Monday, 31 May 2021

किसानों को विरोध प्रदर्शन करते हुए छह महीने हो गए

तीन कृषि कानून के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। सिंघु बॉर्डर पर किसानों को विरोध प्रदर्शन करते हुए छह महीने से ऊपर हो गए हैं। शुक्रवार को प्रदर्शन का 183वां दिन था। किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वह प्रदर्शन को और मजबूत करेंगे। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से शुक्रवार को बयान जारी कर कहा गया कि वह दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन को छह महीने पूरे कर चुके हैं। आंदोलन को देखते हुए हमने सिंघु बॉर्डर पर पहले पानी लंगर और रहने की पूरी सुविधा थी। अब यहां पर सैकड़ों किलो दूध की सेवा रोज हो रही है, साथ ही अन्य सामाजिक संस्था के संगठनों ने भी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लिए रहने, खाने, मेडिकल और अन्य जरूरी सेवाओं का इंतजाम किए हुए हैं। यह आंदोलन एक लंबी लड़ाई है। केंद्र सरकार इन कानूनों को वापस न लेते हुए, किसानों को अन्य मुद्दों में उलझा कर उनके सब्र की परीक्षा ले रही है परन्तु किसानों के लगातार जोश ने सरकार को मजबूर किया हुआ है। आने वाले समय में यह लड़ाई और मजबूत होगी। लगता है कि सरकार ने किसानों की फिक्र को प्रधानमंत्री किसान सहायता राशि तक सीमित मान लिया है और आंदोलनरत किसानों को चन्द सिरफिरे लोगों का आंदोलन मानकर उनकी फिक्र करना छोड़ दिया है। दोनों तरफ जिद सवार हैं। किसानों का कहना है कि सरकार तीनों कानून वापस ले तो वह लौट जाएंगे जबकि सरकार का कहना है कि किसान तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग छोड़ दें तो कृषि कानूनों में कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। किसान नेताओं का कहना है कि हम भी अपने घर जाना चाहते हैं। लेकिन जब कोरोना की पहली लहर में भी सरकार ने हमारी नहीं सुनी तो अब कोरोना की दूसरी लहर से किसे डरा रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार ने किसानों को पुतले पूंकने पर मजबूर किया है। सरकार को पहले तय करना होगा कि कोरोना महामारी बड़ी है या तीन कृषि कानून? यदि बीमारी बड़ी है तो सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करके किसानों की घर वापसी का मार्ग क्यों नहीं खोलती? टिकैत ने तल्ख स्वर में चेताया कि सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही तो किसान अगले आम चुनाव यानि 2024 तक सीमाओं पर डटे रहेंगे। लंबी चुप्पी के बाद दिल्ली की सीमाओं पर फिर आंदोलन की गूंज सुनाई दी है। इससे लगता है कि किसान खेतों से अपने जरूरी काम निपटा कर लौटने लगे हैं। जब अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टर नकारात्मक परिणाम दे रहे हों तो ऐसे में किसानों की बात गौर से सुनी जानी चाहिए और इस मामले को निपटा देना चाहिए।

भीख मांगें, चोरी करें या उधार लें वेतन भुगतान करें

हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद निगम कर्मचारियों व अवकाश-प्राप्त कर्मचारियों को पेंशन व बकाया राशि का भुगतान न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने उत्तरी एमसीडी के आयुक्त को भी तलब किया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ ने कहाöआप भीख मांगें, उधार लें या चोरी करें लेकिन आपको कर्मचारियों की राशि का भुगतान करना ही होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि अगली तारीख तक पांच अप्रैल के आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो उत्तरी एमसीडी आयुक्त संजय गोयल सुनवाई में मौजूद रहेंगे। अदालत ने यह निर्देश अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षामित्र संघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची के अधिवक्ता रंजीत शर्मा ने अदालत को बताया कि न्यायिक आदेशों के बावजूद सेवानिवृत कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान नहीं किया गया। उन्होंने उत्तरी निगम के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की मांग की। अदालत ने उत्तरी एमसीडी के इस मामले में नोटिस जारी कर दो दिन में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। उत्तरी एमसीडी की ओर से पेश अधिवक्ता दिव्य प्रकाश पांडे ने कहा कि वह वेतन मामलों में रिपोर्ट दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने वेतन और पेंशन के लिए पैसे वितरित करने की कोशिश की है। अप्रैल तक वेतन का भुगतान कर दिया गया है। खंडपीठ ने उनके तर्प को खारिज करते हुए कहाöहम इस बारे में चिंतित नहीं हैं। आप भीख मांगते हैं, उधार लेते हैं या चोरी करते हैं लेकिन राशि का भुगतान करना होगा।

अनलॉक पर निर्माण कैसे शुरू होगा बड़ी चुनौती है

दिल्ली सरकार ने 31 मई से भले ही निर्माण गतिविधियों को अनलॉक करने की घोषणा कर दी। मगर बड़ा सवाल यह है कि काम कैसे शुरू होगा? जब अधिकतर कामगार शहर छोड़कर जा चुके हैं। उनके लौटने में कई माह लग जाएंगे। ऐसे में काम तेजी पकड़ पाएगा, इस तरह के हालात नजर नहीं आ रहे हैं। दिल्ली में 14 अप्रैल की रात से लगे लॉकडाउन में अब दो मामलों में छूट देने की दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की, जिसके तहत औद्योगिक क्षेत्रों के अलावा निर्माण गतिविधियां भी शामिल हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली सरकार की तरफ से इस बार लगाए गए लॉकडाउन में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया था। लोक निर्माण विभाग ने अपने अभियंताओं को निर्देश दिए थे कि जिसके भी पास श्रमिक व निर्माण संबंधित सामग्री व अन्य साधन उपलब्ध हैं वह काम जारी रखें, जिसके चलते जिस भी निर्माण स्थल पर श्रमिक उपलब्ध थे वहां पर कुछ समय तक काम भी जारी रहा। वैसे अधिकतर श्रमिक अपने गांव जा चुके हैं। दिल्ली परिवहन विभाग की एक रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन के दौरान आठ लाख से अधिक लोग दिल्ली छोड़कर चले गए। इनमें बड़ी संख्या में निर्माण श्रमिक थे। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के श्रमिक अधिक थे। आज स्थिति यह है कि दिल्ली के किसी भी निर्माण स्थल पर पहले की तुलना में चार से लेकर आठ प्रतिशत श्रमिक ही रह गए हैं। ऐसे में दिल्ली में ढांचागत विकास की निर्माणाधीन परियोजनाओं पर काम जारी रखना बहुत मुश्किल भरा काम है। लोक निर्माण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि कुछ निर्माण स्थलों पर इक्का-दुक्का श्रमिक मौजूद हैं। लॉकडाउन के दौरान धीरे-धीरे श्रमिक अपने गांव जा चुके हैं। अब जब श्रमिक वापस लौटेंगे तभी काम शुरू हो सकेगा। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 29 May 2021

चिंता का मुद्दा ः वॉट्सएप व केंद्र आमने-सामने

फेसबुक के स्वामित्व वाले वॉट्सएप ने नए सोशल मीडिया मध्यवर्ती नियमों पर सरकार के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है, जिसके तहत संदेश सेवाओं के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि किसी संदेश की शुरुआत किसने की। वॉट्सएप के एक प्रवक्ता ने पुष्टि की कि कंपनी ने हाल ही में लागू किए गए सूचना तकनीक (आईटी) नियमों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। वॉट्सएप कंपनी ने यह कदम ऐसे वक्त उठाया है, जब नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 के जरिये सोशल मीडिया कंपनियों को अधिक से अधिक जवाबदेही और जिम्मेदार बनाने की कवायद चल रही है। वॉट्सएप के प्रवक्ता ने कहा कि मैसेजिंग एप के लिए चैट पर निगाह रखने की आवश्यकता, उन्हें वॉट्सएप पर भेजे गए हर एक संदेश का फिगरप्रिंट रखने के लिए कहने के बराबर है। प्रवक्ता ने कहा कि यह एंड-ई-एंड एक्रिप्शन को तोड़ देगा और लोगों की निजता के अधिकार को कमजोर करेगा। प्रवक्ता ने कहाöहम दुनियाभर में लगातार नागरिक समाज और विशेषज्ञों के साथ उन अनिवार्यताओं का विरोध कर रहे हैं। जो हमारे उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उल्लंघन करेंगे। इस नए नियम के तहत ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सएप जैसे बड़े सोशल मीडिया मंचों को अतिरिक्त उपाय करने की जरूरत होगी। वहीं सरकार ने नए डिजिटल नियमों का मंजूरी के साथ बचाव करते हुए बुधवार को कहा कि वह निजता के अधिकार का सम्मान करती है और वॉट्सएप जैसे संदेश मंचों को नए आईटी नियमों के तहत चिन्हित संदेशों के मूल स्रोत की जानकारी देने को कहना निजता का उल्लंघन नहीं है। इसके साथ सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों से इस बारे में अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि भारत ने जिन भी उपायों का प्रस्ताव किया है उससे वॉट्सएप का सामान्य कामकाज प्रभावित नहीं होगा। साथ ही इससे आम प्रयोगकर्ता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बयान में कहा कि देश की संप्रभुत्ता या सार्वजनिक व्यवस्थता से जुड़े बेहद गंभीर अपराध वाले संदेशों को रोकने या उसकी जांच के लिए ही उनके मूल स्रोत की जानकारी मांगने की जरूरत नए आईटी नियम के तहत है। नए नियमों की घोषणा 25 फरवरी को की गई थी। इस नए नियम के तहत ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सएप जैसी बड़ी सोशल मीडिया मंचों को अतिरिक्त उपाय करने की जरूरत होगी। इसमें मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और भारत स्थित शिकायत अधिकारी की नियुक्ति आदि शामिल हैं। नियमों का पालन न करने पर इन सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी मध्यस्थ स्थिति को खोना पड़ सकता है। यह स्थिति उन्हें किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी और उनके द्वारा होस्ट किए गए डाटा के लिए दायित्वों से छूट और सुरक्षा प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में इसका दर्जा समाप्त होने के बाद उन पर कार्रवाई की जा सकती है। रविशंकर प्रसाद ने कहाöब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड में सोशल मीडिया कंपनियों को अपने कामकाज में कानूनी हस्तक्षेप की अनुमति देनी पड़ती है। भारत की मांग अन्य देशों की तरफ से मांगी जाने वाली जानकारी बेहद कम है। दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न सामग्री या बाल शोषण सामग्री से जुड़ा संदेश होने पर भी उसके मूल स्रोत की जानकारी की जरूरत होगी। कोई मूल अधिकार पूर्ण नहीं स्थापित न्यायिक कथन के तहत निजता का अधिकार सहित कोई भी मूल अधिकार पूर्ण नहीं है, यह तार्किक सीमाओं से संबंधित है। संदेश को सबसे पहले जारी करने वाले या लेखक से जुड़े दिशानिर्देश की जरूरत ऐसे ही तार्किक सीमा का उदाहरण है।

नारद केस ः सुप्रीम कोर्ट के सवालों में उलझी सीबीआई

नारद चिट फंड मामले में सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को नजरबंद करने की अनुमति देने वाले कोलकता हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका वापस ले ली। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को याचिका वापस लेने का सुझाव दिया। मामले को बंगाल से बाहर स्थानांतरित करने की मांग भी की गई थी। जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सबसे पहले देखना चाहिए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीबीआई की गिरफ्तारी के विरोध में मुख्यमंत्री के धरना-प्रदर्शन जैसे अन्य मुद्दों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम मामले को राज्य से बाहर स्थानांतरित नहीं करेंगे। इससे हाई कोर्ट हतोत्साहित होगा। इससे पहले बहस शुरू करते हुए मेहता ने कहाöसीबीआई को रोकने के लिए योजना बनाकर प्रयास किया गया। जस्टिस गवई ने पूछा कि क्या हाई कोर्ट का 17 मई का आदेश जिसमें जमानत पर रोक लगी थी, उसमें नोटिस जारी कर आदेश पारित किया गया था। एसजी ने बताया कि असाधारण हालात में स्थगन आदेश दिया था, क्योंकि सीएम और मंत्री धरने पर थे। पत्थरबाजी हो रही थी।

कोरोना की उत्पत्ति को लेकर फिर संदेह के घेरे में चीन

कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर शक की सूई एक बार फिर चीनी प्रयोगशाला बुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पर आ टिकी है। अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया के सामने कोरोना महामारी उजागर होने के एक माह पहले ही इस प्रयोगशाला के तीन कर्मचारी न सिर्फ बीमार पड़े थे, बल्कि उन्होंने अस्पताल में इलाज भी करवाया था। वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में प्रयोगशाला के बीमारी शोधकर्ताओं की संख्या, उनके बीमार पड़ने के समय और अस्पताल जाने से जुड़ी विस्तृत जानकारियां दी गई हैं। खास बात यह है कि यह अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की कोरोना उत्पत्ति पर अगले चरण की जांच संबंधी चर्चा को लेकर होने वाली बैठक के ठीक पहले आई है। इसके चलते माना जा रहा है कि डब्ल्यूएचओ के लिए इसे नजरंदाज करना आसान नहीं होगा। खुफिया रिपोर्ट को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की प्रवक्ता ने कहा कि बिडेन प्रशासन कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों समेत चीन में इसकी उत्पत्ति को लेकर गंभीर सवाल उठाता रहा है। अखबार के मुताबिक कई मौजूदा और पूर्व खुफिया अधिकारियों ने प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं को लेकर अपना मत जाहिर करते हुए वायरस उत्पत्ति पर गहन जांच और अतिरिक्त सहयोग की जरूरत बताई है। हालांकि रिपोर्ट को लेकर वाशिंगटन में चीनी दूतावास ने अभी कोई टिप्पणी नहीं की है। अमेरिकी वायरस विशेषज्ञ और राष्ट्रपति जो बिडेन के शीर्ष स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. एंथोनी फॉसी ने कहा है कि कोरोना एक प्राकृतिक बीमारी है। यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। एक साक्षात्कार में जब उनसे पूछा गया कि क्या यह वायरस प्राकृतिक है तो उन्होंने कहा कि मैं इस पर भरोसा नहीं करूंगा। उन्होंने कहाöइसकी जांच जरूरी है कि चीन की लैब में इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? -अनिल नरेन्द्र

