Tuesday 13 July 2021
देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड
दिल्ली हाई कोर्ट ने देश में एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) कानून को लेकर बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि देश में एक ऐसी संहिता की जरूरत है जो सभी के लिए समान हो। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा है। फैसले के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा सिंह ने अपने फैसले से केंद्रीय न्याय मंत्रालय को अवगत कराए जाने का निर्देश दिया जिससे वह इस मुद्दे पर उचित कदम उठाए। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र करते हुए जस्टिस सिंह ने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने 1985 में निर्देश दिया था कि इस मामले को उचित कदम उठाने के लिए कानून मंत्रालय के सामने रखा जाए। हालांकि तब से अब तक तीन दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है और यह साफ नहीं हुआ है कि इस बारे में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने कहाöसमय आ गया है कि संविधान की धारा 44 के आलोक में समान नागरिक संहिता की तरफ कदम बढ़ाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर आर्टिकल 44 के तहत यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत को दोहराया है। मौजूदा ऐसे मामले बार-बार ऐसी संहिता की जरूरत को उजागर करते हैं जो सभी के लिए समान हो। जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि पहलुओं पर समान सिद्धांतों को लागू करने में मदद करते हों। बता दें कि आर्टिकल 36 से 57 के जरिये राज्य को सुझाव दिए गए हैं। उम्मीद की गई है कि राज्य अपनी नीतियां तय करते हुए इनको ध्यान में रखेंगे। इन्हीं में आर्टिकल 44 राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है। कुल मिलाकर आर्टिकल 44 का उद्देश्य कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या को खत्म करके देशभर में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बढ़ाना है। क्या है कॉमन सिविल कोड? अभी देशभर में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। इसके हिसाब से उनकी शादी, तलाक, गुजारा-भत्ता, गोद लेने की प्रक्रिया, विरासत संबंधित अधिकार आदि तय होते हैं। कॉमन सिविल कोड के लागू होने पर सबके लिए एक ही कानून होगा। इसके लिए क्यों उठ रही है मांग? मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह की छूट है। अन्य धर्मों में एक पति-पत्नी का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। हिन्दू-ईसाई, पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है। भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसलिए कई लोग दूसरा विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र एवं एकीकृत कानून मिल सकेगा। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमेबाजी में उलझना पड़ता है। अभी शादी की उम्र अलग-अलग धर्म में अलग-अलग है। कानून बनाने के बाद वह एक समान हो जाएगी। 1980 में बहुचर्चित मिनर्वा क्रिहस केस में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मामला उठा था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मौलिक अधिकार, नीति-निर्देशक सिद्धांत के बीच सौहार्द और संतुलन संविधान का महत्वपूर्ण आधारभूत सिद्धांत है। 1985 में शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अत्याधिक दुख का विषय है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 मृत अक्षर बनकर रह गया है।
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