती, क्योंकि हर पार्टी को ऐसे उम्मीदवार चाहिए जो सीट निकाल सकें। भले ही वह आपराधिक पृष्ठभूमि के ही क्यों न हों? चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहाöमामले में दोषी राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह फ्रीज या निलंबित किए जाने चाहिए। जुर्माने की रकम एक रुपए न हो, नहीं तो नेता हंसेंगे। वह फोटो खिंचवाते हुए रकम जमा कर देंगे। उन्हें फर्क नहीं पड़ता। साल्वे ने वकील प्रशांत भूषण के अवमानना में एक रुपए जुर्माने की सजा का हवाला दिया। बसपा और एनसीपी ने कहा कि चुनाव चिन्ह निलंबित करना भारी जुर्माना है। एनसीपी के वकील कपिल सिब्बल ने कहाöएक उम्मीदवार या राज्य इकाई की गलती के कारण पूरे देश में पार्टी का चुनाव चिन्ह निलंबित कर देना उचित नहीं होगा। एक तंत्र विकसित करना चाहिए। इससे पहले राजनीतिक दलों की बात सुनी जाए।

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