Friday, 28 May 2021

नए सीबीआई चीफ सुबोध कुमार जायसवाल

सरकार के पसंदीदा अफसर होने के बावजूद राकेश अस्थाना और वीएसके कौमुदी को सीबीआई निदेशक बनने की होड़ से महज एक नियम के कारण बाहर होना पड़ा। दरअसल निदेशक पद के लिए ऐसे अधिकारियों के नाम पर विचार नहीं करने का नियम है, जिनका सेवाकाल छह महीने से कम बचा हो। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण नए सीबीआई निदेशक के लिए 90 मिनट लंबी बैठक में लगातार इस नियम के पालन पर जोर देते रहे। इसके चलते सरकार को अपने चहेते अफसरों को नजरंदाज कर सुबोध जायसवाल को नया निदेशक घोषित करना पड़ा। फिलहाल सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक की जिम्मेदारी संभाल रहे अस्थाना 31 जुलाई और नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (आईएनए) के प्रमुख वीएसके कौमुदी 31 मई को सेवानिवृत हो रहे हैं। दोनों ही गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं और 1984, 85, 86 और 87 बैच के विचाराधीन 100 अधिकारियों में सबसे वरिष्ठ हैं। वरिष्ठ सरकारी सूत्रों के मुताबिकöछह महीने की मियाद वाले नियम को इससे पहले तवज्जों नहीं दी गई थी। मगर इस बार भी इस नियम को नजरंदाज कर दोनों में से किसी को निदेशक बनाया जाता तो दो साल की निश्चित अवधि वाले अन्य नियम के चलते सेवा 2024 तक चालू रहती। लोकपाल कानून के मुताबिक सीबीआई निदेशक के चुनाव के लिए गठित पैनल में पीएम, चीफ जस्टिस और विपक्षी दल के नेता होते हैं। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी इस नियम को मानने पर सीजेआई का समर्थन किया। आखिर में इन दोनों को सूची से हटाकर समिति के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल, राजेश चन्द्रा और वीएसके कौमुदी के नाम पर ही विचार हुआ, जिसमें जायसवाल को नया निदेशक बनाने पर मुहर लग गई। -अनिल नरेन्द्र

कोरोना से मौत : मुआवजे का रुख स्पष्ट करे केंद्र

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपए अनुग्रह राशि दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से सोमवार को जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि घातक वायरस से मरने वालों को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक नीति अपनाई जाए। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने केंद्र को कोविड-19 से मरने वाले लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आईसीएमआर के दिशानिर्देशों की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि इसके लिए समान नीति अपनाई जाए। शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में केंद्र तथा राज्यों को 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के चार लाख रुपए अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने कहा कि जब तक कोई आधिकारिक दस्तावेज या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति नहीं होगी, जिसमें कहा गया हो कि मृत्यु का कारण कोविड था, तब तक मृतक के परिवार वाले किसी भी योजना के तहत अगर ऐसी कोई है, मुआवजे का दावा नहीं कर पाएंगे। पीठ ने कहाöकोविड-19 से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को यदि कोई मुआवजा दिए जाने की व्यवस्था होती है तो ऐसे में इन लोगों को दर-दर भटकना पड़ेगा। यह परिवार के लिए उचित नहीं है क्योंकि मौत का कारण अकसर अलग बताया जाता है जबकि मौत वास्तव में कोविड के कारण हुई होती है। पीठ ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश देते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिए 11 जून की तारीख तय की।

रामदेव पर एक हजार करोड़ का मानहानि का दावा

एलोपैथी को लेकर दिए गए बयान से नाराज आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) उत्तराखंड ने योगगुरु रामदेव को मानहानि का नोटिस भेज दिया है। 15 दिन के भीतर क्षमा न मांगने और बयान को सोशल मीडिया प्लेटफार्म से न हटाने पर उनके खिलाफ एक हजार करोड़ रुपए का मानहानि का दावा ठोकने की चेतावनी भी दी गई है। आईएमए उत्तराखंड के सचिव डॉ. अजय खन्ना की ओर से मंगलवार को भेजे गए छह पेज के नोटिस में कहा गया है कि रामदेव के बयान से आईएमए उत्तराखंड से जुड़े दो हजार सदस्यों की मानहानि हुई है। एक सदस्य (डॉक्टर) की 50 लाख रुपए की मानहानि के अनुसार कुल एक हजार करोड़ रुपए की मानहानि का दावा किया जाएगा। रामदेव ने एलोपैथी डॉक्टरों की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है। ऐसे में उनके खिलाफ मानहानि के दावे के साथ एफआईआर कराई जाएगी। आयुर्वेद में है रिसर्च बेस्ट दवाएं ः रामदेव। मंगलवार सुबह हरिद्वार पतंजलि के एक लाइव योग शिविर में रामदेव ने कहा कि पोल खोलना उनका मकसद नहीं है। जो 25 सवाल उन्होंने सामने रखे हैं उनका जवाब वह 10 मिनट में दे सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि आयुर्वेद में रिसर्च बेस्ट दवाएं हैं। योग और आयुर्वेद से कई बीमारियों का जड़ से समाधान संभव है। जो एलोपैथी में नहीं है। बाबा ने कहा कि देश में ऐसे डॉक्टर भी हैं जो अपने पर्चे पर योग की सलाह देते हैं। लेकिन कुछ ऐसे डॉक्टर भी हैं जो मानसिक तनाव में रहते हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टर फार्मा कंपनियों के गुलाम नहीं हैं। वह आयुर्वेद दवाएं भी लिख सकते हैं। बाबा ने कहा कि वह जल्द पतजंलि में डॉक्टरों का एक शिविर लगाएंगे। आचार्य बालकृष्ण ने ट्वीट कियाöधर्मांतरण के षड्यंत्र के तहत रामदेव को टारगेट कर योग एवं आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है। देशवासी अब भी नींद से नहीं जागेंगे तो आने वाली पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी। हमारा मानना है कि बाबा रामदेव को ऐसे समय जब कोरोना महामारी चरम पर है, डॉक्टरों पर किसी प्रकार का हमला करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि बिल्कुल अनावश्यक है। बेशक बाबा अपनी आयुर्वेद दवाओं से बहुत से रोग ठीक कर सकते हैं। पर एलोपैथी को यूं कंडम करना सरासर गलत है। अगर बाबा सभी रोग आयुर्वेद की पतंजलि की दवाओं से ठीक कर सकते थे तो आचार्य बालकृष्ण का क्यों इलाज खुद नहीं किया? रहा सवाल योग का तो यह तो हजारों सालों से भारतीय पद्धति में है।

Thursday, 27 May 2021

गिरफ्तारी के बाद भी सुशील की कम नहीं मुश्किलें

बीजिंग और लंदन में तिरंगा लहराते हुए विश्व चैंपियन की तस्वीरों की जगह आज तौलिए में मुंह छिपाए सुशील कुमार ने ले ली है। लंदन ओलंपिक का पहलवान अब सलाखों के के पीछे है। नजफगढ़ के बापरौला गांव में जब सुशील कुमार का जन्म हुआ तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि वह दो ओलंपिक पदक और विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर देगा। हालांकि चार मई तक यह भी किसी ने सोचा नहीं था कि कभी युवाओं का रोल मॉडल रहा यह पहलवान प्रशंसकों से मुंह छिपाता हुआ गिरफ्तार होगा। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के हत्थे चढ़े सुशील कुमार की मुसीबत गिरफ्तार होने के बाद और बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि रविवार को गिरफ्तार होने के बाद जिस तरह उसे बुलेट प्रूफ गाड़ी में और पुलिस के खास सुरक्षा दस्ता सवार टीम के सुरक्षा घेरे में उसे साकेत कोर्ट में पेश किया गया। उससे इस कयास को भी बल मिलने लगा है कि सुशील पहलवान की जान को अब सागर हत्याकांड मामले में गैंगस्टर से खतरा है। यह खतरा दिल्ली-एनसीआर में अभी सबसे ज्यादा सक्रीय लारेंस बिश्नोई-काला जठेड़ी गिरोह से है। यह खतरा न केवल बाहर बल्कि जेल के अंदर भी है। इस बात का जिक्र सुशील पहलवान के वकील ने जमानत याचिका में भी किया है। साथी पहलवान सागर की हत्या में आरोपी दो बार के ओलंपिक विजेता सुशील कुमार एक खिलाड़ी नहीं हैं बल्कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी, छत्रसाल स्टेडियम के ओएसडी और पहलवानों को तैयार करने का जिम्मा संभालने वाले मशहूर कोच भी हैं। दरअसल, सागर की हत्या कांड में जिस सोनू को उसने पीटा था वह लारेंस बिश्नोई का रिश्तेदार बताया जा रहा है। चार मई की देर रात छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों के दो गुटों के मामूली झगड़े में सुशील पहलवान के गुट ने दूसरे तीन पहलवानों सागर धनखड़, सोनू महल और अमित को जमकर पीटा और फिर सागर ने अस्पताल में दम तोड़ दिया उसमें घायल सोनू पहलवान ने सबसे पहले सुशील कुमार का नाम लेकर बताया कि मारपीट में वह भी शामिल था। मारपीट के दौरान घायल सोनू की पिटाई से लारेंस बिश्नोई-काला जठेड़ी नाराज हैं। यही वजह है कि सुशील पहलवान की जान को इस गिरोह से खतरा माना जा रहा हैं। लारेंस बिश्नोई जहां जोधपुर जेल में बंद है वहीं काला जठेड़ी थाईलैंड से गिरोह को चला रहा है। इससे पहले भी कई मामलों में सुशील कुमार का नाम सामने आता रहा है। मगर किसी हत्या में संगीन मामले में उसका नाम पहली बार आया है। इस हत्या की भी कोई खास वजह अब तक सामने नहीं आ पाई है। कोई मॉडल टाउन की संपत्ति को हत्या की वजह बता रहा है तो कोई सुशील का अपना वर्चस्व और रौब बनाए रखने के लिए जमकर पिटाई करना बताया जा रहा है। यह बात भी कही जा रही है कि सागर धनखड़ को बुरी तरह पीटकर सभी पहलवानों को यह संदेश देना चाहता था कि छत्रसाल स्टेडियम में उसी की बादशाहत है। इसी को ध्यान में रखकर मारपीट का वीडियो भी बनवाया था। पुलिस की पूछताछ में सुशील के साथी पहले ही बता चुके हैं कि जब पहलवान सागर धनखड़ को मिलकर लोगों ने मारना शुरू किया था उससे पहले ही सभी को कह दिया गया था कि कोई सीने और सिर पर नहीं मारेगा, मारते हुए इसका ध्यान रखना है। मगर रात के अंधेरे में किसी ने सागर के सिर पर लोहे की रॉड या लकड़ी के डंडे से तेजी से मार दिया जिससे उसका सिर फट गया और अस्पताल में उसे मृत घोषित कर fिदया गया।

टोक्यो ओलंपिक पर महामारी की काली छाया

टोक्यो ओलंपिक 67 दिन दूर है और महामारी की वजह से खेलों को रद्द करने की मांग दिन व दिन तेज होती जा रही है। जापान की 70 प्रतिशत आबादी नहीं चाहती कि ओलंपिक हो। लेकिन इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (आईओसी) इस पर अडिग है कि गेम्स होगी। आईओसी प्रमुख थॉमस वाक ने शनिवार को कहा कि इन खेलों का आयोजन अपने तय समय पर ही होगा। उन्होंने कहा कि ओलंपिक सपनों को पूरा करने के लिए सबको कुछ त्याग करना होगा। वाक ने कहा कि भूतपूर्व स्वास्थ्य संकट के कारण 2020 में एक साल के लिए स्थगित हुए इस ओलंपिक के आयोजन से यह संदेश जाएगा कि सुरंग में आखिर में अब भी प्रकाश है। वाक ने ऑनलाइन तरीके से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हॉकी संघ के 47वें कांग्रेस में अपने संबोधन के दौरान यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि टोक्यो ओलंपिक के शुरू होने में काफी समय बचा है। उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इस कठिन समय के दौरान हमें जुझारूपन, विविधता में एकता का एक मजबूत संदेश भेजने की जरूरत है। टोक्यो हमें सुरंग के आखिर में रोशनी दिखाएगी। वाक की टिप्पणी से पहले आईओसी के अध्यक्ष जॉन कांटेस ने भी कहा कि महामारी के कारण शहर में आपात काल लागू होने के बाद भी टोक्यो खेलों का आयोजन होगा। आईओसी का यह रुख कोविड से प्रभावित दुनिया में खेलों की मेजबानी की चुनौतियों को स्वीकार करता है। जापान के ज्यादातर नागरिक खेलों की मेजबानी के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि महामारी के दौर में इससे देश की चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर और दबाव पड़ने की संभावना है लेकिन आईओसी अपने फैसले पर अडिग है। वाक ने कहा कि हम सभी के लिए सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। हमें जापान के अपने सहयोगियों के साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे एथलीट एक साथ आएं और सुरक्षित वातावरण में प्रतिस्पर्धा करें, 70 प्रतिशत से अधिक एथलीटों और अधिकारियों को पहले ही टीका लगाया जा चुका है और यह संख्या आगे बढ़ेगी हमें तीन वैक्सीन उत्पादकों के भी प्रस्ताव मिले हैं।

कागजों में घटती महंगाई

बीते अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई के आंकड़ों में कमी आई है, लेकिन रसोई में घुस चुकी महंगाई फिलहाल जाने वाली नहीं है। जनवरी से अब तक के आंकड़े देखें तो सब्जियों और चावल के अलावा सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं। इसमें भी खाद्य तेल और दालें विशेष रूप से महंगी हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कीमतों में फिलहाल अभी कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जनवरी में सरसों के तेल के दाम थोक में 120 से 125 रुपए प्रति किलो थे, जो अब बढ़कर 150 रुपए तक पहुंच गए है। थोक में इनके 200 रुपए प्रति किलो तक वसूले जा रहे है। सोयाबीन रिफाइंड के थोक भाव भी जनवरी में 120 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर अब 145 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं। रिटेल में कीमत और भी ज्यादा हैं। इसी तरह मूंग के अलावा सभी प्रकार की दालों की कीमतों में भी चार महीनों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रबी में गेहूं की आवक होती है इसके बावजूद जनवरी की तुलना में मई में आटे के भाव बढ़ गए हैं। रसोई गैस के दामों में भी बढ़ोतरी हुई है। कमेडिटीट एडवाइजरी फर्म केडिया के डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं, जब भी महामारी का दौर आता है एसी एग्रो प्रोडक्ट के दाम बढ़ते हैं। सरसों, सोयाबीन आदि के आवक के सीजन में भी कम करने के बजाए बढ़ गए हैं। ऐसे में फिलहाल खाद्य तेलों की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं हैं। दालों में भी ऐसा ही है। आयात छूट से भी ज्यादा राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि ज्यादातर देशों से शिपिंग समेत लागत अधिक है। अभी तंजानिया से दाल आ रही है, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक सप्लाई चेन बिगड़ने से भी कीमतों को हवा मिल रही है। इसके अलावा, लॉकडाउन के डर से लोगों द्वारा भंडार बनाने की कोशिश से भी दाम बड़े हैं। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 26 May 2021

टूलकिट मामले पर सियासी घमासान

भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह और उसके नेता एक टूलकिट के जरिये देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लगातार धूमिल करने में जुटे हुए हैं। पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि कोरोना काल में कांग्रेस सुनियोजित तरीके से देश और सरकार के खिलाफ लगातार अभियान चला रही है। संबित पात्रा ने कांग्रेस पर निशाना साधा। साथ ही दावा किया कि महामारी के समय में भी कांग्रेस टूलकिट के जरिये प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करने की कोशिश से बाज नहीं आ रही है। पात्रा ने ट्वीट के जरिये एक टूलकिट भी शेयर किया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी टूलकिट को लेकर ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस समाज बांटने और जहर उगलने में माहिर है। यह बहुत ही दुखद है और देश को पूरे विश्व में अपमानित और बदनाम करने की चेष्ठा है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि अब वह दस्तावेज उनके हाथ आया है, जिसके सहारे राहुल गांधी रोज सुबह उठकर ट्वीट करते थे। उन्होंने दावा किया। इस टूलकिट में कहा गया है कि मोदी को बार-बार पत्र लिखे। आपने देखा होगा, कभी सोनिया जी चिट्ठी लिख रही हैं, कभी कोई लिख रहा है। यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। सब कुछ एक डिजाइन के तहत हो रहा है जिसका ब्यौरा टूलकिट में है। पात्रा ने दावा किया कि इस टूलकिट के जरिये पीएम केयर्स के वेंटिलेटर्स पर सवाल उठाना और सेंट्रल विस्टा परियोजना को मोदी के निजी घर और महल के रूप में प्रचारित करने का जिक्र किया गया है। वहीं कांग्रेस ने आरोप लगया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना संकट से निपटने में नाकाम रहे हैं, इसलिए प्रधानमंत्री की छवि को बचाने के लिए भाजपा ने फर्जी टूलकिट तैयार की है। पार्टी ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, वरिष्ठ नेता बीएल संतोष, स्मृति ईरानी और संबित पात्रा के खिलाफ जालसाजी की शिकायत दर्ज कराई है। पार्टी का कहना है कि पुलिस ने शिकायत पर केस दर्ज कर कार्रवाई नहीं की तो पार्टी कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। इस मुद्दे पर पवन खेड़ा ने दावा किया कि यह फर्जी टूलकिट भाजपा ने तैयार किया है। ताकि कोरोना से निपटने में नाकामी से मोदी की गंवाई छवि को बचाया जा सके। पार्टी ऐसे हथकंडों से डरने वाली नहीं है। पार्टी सरकार से सवाल पूछती रहेगी। पार्टी के सोशल मीडिया विभाग के प्रमुख रोहन गुप्ता ने कहाöकांग्रेस प्रमुख सोशल मीडिया मंचों के प्रबंधकों को पत्र लिख झूठ फैलाने वाले भाजपा नेताओं के सोशल एकाउंट खत्म करने का भी आग्रह करेगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी इस मुद्दे पर भाजपा को घेरते हुए कहा कि भाजपा ने जैसे ही टूलकिट का फर्जीवाड़ा किया, सारे भक्त अपने काम में लग गए। लेकिन इन कुकृत्यों से सच्चाई छिप नहीं पाएगी। पार्टी के कई दूसरे नेताओं ने भी इस मुद्दे पर भाजपा पर फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाते हुए निशाना साधा। दरअसल भाजपा ने एक टूलकिट का हवाला देते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कोरोना संक्रमण के समय जब पूरा देश महामारी से लड़ रहा है तो कांग्रेस ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए भारत को पूरे विश्व में अपमानित और बदनाम करने की कोशिश की है।

निजी प्रयोग को आयातित कंसंट्रेटर पर कर असंवैधानिक

विदेश से उपहार में निजी प्रयोग के लिए मिले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के आयात पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) लगाए जाने को दिल्ली हाई कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर एवं न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ ने इस संबंध में एक मई को जारी केंद्र की अधिसूचना को रद्द कर दिया। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि जो भी व्यक्ति निजी प्रयोग के लिए उपहार के तौर पर विदेश से चिकित्सा उपकरण मंगाएगा, उसे संबंधित विभाग को लिखित जानकारी देनी होगी। अदालत ने यह फैसला 85 वर्षीय बुजुर्ग गुरुचरण सिंह की चुनौती याचिका पर सुनाया। गुरुशरण सिंह ने वरिष्ठ वकील सुधीर नंदराजोग के माध्यम से दायर याचिका में कहा था कि उनके भतीजे ने अमेरिका से उनके निजी इस्तेमाल के लिए एक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भेजा है, जिस पर 12 प्रतिशत जीएसटी वसूला जा रहा है। उन्होंने पीठ को बताया कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय की तरफ से निजी उपयोग के आयातित चिकित्सा उपकरणों पर कर लगाना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि वित्त मंत्रालय दान देने के लिए मंगाए गए ऐसे उपकरणों को आईजीएसटी से छूट दे रहा है, जो भेदभावपूर्ण है। लिहाजा एक मई को जारी अधिसूचना को रद्द किया जाए।

पेटेंट हटे तो दुनिया को मिले सस्ता-सुलभ टीका

अमेरिका ने कोरोना महामारी को देखते हुए कोरोना वैक्सीन से पेटेंट हटाने को लेकर अपनी सहमति जताई है। इसके साथ ही दुनिया में वैक्सीन की कमी से जल्द राहत मिलने की उम्मीद जगी है। इसके साथ ही यह भी तय है कि अगर पेटेंट हटा तो दुनियाभर में टीके की कमी दूर हो जाएगी और इसके दामों में भी कमी आएगी। जिससे सभी को सस्ता और सुलभ टीका मिल सकेगा। विश्व में फिलहाल कोरोना के जितने भी टीके बने हैं, उन सभी कंपनियों के पास उस पर पेटेंट है। इसके साथ ही वैक्सीन का उत्पादन केवल वही कर सकती हैं, जिसने इसे पेटेंट कराया है। ऐसे में वैक्सीन से पेटेंट हटाया जाता है तो वैक्सीन को बनाने की तकनीक दूसरी कंपनियों को भी मिल जाएगी। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैपरीन ताई ने कहा है जो बिडेन प्रशासन बौद्धिक संपदा की सुरक्षा का समर्थन करता है, लेकिन वैक्सीन पेटेंट में छूट सिर्फ कोरोना वायरस महामारी के खात्मे तक ही दी जाएगी। कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियां बड़ी पहल करने के लिए बाध्य कर रही हैं। वहीं स्विट्जरलैंड ने कहा है कि पेटेंट नियमों को अस्थायी रूप से हटाने की मांग को अमेरिका के समर्थन के बाद पैदा हुई नई स्थिति पर ध्यान दे रहा है। विशेषज्ञों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) सदस्य देशों को कोविड-19 टीकों को लेकर पेटेंट नियमों में छूट के प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए तत्काल बातचीत शुरू करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि जिस तेजी से कोरोना संक्रमण फैल रहा है उसके लिए यह जरूरी है। दरअसल भारत और दक्षिण अफ्रीका ने अक्तूबर 2020 में कोविड-19 संक्रमण के इलाज, उसकी रोकथाम के सन्दर्भ में प्रौद्योगिकी के उपयोग को लेकर डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों के लिए ट्रिप्स समझौते के कुछ प्रावधानों से छूट देने की प्रस्ताव किया। अगर यह पेटेंट का मसला हल हो जाता है तो दुनिया में वैक्सीन की कमी दूर हो जाएगी और लाखों-करोड़ों का बचाव होगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 25 May 2021

पीएम केयर वेंटिलेटर बेदम

दैनिक भास्कर की एक इंवेस्टीगेशन रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के बीच प्राणवायु देने के लिए राज्यों को पीएम केयर फंड से दिए गए वेंटिलेटर पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच कई बातें सामने आई हैं। कहीं वेंटिलेटर में पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुंचने तो कहीं चलते-चलते बंद होने की शिकायत आई। कंपनियों ने वेंटिलेटर तो सप्लाई किए लेकिन कई जगह इन्हें इंस्टाल किए लेकिन कई जगह इन्हें इंस्टाल करने की जगह सिर्फ असेंबल करके रख दिया गया। कुछ जगहों पर इस्तेमाल हुआ तो दिक्कतें सामने आने लगीं। पीएम केयर फंड से देश की पांच कंपनियों से 2332 करोड़ रुपए में 58,850 वेंटिलेटर खरीदे गए। सबसे ज्यादा 31 हजार सार्वजनिक क्षेत्र की भारत इलैक्ट्रॉनिक्स (बेल) से, 13 हजार एएमटीजेड से, 10 हजार नोएडा की अग्वा हैल्थकेयर से, पांच हजार गुजरात की ज्योति सीएनसी से और 350 एलाइड मेडिकल से थे। भास्कर ने वेंटिलेटर निर्माता कंपनियों, कुछ राज्यों के डॉक्टरों और तकनीकी स्टाफ से बात की तो पता चला, इसके पीछे गुणवत्ता के साथ ट्रेनिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण भी हैं। कई राज्यों में वेंटिलेटर्स लगाने के लिए लोकेशन तैयार नहीं थी। ऑक्सीजन पाइप से जोड़ने वाले कनैक्टर नहीं थे। कई अस्पतालों को रातोंरात कोविड सेंटर बना दिया लेकिन वेंटिलेटर चलाने के लिए स्टाफ नहीं थे। वेंटिलेटर की सर्विस और रिपेयर और स्पेयर पार्ट देने की जिम्मेदारी निर्माता कंपनियों की थी, लेकिन कंपनियों में इंजीनियरों की कमी से न तो समय पर ऑक्सीजन सेंसर, फ्यूज, कनैक्टर जैसे स्पेयर पार्ट्स मिल रहे हैं और न सर्विस हो पा रही है। पीएम केयर फंड से खरीदे वेंटिलेटर्स पर विवाद बढ़ने पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने इंस्टालेशन की स्थिति और शिकायतों की जांच के आदेश दिए हैं। सोमवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने देशभर के डॉक्टरों से बात की थी। इस दौरान रांची रिम्स के एक सीनियर डॉक्टर ने वर्चुअल बैठक में ही वेंटिलेटर में खराबी की शिकायत की। बैठक के बाद पीएमओ ने फोन कर डॉक्टर से इस बारे में जानकारी ली। स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद में पूछे एक सवाल के जवाब में इस साल 12 मार्च को बताया था कि 1850 करोड़ रुपए से खरीदे गए 38,867 वेंटिलेटर्स राज्यों को भेज दिए गए हैं। इनमें से 35,269 इंस्टाल हो गए हैं। सरकार के मुताबिक 90 प्रतिशत से अधिक वेंटिलेटर इंस्टाल हो चुके थे। पिछले साल चार अगस्त को स्वास्थ्य सचिव ने संसदीय समिति को बताया था कि कोविड के 15 प्रतिशत मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी थी। इनमें से सिर्फ पांच प्रतिशत को ही वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट में कोविड-19 से जुड़े मामलों की सुनवाई में पीएम केयर्स फंड को भी पक्षकार बनाने की फरियाद की गई है।। इन मामलों का सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया था और सुनवाई कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता साकेत गोखले ने हस्तक्षेप की अर्जी दाखिल कर पीएम केयर्स फंड को भी पक्षकार बनाने की अर्जी दी है। हस्तक्षेप अर्जी में कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड का मुख्य उद्देश्य जनस्वास्थ्य की आपातस्थिति के लिए किसी भी तरह की सहायता लेना और देना है। इस काम के लिए भारत ही नहीं, विदेश से भी चन्दा लिया गया है। सरकारी कर्मचारियों और मंत्रियों ने भी अपने वेतन से अंशदान दिया है। चूंकि यह एक गैर-सरकारी कोष है और कोविड-19 से लड़ाई में इसकी सक्रिय भूमिका है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में इसे भी प्रतिवादी बनाया जाए। इसे अदालत का अपने कार्यकलापों की जानकारी देनी चाहिए। अस्पताल को बताए कि किसे किस काम के लिए कितना धन आबंटित किया। साकेत गोखले ने अपनी अर्जी में कहा कि पीएम केयर्स फंड ने पिछले साल मई में घोषित किया था कि कोविड-19 से उसने तीन हजार करोड़ रुपए आबंटित किए हैं।

इजरायल और हमास के बीच सीजफायर

करीब दो हफ्तों से छिड़े हिंसक संघर्ष के बाद आखिरकार गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम का ऐलान हो गया है। 11 दिनों तक चली इस हिंसा में हमास ने इजरायल पर 4000 रॉकेट दागे और इजरायली हिंसा ने जवाबी कार्रवाई करते हुए गाजा में 1500 ठिकानों को निशाना बनाया। इस हिंसा के कारण गाजा में कम से कम 234 लोगों की मौत हुई जिसमें 100 से ज्यादा महिलाएं और बच्चे थे। इजरायल का कहना है कि उसके यहां हमास के हमले में 12 लोगों की जान गई है, जिसमें दो बच्चे शामिल थे। सीजफायर क्या है? आसान शब्दों में कहें तो सीजफायर या युद्धविराम दोनों पक्षों द्वारा हमेशा के लिए या निश्चित अवधि तक युद्ध रोकने का ऐलान है। हालांकि सीजफायर के बाद भी यह बिल्कुल मुमकिन है कि भविष्य में युद्ध फिर शुरू हो सकता है। अतीत में ऐसा भी हुआ है, जब इजरायल और हमास ने युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए फिर से लड़ाई शुरू कर दी थी। इस बार दोनों पक्ष शुक्रवार को स्थानीय समयानुसार रात दो बजे से लड़ाई रोकने पर सहमत हो गए थे। सीजफायर के ऐलान से ठीक पहले हमास ने इजरायल में रॉकेट छोड़े जाने और इजरायल में गाजा के हवाई हमलों की खबरें आई थीं। इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम की शर्तों को लेकर बहुत कम जानकारी सार्वजनिक की गई है। दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम को लेकर बातचीत पर्दे के पीछे होती रही है। सीजफायर की इस पूरी प्रक्रिया में अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, मिस्र और कतर की बड़ी भूमिका रही है। इजरायली प्रधानमंत्री के कार्यालय ने एक बयान जारी करके कहा कि इजरायल हिंसा रोकने के लिए पारंपरिक और बिना शर्त युद्धविराम के लिए राजी हो गया है। गाजा में एक हमास नेता ने बीबीसी को बताया कि इजरायल कब्जे वाले पूर्वी यरुशलम में स्थित अल-अक्सा मस्जिद और पास के शेख जर्रा इलाके से हटने के लिए तैयार हो गया है। हालांकि इजरायल ने इस दावे से इंकार किया है। इसी वजह से यह युद्ध शुरू हुआ था। पूर्वी यरुशलम का शेख जर्रा वही इलाका है, जहां से फिलस्तीनी परिवारों को हटाकर यहूदी बस्तियां बसाए जाने के दबाव के कारण हिंसा उपजी थी। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का दावा है कि गाजा में इजरायली सेना के हमले बेहद सफल और इन्होंने हमास के साथ इसके समीकरण बदल दिए। खबर है कि इजरायल ने गाजा पट्टी तक मानवीय मदद पहुंचाने के लिए एक क्रॉसिंग प्वाइंट खोल दिया है। इजरायल में आवाजाही पर लगी ज्यादातर आपातकालीन पाबंदियां हटाई जा चुकी हैं। इस युद्धविराम की कोई समयसीमा तय नहीं की गई है और दुनियाभर के नेता उम्मीद जता रहे हैं कि यह हमेशा के लिए रहेगा। मिस्र ने कहा है कि यह सीजफायर पर नजर रखने के लिए तेल अवीव और गाजा में अपने प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा है कि यह युद्धविराम प्रगति का सच्चा मौका लाया है। यूरोपीय संघ की ओर से एक बयान में कहा गयाöहम इस युद्धविराम तक पहुंचने के लिए मिस्र, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और उन सबकी तारीफ करते हैं जिन्होंने इसमें अपनी भूमिका निभाई है। उम्मीद की जाती है कि यह युद्धविराम दोनों मुल्कों में शांति स्थापित करने में कामयाब होगा और क्षेत्र में अमन-चैन का दौर आएगा।

योग गुरु रामदेव के खिलाफ उतरे डॉक्टर

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने योग गुरु रामदेव पर एलोपैथी इलाज के खिलाफ झूठ फैलाने का आरोप लगाया है। डॉर्क्ट्स की संस्था ने रामदेव पर मुकदमा चलाने की मांग भी की है। केंद्रीय मंत्री (स्वास्थ्य) डॉ. हर्षवर्धन को लिखे पत्र में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहाöसोशल मीडिया पर रामदेव का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बाबा एलोपैथी को बकवास और दिवालिया साइंस कह रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने लिखा है कि इससे पहले कोरोना के लिए बनाई गई अपनी दवा की लांचिंग के दौरान भी रामदेव ने डॉर्क्ट्स को हत्यारा कहा था। सभी इस बात को जानते हैं कि बाबा रामदेव और उसके साथी बालकृष्ण बीमार होने पर एलोपैथी इलाज लेते हैं। इसके बाद भी अपनी अवैध दवा को बेचने के लिए वह लगातार एलोपैथी के बारे में भ्रम फैला रहे हैं। इससे एक बड़ी आबादी पर असर पड़ रहा है। एसोसिएशन ने लिखा हैöबाबा रामदेव ने यह दावा किया है कि रेमडेसिविर, फेवीफ्लू और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से अप्रूव दूसरी ड्रग्स की वजह से लाखों लोगों की मौत हुई हैं। उन्होंने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य मंत्री की साख को चुनौती दी है। कोरोना मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर के इस्तेमाल की मंजूरी केंद्र की संस्था सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने जून-जुलाई 2020 में दी थी। यह भ्रम फैलाने और लाखों लोगों की जान खतरे में डालने के लिए बाबा रामदेव पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। रामदेव ने फेविपिराविर को बुखार की दवा बताया था। इससे पता चलता है कि मेडिकल साइंस को लेकर उनका ज्ञान कितना कम है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 22 May 2021

हमें हर हालत में तीसरी लहर से बच्चों को बचाना जरूरी

कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों के सबसे ज्यादा संक्रमित होने की आशंका जताई जा रही है। कोरोना की संभावित तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए दिल्ली में बच्चों के लिए पर्याप्त आईसीयू और वेंटिलेटर बैड का इंतजाम करना सख्त जरूरी है। बच्चों को संक्रमित होने से बचाने के लिए परिवार के सभी सदस्य खुद का टीकाकरण सुनिश्चित करें। इससे संक्रमण की रोकथाम में मदद मिलेगी। यह दिल्ली के अलग-अलग अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है। सफदरजंग अस्पताल के कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि बच्चों के आईसीयू और वेंटिलेटर बैड बड़ों की अपेक्षा अलग होते हैं। बच्चों को भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है तो उसके लिए भी नीति तैयार करनी होगी। वहीं मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर और लैंसर कमीशन कोविड इंडिया टास्क फोर्स की सदस्य डॉ. सुनीला गर्ग ने कहा कि इस दौरान शिक्षकों को जागरूक करने की जिम्मेदारी होगी। इसे देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बुधवार को आपात बैठक बुलाई, जिसमें बच्चों को बचाने के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाने का फैसला किया। अफसरों की इस टीम पर अस्पताल में बैड और ऑक्सीजन से लेकर दवाओं तक का इंतजाम करने की जिम्मेदारी होगी। बैठक में इस बात पर विचार किया गया कि तीसरी लहर के दौरान अधिकतम कितने केस आने के आसार हैं। अफसरों ने एक आंकलन के आधार पर बताया कि करीब 40 हजार बैड की जरूरत पड़ सकती है। इसमें 10 हजार आईसीयू बैड की जरूरत पड़ेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हम बड़े पैमाने पर बैड बढ़ाएंगे तो हमें बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन की भी जरूरत पड़ेगी। ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है तो उसे पूरा किया जा सके उसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी। इसे देखते हुए बैठक में निर्णय लिया गया कि इसके लिए दिल्ली सरकार पहले से ही ऑक्सीजन टैंकर खरीद कर रखेगी। बड़ी संख्या में ऑक्सीजन सिलेंडर भी खरीदे जाएंगे ताकि अलग-अलग अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचाने में समस्या न आए।

हमास ः फिलस्तीनी संगठन जो इजरायल को मिटा देना चाहता है

हमास फिलस्तीनी चरमपंथी गुटों में सबसे बड़ा गुट है। इसका नाम एक संगठनöइस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंटöके अरबी नाम के पहले अक्षरों से मिलकर बना है। इसकी शुरुआत 1983 में फिलस्तीनियों के पहले इंंतिफादा या बगावत के बाद हुई, जब वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में इजरायली कब्जे का विरोध शुरू हुआ था। इस गुट के चार्टर में लिखा है कि वो इजरायल को तबाह करने के लिए संकल्पबद्ध है। हमास की जब शुरुआत हुई थी तो इसके दो मकसद थे। एक तो इजरायल के खिलाफ हथियार उठाना जिसकी जिम्मेदारी उसके सैन्य गुट इज्जदीन अल-कसाम ब्रिगेड पर थी। इसके अलावा उसका दूसरा मकसद समाज में कल्याण के काम करना है। उसने 2006 में फिलस्तीनियों के इलाके में होने वाले चुनाव में जीत हासिल की और उसके अगले साल गाजा में राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रतिद्वंद्वी गुट फतह को हटाकर वहां की सत्ता अपने हाथ में ली। उसके बाद से गाजा के चरमपंथी इजरायल के साथ तीन लड़ाइयां लड़ चुके हैं। इजरायल ने मिस्र के साथ मिलकर गाजा पट्टी की घेराबंदी की हुई है ताकि हमास अलग-थलग पड़े और उस पर हमले बंद करने का दबाव पड़े। हमास सैन्य गुट को इजरायल, ब्रिटेन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई अन्य देश एक आतंकवादी संगठन मानते हैं। हमास का नाम पहली इंतिफादा के बाद सबसे प्रमुख फिलस्तीनी गुट के तौर पर उभरा जिसने 19s90 के दशक में इजरायल और ज्यादातर फिलस्तीनियों की नुमाइंदगी करने वाले फिलस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के बीच ओस्लो में हुए शांति समझौते का विरोध किया। इजरायल के कई अभियानों के बावजूद हमास ने आत्मघाती हमले करके जता दिया कि उसके पास इस शांति प्रक्रिया को रोकने की क्षमता है। हमास के बम निर्माता याहिया अय्याश की 1995 के दिसम्बर में की गई हत्या के जवाब में संगठन ने 1996 को फरवरी और मार्च में कई आत्मघाती बम धमाके किए थे। हमास के आध्यात्मिक नेता शेख अहमद यासीन की 2004 में एक इजरायली मिसाइल हमले में मौत हो गई थी। 2004 के मार्च और अप्रैल में हमास के आध्यात्मिक नेता शेख अहमद यासीन और उनके उत्तराधिकारी अब्दुल अजीज अल-रनतिसी को भी इजरायल ने मार गिराया। उसी साल नवम्बर में फतह गुट के नेता यासिर अराफात का निधन हो गया और फिर फिलस्तीनी प्राधिकरण की कमान महमूद अब्बास के हाथों में आ गई जो मानते थे कि हमास के रॉकेट हमलों से नुकसान हो रहा है। इजरायल हमास को गाजा से होने वाले हमलों के लिए जिम्मेदार मानता है और वो वहां तीन बार सैन्य कार्रवाई कर चुका है जिसके बाद सीमापार जाकर लड़ाई भी हुई। 2008 के दिसम्बर में इजरायली सेना ने रॉकेट हमलों को रोकने के लिए ऑपरेशन कास्ट लीड चलाया। 22 दिन तक चले इस संघर्ष में 1300 से ज्यादा फिलस्तीनी और 13 इजरायली मारे गए। 2014 में जून के मध्य में एक बार फिर गाजा से रॉकेट हमले तेज हो गए जब इजरायल ने हत्या कर दिए गए तीन इजरायली लड़ाकों की तलाश करते हुए वेस्ट बैंक में हमास के कई सदस्यों को पकड़ लिया। 50 दिनों तक चली लड़ाई में कम से कम 2251 फिलस्तीनी मारे गए जिनमें 1462 आम नागरिकों को इजरायल की ओर 67 सैनिकों और छह नागरिकों की मौत हुई। 2014 के बाद से दोनों पक्षों में लगातार हिंसक झड़पें होती रही हैं। मगर मिस्र, कतर और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से संघर्षविराम होता रहा। घेराबंदी के कारण होते दबाव के बावजूद हमास ने गाजा में अपनी सत्ता बनाई हुई है और वो अपने रॉकेट के भंडार को बढ़ाता और बेहतर बनाता जा रहा है। इसी बीच गाजा में रह रहे 20 लाख फिलस्तीनियों की हालत खराब होती जा रही है। वहां की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, न बिजली है, न पानी और न दवा, सभी की किल्लत है।

हरिद्वार अस्थि विसर्जन को सिर्प चार लोग ही जा सकेंगे

उत्तराखंड के बाहर से हरिद्वार में अस्थि विसर्जन के लिए चार से अधिक लोग नहीं आ पाएंगे। अस्थि विसर्जन में आने के लिए भी आने से पहले पोर्टल पर पंजीकरण और 72 घंटे पूर्व आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता होगी। जिला अधिकारी सी. रविशंकर ने कोविड कर्फ्यू में एसओपी के सख्ती से पालन कराए जाने के निर्देश जारी कर दिए हैं। महापुंभ के बाद से हरिद्वार में कोरोना ने कहर बरपाया। संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए कोविड कर्फ्यू लगाना पड़ा है। 28 अप्रैल से चरणबद्ध तरीके से कर्फ्यू बढ़ रहा है। अब 25 मई तक लागू कर्फ्यू में प्रशासन ने सख्ती बढ़ा दी है। बाहरी राज्यों से आने वालों की बॉर्डर पर जांच शुरू कर दी है। इनमें अस्थि विसर्जन करने आने वाले लोग भी शामिल हैं। जिले में आवागमन के लिए 11 बॉर्डर हैं। जिला अधिकारी सी. रविशंकर के मुताबिक बाहरी राज्यों से हरिद्वार अस्थि विसर्जन के लिए चार लोग ही आ पाएंगे। रिपोर्ट (आरटीपीसीआर) नहीं होने पर बॉर्डर पर रैंडम सैंपल के बाद ही हरिद्वार में प्रवेश मिलेगा। सार्वजनिक एवं निजी वाहनों में कुछ क्षमता से 50 प्रतिशत ही मान्य होंगे यानि अस्थियां विसर्जन के लिए आने वाले चार लोग को कार नहीं बल्कि आठ सीटर यूएसवी से आना होगा। देश के कुछ एक राज्यों में यह प्रथा है कि लोग किसी भी परिजन की मौत के बाद हरिद्वार में अस्थि विसर्जन को लेकर परिवार समेत चले जाते हैं। खासकर राजस्थान जैसे राज्य में यह प्रथा है। वैसे भी कोविड के कारण देश में मौतों की संख्या ज्यादा हो गई है। इसी भीड़ से कोरोना का संक्रमण और न फैले इसकी एहतियात के लिए जिला प्रशासन को विसर्जन की संख्या में कटौती करनी पड़ी है। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 21 May 2021

गंगा में इतनी लाशें कि गिनती मुश्किल

उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे शवों का मिलना जारी है। प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर धाम के पास बड़ी संख्या में शव गंगा किनारे दफनाए गए हैं। हालात यह हैं कि एक छोर से दूसरे छोर तक केवल शव ही नजर आ रहे हैं। यहां करीब एक किलोमीटर की दूरी में दफन शवों के बीच एक मीटर का फासला भी नहीं है। इन शवों के किनारे झंडे और डंडे भी गाड़े गए हैं। यही नहीं, शवों के साथ आने वाले कपड़े और दूसरे सामान भी वहीं छोड़ दिए गए हैं। ऐसे में गंगा किनारे काफी गंदगी हो गई है। पुलिस का पहरा भी कोई काम नहीं आ रहा है। अंतिम संस्कार का सामान भी बहुत महंगा हो गया है। घाट पर पूजा-पाठ कराने वाले पंडितों का कहना है कि पहले रोज यहां आठ से 10 शव ही आते थे, लेकिन पिछले एक महीने से हर रोज 60 से 70 शव आ रहे हैं। किसी दिन तो 100 से भी ज्यादा लाशें आ रही हैं। एक महीने में यहां चार हजार से ज्यादा शव आ चुके हैं। शासन की रोक के बाद भी शैव संप्रदाय के अनुयायी यहां शव दफना रहे हैं। घाट पर मौजूद पंडित कहते हैं कि शैव संप्रदाय में गंगा किनारे शव दफनाने की पुरानी परंपरा है। इसे रोका नहीं जा सकता। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। श्रृंगवेरपुर धाम पर पुरोहित का काम करने वाले शिवबरन तिवारी बताते हैं कि सामान्य दिनों में यहां आने वाले गरीब लोग शव लेकर आते हैं, उनके पास खाने के भी पैसे नहीं होते और वह दाह-संस्कार का खर्च वहन नहीं कर पाते, वही दफनाते हैं जो सक्षम हैं। वह शवों का बाकायदा दाह-संस्कार करते हैं। लेकिन कोरोना ने जब से जोर पकड़ा है तब से अकेले श्रृंगवेरपुर में ही रोजाना 60 से 70 शव आ रहे हैं। शिवबरन बताते हैं कि कोरोना के डर के कारण काफी दिन तक घाट से पंडों-पुरोहितों ने भी डेरा हटा लिया था। सभी डर रहे थे कि कोरोना न हो जाए। ऐसे में जो जैसा आया और जहां जगह दिखी, वहीं शवों को दफना दिया। कोई रोक-टोक न होने के कारण गंगा के घाट किनारे जहां लोग आकर स्नान-ध्यान करते हैं, वहां तक लोगों ने शव दफना दिए। कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार के लिए शमशानों में जिस तरह से लूट-खसोट मची है, मोटी रकम ऐंठी जा रही है और घंटों कतार में लगना पड़ रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन जिलों में यह सब देखने को मिल रहा है, वह महामारी की चपेट में हैं। भले ही सरकारें कितने दावे क्यों न करती रहें कि ग्रामीण इलाकों में हालात काबू में हैं, इलाज के सारे बंदोबस्त हैं, लेकिन लाशों के यह ढेर असलियत उजागर करने के लिए काफी हैं। अब इसमें ज्यादा शक नहीं बचा कि संक्रमण की जांच, इलाज से लेकर अंतिम संस्कार तक में सरकारों की लापरवाही दिखाई दी, यह शव उसी का नतीजा हैं।

पिक्चर अभी बाकी है दोस्त...शो मस्ट गो ऑन

पिक्चर अभी बाकी है दोस्त... शो मस्ट गो ऑन राजकपूर के इसी वाक्य के साथ डॉक्टर केके अग्रवाल ने एक लाइव शो में बताया था कि वह कोविड पॉजिटिव हैं। उन्होंने कहा था कि उनके जैसे लोग ऑक्सीजन बैड पर होते हुए भी क्लास लेंगे और लोगों की जान बचाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया भी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष रहे डॉ. अग्रवाल ने सोमवार देर शाम अंतिम शांस ली। डॉ. अग्रवाल को चिकित्सा क्षेत्र में उनके कार्य के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया था। वह डॉ. बीसी रॉय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए थे। हाथ से सीपीआर देकर जीवनरक्षक तकनीकों में अधिकतम लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए डॉ. अग्रवाल का नाम लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था। अपनी मौत से पहले तक वह दुनिया को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते रहे। उन्होंने करीब 2500 लाइव शो कर कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक किया और उनका इलाज किया। खुद बीमार होने के बाद भी उन्होंने कोरोना को लेकर लाखों लोगों को अपडेट देना जारी रखा। कोरोना के बारे में लगातार अपने वीडियो के माध्यम से लोगों को जागरूक करने वाले प्रख्यात चिकित्सक डॉ. केके अग्रवाल आखिरी समय तक लोगों की सेवा का संदेश देते हुए कहते रहेöद शो मस्ट गो ऑन। उनके इस संदेश का मकसद था कि महामारी के इस कठिन दौर में आप (डॉक्टर) जुगाड़ू ओपीडी के जरिये एक साथ सौ-सौ मरीजों को लाभ पहुंचा सकते हैं। संक्रमित होने के बावजूद खुद डॉ. अग्रवाल आखिरी समय तक वीडियो के जरिये लोगों तक हर छोटी-बड़ी जानकारी पहुंचाते रहे। अपने आखिरी वीडियो में उन्होंने सभी डॉक्टरों से अपील करते हुए कहाöअब एक-एक करके लोगों को ओपीडी और परामर्श देने का समय नहीं रह गया है। आप एक ही लक्षण वाले 100 मरीजों को एक साथ जुगाड़ू ओपीडी में बुलाकर परामर्श दे सकते हैं। अपने आखिरी वीडियो में द शो मस्ट गो ऑन डायलॉग बोलते हुए कहते हैंöपिक्चर अभी बाकी है। मेरे जैसे लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी लोगों को बचाने की कोशिश करें। मैं केके अग्रवाल बनने से पहले चिकित्सा पेशे से जुड़ा एक डॉक्टर हूं। डॉ. अग्रवाल लगातार ट्विटर पर वीडियो अपडेट करते रहे। उनके अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान भी उनकी हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया की टीम लगातार उनके कोविड-19 पर वीडियो पोस्ट करती रही। उन्होंने हजारों लोगों का इलाज किया। उनके जाने से मेडिकल क्षेत्र की एक महान हस्ती का अंत हो गया। बेशक वह तो चले गए पर उनके द्वारा किए गए कार्य को कभी भूला नहीं जा सकता। हम अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हैं और उपर वाले से प्रार्थना करते हैं कि इस महान व्यक्ति को अपने चरणों में स्थान दें।

मीडिया के दोस्तों आप घर बैठे कोर्ट की कार्यवाही देखें

देश की शीर्ष अदालत में वीडियो कांफ्रेंस से होने वाली सुनवाइयों की लिंक अब मीडिया के लिए सुप्रीम कोर्ट के मोबाइल एप पर उपलब्ध रहेंगी। देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमन्ना ने गुरुवार को इस सुविधा का शुभारंभ किया। सीजेआई ने कहाöमेरे मीडिया के दोस्तों, आप अदालत आने की जहमत न उठाएं। घर बैठे ही कोर्ट की कार्यवाही देखें। कुछ अदालतों के लिए कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग पर विचार किया जा रहा है। बड़े फैसलों के मुख्य बिन्दुओं का फीचर भी सुप्रीम कोर्ट के पोर्टल और एप पर जल्द उपलब्ध होगा। लेकिन इसे शुरू करने से पहले जजों से सहमति लेनी होगी। जब सुप्रीम कोर्ट और मीडिया के बीच तालमेल के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त करेंगे। सूचना के प्रसार में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए मीडियाकर्मियों को मान्यता देने की प्रक्रिया भी युक्तिसंगत बनानी होगी। सीजेआई ने कहाöन्यायाकि प्रक्रिया में पारदर्शिता समय-सम्मानित सिद्धांत है। उद्घाटन कार्यक्रम में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एएम खानविलकर और हेमंत गुप्ता भी शामिल थे। जस्टिस गुप्ता ने कहाöइस पहल से पारदर्शिता बढ़ेगी। लेकिन दी गई लिंक अनाधकृत व्यक्तियों के साथ साझा नहीं की जानी चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहाöलिंक तक पहुंच पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, क्योंकि वह नियमित रूप से बाहरी दुनिया के सम्पर्प में रहते हैं। जस्टिस खानविलकर ने कहाöसुप्रीम कोर्ट के साथ मीडिया का अहम जुड़ाव है। मीडिया एक आवश्यक सेवा प्रदान करता है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 20 May 2021

टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी

पश्चिम बंगाल के नारद स्टिंग मामले में सीबीआई ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस के तीन नेताओं और एक पूर्व नेता को गिरफ्तार किया। यह मंत्री फरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और पूर्व नेता सोभन चटर्जी थे। साल 2014 में इस मामले के समय चारों मंत्री थे। इन गिरफ्तारियों के तुरन्त बाद सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में सीबीआई के दफ्तर पहुंची। ममता ने शाम पांच बजे तक धरना दिया। ममता ने सीबीआई अधिकारियों से कहाöमेरी पार्टी के नेताओं को रिहा करें या मुझे गिरफ्तार कर लें। तृणमूल नेता अप्रिय भट्टाचार्य ने इन गिरफ्तारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। जबकि तृणमूल कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में सीबीआई दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया। उन्होंने सुरक्षा बलों पर ईंट-पत्थर फेंके। हुगली, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना में भी समर्थकों ने प्रदर्शन किया। इस बीच चारों आरोपियों को सीबीआई कोर्ट में पेश किया गया। सीबीआई ने आरोपियों की न्यायिक हिरासत की मांग की थी। लेकिन जज अनुपम मुखर्जी ने चारों को जमानत दे दी। लेकिन सीबीआई निचली अदालत के फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट चली गई और हाई कोर्ट ने सभी चार नेताओं को जेल भेज दिया। इस दौरान चारों अभियुक्तों के परिवार के लोग जेल के बाहर मौजूद थे। फरहाद हकीम ने सीबीआई के कोलकाता दफ्तर के बाहर कहाöमुझे न्यायपालिका में पूरी आस्था है। भाजपा मुझे परेशान करने के लिए किसी को भी काम पर लगा सकती है। उन्होंने रूंधे गले से कहा कि महामारी के दौरान लोगों की मदद करने का काम नहीं कर सके। हकीम ने कहा कि हम लोग बुरे लोग हैं, मगर मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी नहीं। गौरतलब है कि मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी भी नारद स्टिंग ऑपरेशन में अभियुक्त हैं, मगर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह दोनों नेता इस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे लेकिन बाद में वो भाजपा में शामिल हो गए। नंदीग्राम से ममता बनर्जी को मात देने वाले शुभेंदु अधिकारी नई विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं जबकि मुकुल रॉय विधायक। वहीं गिरफ्तार किए गए एक और मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने सीबीआई दफ्तर के बाहर कहाöहम डाकू नहीं हैं। मैंने ऐसा कोई गलत काम नहीं किया है कि सीबीआई मेरे बैडरूम में आकर मुझे गिरफ्तार करे। नारद स्टिंग ऑपरेशन नारद न्यूज पोर्टल के पत्रकार मैथ्यू सैमुअल ने 2014 में किया गया था जिसमें कथित तौर पर टीएमसी मंत्री, सांसद और विधायक कैमरे पर काल्पनिक कंपनियों को मदद पहुंचाने के लिए मदद देते थे। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 15 दिन बाद हुई गिरफ्तारियों को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है। भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव में ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था मगर इसके बावजूद ममता बनर्जी जबरदस्त बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटीं। गिरफ्तार किए गए नेता मदन मित्रा ने कहाöकेंद्र सरकार और मुख्य रूप से दोनों नेता (मोदी और शाह) बंगाल के लोगों के दिए जनादेश को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, खेल फिर शुरू हो गया है।

प्रधानमंत्री के पोस्टर पर मचा बवाल

टीके की कमी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए दिल्ली के कई हिस्सों में पोस्टर लगाए जाने के मुद्दे पर बवाल मच गया है। इस मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा अब तक दो दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच इस मामले का श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। दिल्ली पुलिस ने पोस्टर चिपकाने को लेकर 25 एफआईआर दर्ज की एवं उतने ही लोगों को गिरफ्तार किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने ट्विटर पर अपनी परिचय तस्वीरें बदलकर यह सवाल करता पोस्टर लगा दिया कि कोरोना रोधी टीके विदेश क्यों भेजे गए? विपक्षी दलों ने कहा कि यदि लोगों को टीका, दवा और ऑक्सीजन नहीं मिलती तो प्रधानमंत्री से कड़े सवाल पूछे जाएंगे। उन्होंने सरकार को चुनौती दी कि वह टीकों के निर्यात पर सवाल उठाने पर उन्हें भी गिरफ्तार करके दिखाए। आप ने पोस्टर लगाए जाने की रविवार को जिम्मेदारी ली और कहा कि उसके कई कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को वह परेशान कर रही है। वरिष्ठ नेता दुर्गेश पाठक ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई पार्टी को रोक नहीं पाएगी एवं वह अभियान चलाकर पूरे शहर एवं देश में ऐसे पोस्टर लगा देगी। पाठक ने प्रेसवार्ता में भाजपा से कहा कि आप इस तरह के प्रश्न पूछने पर किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। हम लोकतंत्र में रहते हैं मगर फिर भी आपको गिरफ्तार करने का शौक है तो आम आदमी पार्टी (आप) ने पोस्टर लगवाए हैं। आप हमें गिरफ्तार कीजिए। इस बीच दिल्ली पुलिस ने रविवार को दावा किया कि प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाला पोस्टर चिपकाने को लेकर 25 एफआईआर दर्ज की एवं उतने ही लोगों को गिरफ्तार किया। इन पोस्टरों पर लिखा है, मोदी जी हमारे बच्चों का वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिया। पाठक ने कहा कि पूरे देश में लोग यही प्रश्न पूछ रहे हैं कि भाजपा सरकार ने अफगानिस्तान, ईरान एवं इराक समेत 94 देशों को टीकों का निर्यात क्यों किया जिससे भारत में हजारों जानें बचाई जा सकती थी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को चुनौती दी कि वह उन्हें भी गिरफ्तार करके दिखाएं। रमेश ने कहा कि वह भी अपने परिसर की दीवार पर ऐसे पोस्टर लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या प्रधानमंत्री की आलोचना से जुड़े पोस्टर लगाना अब कोई अपराध है? क्या भारत अब मोदी दंड संहिता से संचालित है? क्या महामारी के बीच जनता पूछ रही है कि मेरा टीका कहां है, मेरी ऑक्सीजन कहां है? हम आपसे प्रश्न पूछना जारी रखेंगे। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि सवाल पूछने पर लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है। खेड़ा ने कहा कि अधिकतर मौतों को टाला जा सकता था और लोग कोविड की वजह से नहीं, बल्कि महामारी से निपटने में कुप्रबंधन की वजह से मर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने आवश्यक चीजों की मानव-निर्मित कमी उत्पन्न की ओर हर तरफ अफरातफरी मच गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि जब बात टीका निर्माताओं से सौदा या टीका रणनीति लाने की आई तो सब कुछ केंद्रीकृत और व्यक्तिकृत था। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 19 May 2021

इजरायल-हमास युद्ध तत्काल रुकना चाहिए

पिछले करीब सात-आठ दिनों से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच छिड़ी भीषण लड़ाई बढ़ती ही जा रही है। इजरायली सेना ने रविवार को कहा कि उसने गाजा में हमास के एक शीर्ष नेता के घर पर हमला किया है। गाजा से इजरायल में हवाई हमले और रॉकेट दागने के करीब एक हफ्ते बाद यह हमला किया गया। इन हवाई हमलों में 42 लोगों की मौत हो गई है। इनमें 16 महिलाएं और 10 बच्चे हैं। इनके अलावा 50 लोग घायल हुए हैं। पिछले एक हफ्ते में यह इजरायल का गाजा पर सबसे बड़ा हमला है। इजरायल ने दो दिन में तीसरी बार हमास के किसी वरिष्ठ नेता के घर पर बमबारी की। इसके अलावा शरणार्थी शिविर और एक बहुमंजिला इमारत को ध्वस्त कर दिया। जवाब में हमास ने भी इजरायल पर रॉकेट हमले जारी रखे हैं। पिछले एक हफ्ते में गाजा में 188 फिलिस्तीनी मारे गए हैं। जबकि 1230 फिलिस्तीनी घायल हुए हैं। इजरायल में 10 लोगों की मौत हुई है। गाजा की ओर से इजरायल पर एक हफ्ते में 2500 रॉकेट दागे गए हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनिया उस इजरायली हमले से बेहद परेशान हैं जिसमें गाजा शहर में एक ऊंची इमारत ध्वस्त हो गई। इस इमारत में कई अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के कार्यालय और आवासीय अपार्टमेंट थे। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहाöमहासचिव हताहत आम नागरिकों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी से निराश हैं। महासचिव ने सभी पक्षों को याद दिलाया है कि असैन्य नागरिकों और मीडिया संगठनों को अंधाधुंध निशाना बनाया जाना अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है और हर कीमत पर इसे रोकना चाहिए। अगर इस युद्ध को फौरन रोका नहीं गया तो पश्चिम एशिया का पूरा इलाका पूर्ण युद्ध की चपेट में आ सकता है। पश्चिम एशिया में अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन मौजूदा संघर्ष के दौरान वह हाथ पर हाथ धरे बैठा है। हालांकि युद्ध की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह कहा था कि इजरायल को अपनी भूमि की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। बिडेन की डेमोकेटिक पार्टी के प्रगतिशील रूझान वाले नेताओं ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता प्रदर्शित की। समाज के कुछ तबकों में ब्लैकलाइंस मैटर की तर्ज पर फिलिस्तीन लाइव मैटर का अभियान शुरू किया गया। लेकिन मुश्किल यह है कि बिडेन प्रशासन, अमेरिकी सांसद, मुख्यधारा की मीडिया और बौद्धिक संस्थानों पर यहूदियों का वर्चस्व है। इस दबाव के कारण कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति इजरायल के विरुद्ध कड़ी नीति अपनाने का जोखिम नहीं ले पाता। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस युद्ध में हस्तक्षेप करे और इस नए युद्ध को खत्म कराने का प्रयास करे। नहीं तो यह युद्ध पूरे मध्य-पूर्व में फैल सकता है।

अनाथ बच्चों, बेसहारा बुजुर्गों का सहारा बनेगी दिल्ली सरकार

इस कोरोना महामारी के प्रकोप से दर्जनों बच्चे अनाथ हो गए हैं। उनके माता-पिता, दोनों कोरोना के शिकार हो गए। उनकी परवरिश की समस्या हो गई है। इनकी देखभाल कौन करेगा? कुछ की तो करीबी रिश्तेदारों ने जिम्मेदारी ले ली है पर दर्जनों बच्चों के भविष्य को लेकर समस्या हो गई है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने फैसला किया है कि वह कोविड से अनाथ हुए बच्चों की शिक्षा और जीवन-यापन का खर्च उठाएगी। जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उनसे यही आशंका होती है कि ऐसे बच्चों की संख्या काफी है। किसी भी संवेदनशील सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे बच्चों को आर्थिक संकट और असुरक्षा से बचाए। अगर दिल्ली सरकार ऐसा करती है तो वह अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाएगी। शुक्रवार को इसका ऐलान करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि ऐसे कई बच्चे जिनके माता-पिता, दोनों चल बसे, उन बच्चों की पढ़ाई और परवरिश का सारा खर्च दिल्ली सरकार उठाएगी। इसके अलावा जिन बुजुर्गों ने अपने घर के युवाओं को खो दिया है दिल्ली सरकार उनका भी ख्याल रखेगी। मुख्यमंत्री ने ऐसे बच्चों व बुजुर्गों को उनके पड़ोसियों और रिश्तेदारों से अपना प्यार और हमदर्दी देने की अपील की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम ऐसे परिवारों की आर्थिक मदद तो कर देंगे, पर ऐसे बच्चों और बुजुर्गों को इस वक्त प्यार की जरूरत है, हमदर्दी की जरूरत है। ऐसे परिवारों के सभी पड़ोसियों और उनके रिश्तेदारों से मेरी विनती है कि इनका ख्याल रखना। ऐसे परिवारों पर बहुत बड़ी मुसीबत आई है। दिल्ली में दो करोड़ लोग, हम सब एक परिवार हैं। इस दुख की घड़ी में हमें एक-दूसरे की मदद करनी है। केजरीवाल ने कहा कि हम सभी के लिए पिछले कुछ दिन बेहद दुखदायी बीते हैं। सभी कोशिशों के बावजूद हम अपने कई दिल्लीवासियों को बचा नहीं पाए। कई परिवारों में तो एक से ज्यादा मौतें हुई हैं। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि इन सभी आत्माओं को शांति प्रदान करें। मैं ऐसे कई बच्चों को जानता हूं, जिनके दोनों, माता-पिता चल बसे। मैं ऐसे बच्चों को कहना चाहता हूंöमैं उनके दुख को समझता हूं, पर बच्चों आप चिन्ता मत करना। आप अपने आपको अनाथ मत समझना। मैं हूं ना। हम किसी भी बच्चे की पढ़ाई बीच में नहीं छूटने देंगे। ऐसे कई बुजुर्ग हैं, जिनके जवान बच्चे थे, वह कमाते थे, तब उनका घर चलता था। अब वह कमाने वाले बच्चे नहीं रहे। मैं ऐसे सभी बुजुर्गों को कहना चाहता हूं कि आपके बच्चे चले गए। आप चिन्ता मत करना। अभी आपका यह बेटा जिन्दा है। हम केजरीवाल और उनकी सरकार को इस कदम के लिए बधाई देना चाहते हैं। उम्मीद करते हैं कि देश के अन्य राज्य भी अपने स्तर पर ऐसी लोक कल्याणकारी योजनाओं पर काम करें। ऐसी योजनाएं सरकारों को उनके तंत्र की शक्तियों और कमजोरियों को पहचानने व बेहतर तंत्र बनाने में मदद कर सकती हैं। कोविड-19 में हमें यह बता दिया है कि आखिरकार यही काम आता है कि किसी राज्य में सार्वजनिक सेवाएं कितनी चुस्त हैं। बहुत अमीर राज्य में भी अगर सरकारी व्यवस्थाएं चुस्त-दुरुस्त नहीं हैं, तो वह किसी भी संकट का सामना नहीं कर सकतीं। कोविड संकट ने परिवारों का ताना-बाना तोड़कर रख दिया है। कई परिवारों को नए सिरे से अपनी जिन्दगी शुरू करनी पड़ेगी। सरकार और समाज को इस संकट की घड़ी में पूरा-पूरा योगदान देना होगा।

अनिल देशमुख पर मनी लांड्रिंग का केस

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित रिश्वत के मामले में महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ धन शोधन रोकथाम कानून के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया है। आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को इस बारे में बताया। उन्होंने बताया कि देशमुख के खिलाफ सीबीआई द्वारा पिछले महीने दर्ज की गई प्राथमिकी का अध्ययन करने के बाद धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) की धाराओं के तहत यह मामला दर्ज किया गया है। अधिकारी ने बताया कि ईडी अब देशमुख (71) और अन्य लोगों को पूछताछ के लिए तलब कर सकती है। बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर नियमित मामला दर्ज कर सीबीआई द्वारा की गई प्रारंभिक जांच के बाद ईडी ने यह मामला दर्ज किया है। बंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा देशमुख के खिलाफ लगाए गए रिश्वत के आरोपों की जांच करने को कहा था। एजेंसी जांच करेगी कि महाराष्ट्र में पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के नाम पर क्या अवैध धन अर्जित किए गए और क्या पुलिसकर्मियों ने अवैध वसूली की थी जैसा कि सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था। एजेंसी के पास छानबीन के दौरान आरोपियों की सम्पत्तियां जब्त करने का अधिकार है और वह इसके बाद मुकदमे के लिए पीएमएलए अदालत के समक्ष आरोप पत्र दाखिल करेगी। उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास के पास एक संदिग्ध एसयूवी मिलने के मामले में छानबीन के दौरान पुलिसकर्मी सचिन वाजे की भूमिका सामने आने के बाद सिंह को उनके पद से हटा दिया गया था। संदिग्ध एसयूवी में जिलेटिन की छड़ें रखी हुई थीं। पुलिस आयुक्त पद से हटाए जाने के बाद सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र में कहा था कि देशमुख ने वाजे को मुंबई से बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपए की कथित रूप से वसूली के लिए कहा था। ऐसा कम देखने को मिला है कि किसी भी राज्य के गृहमंत्री पर इतने गंभीर आरोप लगे हों। देखें, जब एफआईआर दर्ज होती है तो उसमें क्या-क्या कहा जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 18 May 2021

प्रवासी मजदूरों को मुफ्त सूखा राशन दें

कोरोना काल में विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूर फिर बेरोजगारी और खाने के संकट से जूझ रहे हैं। इनके पलायन पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र सरकार पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहाöपिछले साल प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए शीर्ष अदालत ने कई आदेश दिए, मगर उनका पालन नहीं हुआ। साथ ही केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में फंसे मजदूरों को सूखा राशन उपलब्ध कराया जाए। साथ ही उनके लिए सामुदायिक रसोई भी शुरू करने पर विचार करें। इसके लिए मजदूरों से कोई पहचान पत्र भी न मांगा जाए। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि जो मजदूर घर वापस लौटना चाहें, प्रशासन उनके लिए परिवहन की व्यवस्था कराए। जस्टिस शाह ने पूछा कि पिछले साल के आदेश पर क्या किया? हम उस पर गौर करेंगे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहताöहम महामारी से लड़ रहे हैं। हमें महामारी से लड़ने दें। पिछली बार सब बंद था। इस बार औद्योगिक ईकाइयों का निर्माण जारी है। दो-तीन को छोड़कर यह नहीं कह सकते कि सभी राज्य गैर-जिम्मेदार हैं। जस्टिस भूषणöएनसीआर में मजदूरों से चार-पांच गुना किराया वसूलने की बातें आ रही हैं। मेहताöहमारी योजना पलायन को प्रोत्साहन देने के लिए नहीं है। जस्टिस शाहöमजदूरों की मानसिकता और आशंकाएं अलग होती हैं। मेहताöयह याचिका जमीनी स्थिति देखकर नहीं बल्कि ड्राइंग रूम में बैठकर बनी है। जस्टिस शाहöआप यह जानकारी रिकॉर्ड पर रखें कि पिछले साल के आदेश पर क्या-क्या किया? भूषणöपिछली बार केंद्र ने कहा कि मजदूर सड़क पर नहीं हैं। अब कह रहे हैं कि मजदूर फ्री ट्रेन के चक्कर में काम छोड़ देंगे। जस्टिस भूषणöहम किसी फ्री राइड का आदेश नहीं देने जा रहे। मेहताöराज्यों को जवाब दायर करने दें। स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। ऑक्सीजन, अस्पतालों के इंतजाम या बदइंतजामी से घिरी राज्य सरकारों को सिवाय कोरोना से लड़ने के कुछ और नहीं सूझ रहा है। पर दूसरे मसले बराबर बने हुए हैं। दुखद यह है ]िक जो समस्याएं गत वर्ष देखी गई थीं, लगभग वैसी ही समस्याएं प्रवासी कामगारों की इस साल भी देखी जा रही हैं। अचानक लॉकडाउन की घोषणा, फिर प्रवासी कामगारों में भगदड़, अपने गांव जाने की जल्दबाजी। इससे यही साबित होता है कि प्रवासी कामगारों को यकीन ही नहीं हो पा रहा है कि ठप कारोबार या बंद उद्योगों के दौर में उनको खाने के लिए पैसे कहां से आएंगे? मकान मालिक को किराया कैसे देंगे? यह तमाम राज्य सरकारों की तरफ से उन्हें कुछ न्यूनतम सहायता भी मिलेगी या नहीं? समस्या लंबी खिंच रही है, इसके लिए सुविचारित नीति की जरूरत होती है, सिर्प फौरी उपायों से बात नहीं बनेगी।

कोरोना में हर एक का प्रयास मायने रखता है

महानायक अमिताभ बच्चन ने दान के लिए ऑक्सीजन सांद्रक और वेंटिलेटर की कठिन प्रक्रिया को शुक्रवार को सम्मान करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में प्रत्येक व्यक्ति का प्रयास मायने रखता है। अमिताभ ने कोरोना काल में अपने द्वारा जनहित कार्यों का ब्यौरा दिया है। रविवार को ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने श्रीगुरु तेग बहादुर कोविड केयर फैसिलिटी को अमिताभ द्वारा दो करोड़ रुपए का दान दिए जाने की जानकारी दी थी। बिग बी ने ब्लॉग में लिखाöहां मैं चेरिटी करता हूं और हमेशा बोलने की जगह करने में यकीन करता हूं। हर रोज गालियों और अपमानजनक टिप्पणियों का दबाव रहता है। अपने जनहित कार्यों का ब्यौरा देते हुए लिखाöआंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और यूपी में किसानों के बढ़ते आत्महत्या के मामलों के मद्देनजर उन्हें आत्महत्या से रोकने को 1500 से ज्यादा किसानों के लोन चुकाए। संबंधित बैंकों से उनकी पहचान करके किसानों को जनक (अमिताभ का घर) में बुलाया गया और बैंक प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कर्जमुक्ति का प्रमाण पत्र भी सौंपा गया। पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों के स्वजनों को जनक में मदद की गई। पिछले साल महामारी के दौरान देश के करीब चार लाख दिहाड़ी मजदूरों को एक माह खाना दिया। व्यक्तिगत फंड से हजारों फ्रंटलाइन कर्मियों की पीपीई किट और मास्क मुहैया कराए। व्यक्तिगत खर्च पर 2800 प्रवासी यात्रियों को मुंबई से उत्तर प्रदेश ले जाने की पूरी ट्रेन बुक की। ट्रेनें रुकने पर तीन चार्टेड विमानों से 180 प्रवासियों को उत्तर प्रदेश, राजस्थान व जम्मू-कश्मीर पहुंचाया गया। दिल्ली में बंगला साहिब गुरुद्वारे में डायोनॉस्टिक सेंटर खुलवाया, जिसमें उनके नाना-नानी और मां के नाम से एमआरआई मशीन, सोनोग्राफी, सीटी स्कैन जैसे कई उपकरण मुहैया करवाए गए। रविवार को दिल्ली में 250-450 केंद्र का कोरोना केयर स्थापित किया गया। बीएमसी की जरूरतों को देखते हुए 20 वेंटिलेटर ऑर्डर किए गए हैं। जुहू (मुंबई) के ऋतम्भरा स्कूल में 25-25 बैड का कोविड केयर सेंटर तैयार किया जा रहा है। नानावती अस्पताल को तीन मशीनें दान दी गईं। झोपड़पट्टी में रहने वाले 1000 गरीबों को भोजन मुहैया कराया जा रहा है। दो अनाथ बच्चों को गोद लिया गया है।

मुख्तार का कोई बदमाश जिंदा नहीं रहेगा

चित्रकूट जेल में हुआ गैंगवार किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। अंशु दीक्षित उर्प सुमित दीक्षित ने मुकीम काला की बैरक में घुसते ही समुदाय विशेष के बदमाश के जिंदा न रहने की बात कहते हुए उसे गोलियों से भून दिया। इससे पहले अंशु ने परेड के दौरान मेराज को यह कहते हुए गोलियों से भून डाला कि मुख्तार का खास कोई भी जिंदा नहीं रहेगा। कुछ देर बाद अंशु एनकाउंटर में पुलिस की गोली से मारा जाता है। दरअसल सुबह करीब 10 बजे अंशु बैरक से निकलता है, वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों से उसने कहा कि वह पीसीओ जा रहा है, किसी को फोन करना है। तब किसी को अंदाजा नहीं था कि वह क्या करने वाला है। इस वक्त उसके पास पिस्टल थी। एक बड़े पुलिस अफसर ने बताया कि मेराज को देखते ही अंशु ने उस पर पिस्टल तान दी। उसने कहा कि तुम लोगों ने बहुत आतंक मचा लिया। अब मुख्तार अंसारी का खेल खत्म हो चुका है। उसका कोई भी गुर्गा जिंदा नहीं रहेगा। अब तक मेराज कुछ समझ पाता अंशु ने उस पर गोलियां दाग दीं। गोलियों की तड़तड़ाहट से वहां भगदड़ मच गई। कुछ ही सैकेंड बाद वह अस्थायी बैरक में पहुंचा जहां पर मुकीम काला का पकड़ लिया। उससे कहा कि तुम्हारा इंतजार था। मुख्तार का कोई बदमाश जिंदा नहीं रहेगा। खेल खत्म। तुरन्त मुकीम को भी गोलियों से भून दिया। मुकीम काला सात मई को ही चित्रकूट जेल में शिफ्ट किया गया था। कोरोना के प्रोटोकॉल के मुताबिक वो अस्थायी जेल में क्वारंटीन था। क्वारंटीन का समय पूरा होने के बाद उसको भी हाई सिक्यूरिटी बैरक में शिफ्ट किया जाना था। सवाल यह है कि जेल में एक अपराधी के पास इतना हथियार कैसे पहुंच गया कि वह जेल प्रशासन के कब्जे में ही नहीं आ रहा था? चूंकि अंशु दीक्षित उस जेल में पहले से ही था। ऐसे में माना जा सकता है कि जेल अधिकारियों की मिलीभगत से उसके पास हथियार पहुंचे होंगे। यह घटना अपराधी सरगना से राजनेता बने मुख्तार अंसारी के गुर्गों के बीच वर्चस्व की लड़ाई लगती है। अंशु दीक्षित मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर था, तो मेराज पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार का सहायक था, जिसका अंशु के साथ विवाद था। जबकि दो लाख का इनामी बदमाश मुकीम काला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय था, जिसके आतंक से व्यापारियों का पलायन शुरू हुआ था। गौरतलब है कि मुख्तार अंसारी के गुर्गों के कैराना बीच जेल में यह खूनी भिड़ंत तब हुई, जब उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों के बाद मुख्तार को पिछले महीने ही पंजाब से लाकर सूबे की बांदा जेल में रखा गया, जबकि उसके परिजन उत्तर प्रदेश की जेल में उसके मारे जाने की आशंका जता चुके हैं। यह आशंका निराधार भी नहीं है। जुलाई 2018 में माफिया मुन्ना बजरंगी की बागपत जिला में हत्या कर दी गई थी, तो दुर्दांत अपराधी सरगना विकास दुबे को पिछले साल उज्जैन से उत्तर प्रदेश लाते हुए मुठभेड़ में मार गिराया था। इस तरह की घटनाएं सुशासन के नाम पर धब्बा हैं, जिन पर अंकुश लगाना अत्यंत आवश्यक है। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 16 May 2021

कॉलर ट्यून का क्या फायदा, जब टीके ही नहीं

जब टीका ही नहीं है तो कौन टीका लगवाएगा? ऐसा न हो कि आप कोई एक कॉलर ट्यून तैयार कर लें और फिर 10 साल तक उसे चलाते रहें। आपको हालात देखते हुए उसके हिसाब से काम करना चाहिए। यह सवाल दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को उठाए, केंद्र के वकील के पास कोई जवाब नहीं था। जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की बेंच की टीके की कमी को लेकर यह टिप्पणियां तब सामने आईं, जब वह कोरोना से भयभीत जनता के बीच जागरुकता लाए जाने के तरीकों के मुद्दे पर सुनवाई कर रहे थे। इसी बीच दिल्ली सरकार के सीनियर एडवोकेट राहुल मेहरा ने कहा कि अब जो भी लहर आएगी, उसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों और युवाओं पर पड़ने का अनुमान है। क्योंकि अब वही हैं जिन्हें टीका नहीं लगा है। मेहरा ने कहा कि उम्मीद करते हैं कि हम सबको शायद वैक्सीन लग जाए। अभी तक कोरोना से बचने का यही एक तरीका है। जस्टिस सांघी ने केंद्र के वकील के सामने सवाल खड़े किए। शुरुआत बच्चों के लिए कोरोना से बचाव के टीके को विकसित किए जाने से जुड़ी कोशिशों को लेकर हुई। जो जवाब मिला, उसी पर अदालत ने उक्त टिप्पणी की। बेंच ने कहाöलोग जब कॉल करते हैं तो हमें नहीं पता कि आप कितने दिनों से एक परेशान करने वाला संदेश सुना रहे हैं कि लोगों को टीका लगवाना चाहिए जबकि आपके पास (केंद्र सरकार) पर्याप्त टीका नहीं है। उन्होंने कहाöआप लोगों का टीकाकरण नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप फिर भी कह रहे हैं कि टीका लगवाएं। कौन लगवाए टीका, जब टीका ही नहीं है। इस संदेश का मतलब क्या है। अदालत ने सुझाव दिया कि ऐसे वीडियो क्लिप, कॉलर ट्यूनस आदि तैयार करें जिसके जरिये जनता की भाषा में ही यह जानकारी जनता तक पहुंचाएं। आप इसके लिए टीवी एंकरों, गुलेरिया, त्रेहन जैसे नामी डॉक्टरों, फिल्म अभिनेताओं आदि से मदद ले सकते हैं। दिल्ली सरकार के वकील ने अमिताभ बच्चन का नाम लिया। इन सुझावों को संबंधित मंत्रालयों तक पहुंचाने के लिए सरकार ने वक्त मांगा।

जानलेवा हो सकता है कालरा का कंसंट्रेटर

ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी के मामले में फरार चल रहे नवनीत कालरा का एक और काला कारनामा सामने आया है। लोगों से मुंहमांगी कीमत वसूलने के बाद कालरा जो कंसंट्रेटर लोगों को बेच रहा था, उनकी गुणवत्ता इतनी खराब है कि वह किसी की जान बचाने के बजाय जानलेवा हो सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने कालरा के कंसंट्रेटर की लैब में जांच कराई तो घटिया गुणवत्ता की पुष्टि हुई है। चीन में बने यह कंसंट्रेटर सिर्फ 38 प्रतिशत ऑक्सीजन दे रहे हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से न्यूनतम 82 प्रतिशत ऑक्सीजन मिलनी चाहिए। मामले में गिरफ्तार किए जा चुके पांच आरोपियों से पूछताछ और उनके मोबाइल की जांच करने से पता चला है कि करीब सौ लोगों को घटिया गुणवत्ता के कंसंट्रेटर बेचे गए हैं। पुलिस का कहना है कि कालरा की तरफ से बेचे गए कंसंट्रेटर के इस्तेमाल से मरीज को खतरा भी हो सकता है। हालांकि अभी तक इस तरह की किसी घटना की जानकारी नहीं मिली है। अगर कंसंट्रेटर की वजह से कोई अप्रिय घटना की सूचना मिलेगी, तो कालरा के खिलाफ लापरवाही से हुई मौत की धारा भी जोड़ दी जाएगी। कालरा ने दिसम्बर में ही चीन से मैट्रक्सि सेल्युलर कंपनी के जरिये हजारों की तादाद में कंसंट्रेटर मंगाए थे। इनमें दो तरह के कंसंट्रेटर थे जो एक सात और दूसरे नौ लीटर क्षमता के थे। इनकी कीमत 12,500 से 20 हजार रुपए थी, लेकिन कालरा इन्हें तीन से चार गुना अधिक कीमत में बेचता था। कालरा के वॉट्सएप पर ग्राहकों ने कंसंट्रेटर के बारे में शिकायत भी की थी और उसे बताया था कि कंसंट्रेटर काम नहीं कर रहे हैं, लिहाजा पैसा लौटा दो, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ताओं के कंसंट्रेटर की पुलिस ने जब निजी लैब में जांच कराई तो घटिया गुणवत्ता का पता चला।

फंगल इंफैक्शन का बढ़ता खतरा

दिल्ली में कोरोना के मामलों में कुछ राहत देखने को मिली ही थी कि अब कोविड से शिकार हो रहे मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस नामक फंगल इंफैक्शन के मामले सामने आने लगे हैं। पहले भी यह मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन बीते 10 से 12 दिनों में जो केस आ रहे हैं, वह हैरान करने वाले हैं। सबसे ज्यादा केस सरगंगाराम अस्पताल में देखने को मिल रहे हैं। गंगाराम अस्पताल के अलावा कुछ अन्य अस्पतालों में भी इसके मामले आ रहे हैं। गंगाराम अस्पताल में ईएनटी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. अजय स्वरूप बताते हैं कि ऐसे मामले ज्यादा उन लोगों में पाए जाते हैं, जिनकी इम्यूनिटी बेहद कमजोर है, जिन्हें कोविड के ट्रीटमेंट में ज्यादा स्टेराइड दिए गए हैं, डायबिटीज, एचआईवी, कैंसर या अन्य किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। पहले भी इस फंगल इंफैक्शन के केस आते थे, लेकिन वह रेयर होते थे। पिछले 10 दिन में रोजाना 12 से 15 मरीज आ रहे हैं, जिन्हें इस इंफैक्शन ने पकड़ा है। इनमें से 50 प्रतिशत केस ऐसे होते हैं, जो गंभीर अवस्था में पहुंच चुके होते हैं। यह इंफैक्शन इतना खतरनाक है कि उनसे आंखों की रोशनी जा सकती है, जबड़े को निकालना पड़ सकता है और यदि यह दिमाग तक पहुंच जाए तो व्यक्ति की मौत हो जाती है। डॉ. स्वरूप कहते हैं कि पिछले साल दिसम्बर में एक हफ्ते में 10 से 15 केस आए थे, लेकिन इस बार एक दिन में 12 से 15 मामले आ रहे हैं। यह ऐसा इंफैक्शन है, जो पौधों, जानवरों और हवा में मौजूद रहता है। यदि व्यक्ति को समय पर इसका इलाज मिल जाए, तो वह बच सकता है और यदि इलाज में देरी हो जाए तो मौत भी हो सकती है। फिलहाल अन्य राज्यों से इसकी जानकारी नहीं आई है। इसलिए जरूरी है कि कोरोना के साथ-साथ इस पर भी फोकस किया जाए। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 15 May 2021

ग्रामीण इलाकों में फैलता कोरोना संक्रमण

ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैलती कोरोना महामारी ने चिन्ता और बढ़ा दी है। रिपोर्ट बता रही है कि अब ग्रामीण इलाकों में संक्रमण पैर पसार चुका है। बिहार के बक्सर जिले में गंगा में और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना में तैरते शवों की वजह से रौंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य हमारे सामने आ रहे हैं। यह इस महामारी से उपजी बदहाली और बेबसी को ही दिखा रहा है। जितने मामले आ रहे हैं उसमें लगभग आधे मामले ग्रामीण इलाकों से हैं। मौतों का आंकड़ा शहरों के मुकाबले चार गुना ज्यादा हैं। यह अंदाजा भी लगाना मुश्किल है कि गांवों में हालात किस तेजी से बिगड़ रहे हैं। दुख से कहना पड़ता है कि ऐसा नहीं कि यह सब अचानक हुआ या सरकारों को इसका अंदेश पहले से नहीं रहा होगा। विशेषज्ञ लगातार चेतावनी देते रहे कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण फैलना कहीं ज्यादा बड़ा खतरा होगा। पर जिस तरह से गांवों को लेकर हर स्तर पर अनदेखी और लापरवाही होती रही, उसी का नतीजा है कि अब वहां हालात बदतर हो रहे हैं। अभी मुश्किल यह है कि सरकारें शहरों में मचे हाहाकार से ही निपट पाने में लाचार हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि गांवों में संक्रमण के फैलने से कैसे रोका जाए? संभवत यह कभी साबित नहीं हो सकेगा कि इनमें से कितने लोगों की मौतें वास्तव में कोरोना से ही हुई है, लेकिन जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वह बेहद पीड़ादायक और चिन्ता बढ़ाने वाले हैं। गंगा और यमुना को मोक्षदायिनी नदियां कहा जाता है, उनमें करोड़ों लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं, लेकिन यह दृश्य गहरी हताशा और गहरे संताप को व्यक्त कर रही है। इनसे यह भी पता चलता है कि गांवों में महामारी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं और सारी व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है। ग्रामीण के हवाले से जो खबर आ रही है उनसे तो लगता है कि अनेक लोगों ने संक्रमण फैलने की आशंका के साथ ही, इसलिए भी अपने परिजनों के शव नदियों में बहा दिए, क्योंकि महामारी से उपजी आर्थिक मुश्किलों से उनके पास अंतिम संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे। यही नहीं, ग्रामीण इलाकों में अंतिम संस्कार के लिए जगह कम पड़ रही है। नदियों में इस तरह शव मिलने से गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए भी चिन्ता की बात है। मगर अभी सबसे बड़ी चिन्ता तो यह होनी चाहिए कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए कैसे व्यापक कदम उठाए जाएं। दूसरी बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है। अस्पतालों, डॉक्टरों की कमी से भी समस्या बिगड़ती जा रही है। सरकारों को इस ओर ध्यान देना होगा नहीं तो यह समस्या कंट्रोल करनी मुश्किल हो जाएगी।

सबसे महंगे दाम पर भारत में बिक रही है वैक्सीन

भारत में प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों में कोरोना वैक्सीन की एक डोज के लिए 700 रुपए से लेकर 1500 रुपए वसूले जा रहे हैं। यह बात कोविन वेबसाइट पर मौजूद डेटा के जरिये सामने आई है। ईटी नाऊ की रिपोर्ट के मुताबिक यह दाम 18 से 44 साल की उम्र वालों के लिए है, जो कि 45+ की उम्र वालों के लिए तय दाम से छह गुना ज्यादा हैं। अभी इस उम्र के लोगों को 250 रुपए में कोरोना का एक टीका लगाया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक कोविशील्ड के एक डोज के लिए अस्पताल 700 से 900 रुपए के बीच ले रहे हैं जबकि कोवैक्सीन का एक डोज 1250 से 1500 रुपए तक में पड़ रहा है। बता दें कि कोविशील्ड सीरम इंस्टीट्यूट बना रहा है जबकि कोवैक्सीन भारत बायोटेक बना रही है। कोविन वेबसाइट के मुताबिक प्राइवेट सेक्टर में जो वैक्सीनेशन चल रहा है, वह मुख्य तौर पर चार बड़े कारपोरेट हॉस्पिटल ग्रुप ओपोलो, मैक्स, फोर्टिस और मणिपाल ही चला रहे हैं। यह बात गौर करने वाली है कि ज्यादातर देश जहां अपने नागरिकों के लिए पैसा नहीं ले रहे, वहीं भारत न सिर्फ पैसा लेता है, बल्कि प्राइवेट सेक्टर में टीके की कीमत दुनियाभर के देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। बता दें कि टीकाकरण के पहले और दूसरे चरण में केंद्र हर रोज 150 रुपए में खरीद रहा है और उसे राज्य सरकारों व प्राइवेट अस्पतालों को सप्लाई कर रहा था। प्राइवेट सेक्टर भी उस टीके को लगाने के लिए 150 रुपए फीस वसूल रहा था। हालांकि तीसरे चरण के लिए एक डोज लगाने के बदले अस्पताल ढाई सौ से तीन सौ रुपए तक की फीस वसूल रहा है। इस बारे में एक अस्पताल की प्रवक्ता ने बताया कि कोविशील्ड की एक डोज की कीमत 660 से 670 रुपए ठहरती है। इसमें ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, जीएसटी सब खर्च शामिल हैं। वहीं 5-6 प्रतिशत बर्बादी भी होती है, इसलिए एक डोज 710-715 रुपए तक की पड़ रही है। वहीं वैक्सीन लगाने के चार्ज में हैंड सैनिटाइजर, स्टाफ की पीपीई किट, बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजन आदि भी शामिल है। इनकी कीमत 170-180 ठहरती है। इस तरह एक डोज प्राइवेट अस्पताल में 900 रुपए पड़ती है।

निजी अस्पतालों की फीस की सीमा करें तय

हरियाणा के परिवहन मंत्री मूलचन्द शर्मा ने कहा कि कोरोना के इलाज की रेट लिस्ट न लगाने वाले निजी अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल तो होगा ही उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा। शिकायत मिलने पर अस्पताल का पांच दिन का रिकॉर्ड भी चैक किया जाएगा। इसके अलावा फल, सब्जियों, किराना व अन्य सामान के अधिक रेट लेने वालों से भी सरकार सख्ती से निपटेगी। इसलिए दुकानदारों को सख्त चेतावनी है कि वह सरकार की ओर से निर्धारित किए गए रेट ही लें। कैबिनेट मंत्री ने कुछ अस्पतालों की ओर से कोरोना मरीजों से अधिक पैसे लेने की शिकायत मिलने के बाद सोमवार को यह चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता को ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। कैबिनेट मंत्री ने कहा कि सरकार ने कोविड-19 के दूसरे चरण के हालातों के मद्देनजर लॉकडाउन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। इधर कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पतालों द्वारा जमकर फीस वसूलने को दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। न्यायमूर्ति विपिन सिंघवी, न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कहा है कि वह निजी अस्पतालों की एसोसिएशन के साथ बैठकर कोरोना के इलाज की फीस तय करें, जिससे आम लोगों को इस मुश्किल घड़ी में दिक्कत न हो। पीठ ने सचिव से इस बात की जानकारी 17 मई को देने के लिए कहा है। पीठ ने सरकार से पूछा कि कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पताल अधिकतम कितनी फीस चार्ज कर सकते हैं? कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि उसने अधिकतम फीस को लेकर अब तक कोई एक्शन क्यों नहीं लिया। कोर्ट ने दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों की सुविधा के लिए बनाई गई हैल्पलाइन के तहत बुजुर्गों को दी जाने वाली सुविधा पर भी सरकार से जवाब मांगा है। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 12 May 2021

कांग्रेस पृष्ठभूमि के नौवें भाजपा सीएम हिमंत

हिमंत बिस्व सरमा के असम का मुख्यमंत्री चुने जाने के साथ ही कांग्रेस से बाहर जाकर मुख्यमंत्री बनने वाले नेताओं के आंकड़ों में इजाफा हो गया है। अब देश में नौ गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री कांग्रेस की सियासी पृष्ठभूमि से होंगे। पूर्वोत्तर के सात में से पांच राज्यों के मुख्यमंत्री कांग्रेसी हो जाएंगे। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं, उनमें से तीन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों का सफर कांग्रेस से ही शुरू हुआ था। असम में भाजपा का चमकता सितारा बन चुके हिमंत को कांग्रेस छोड़े छह साल भी नहीं हुए और वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं। हिमंत ने 2015 के अगस्त में जब कांग्रेस छोड़ी थी, तब पार्टी के बड़े नेता के रूप में उभर चुके थे, मगर तब न तो तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने उन्हें अहमियत दी और न ही हाई कमान ने। हिमंत ने तब कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया और 2016 में भाजपा की प्रदेश में पहली सरकार के कद्दावर मंत्री बने। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हैं। ममता की राजनीतिक पहचान भी कांग्रेस से बनी थी। बेहद युवा उम्र में लोकसभा सदस्य से लेकर नरसिंह राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकीं ममता ने 1997 में कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व से खफा होकर पार्टी बनाई और आज बंगाल में कांग्रेस का सफाया हो गया है। पुडुचेरी में मार्च तक सत्ता में रही कांग्रेस को उसके ही एक पूर्व दिग्गज एन. रंगासामी ने सत्ता से बाहर किया है। रंगासामी पहले प्रदेश में कांग्रेस सरकार के सीएम रह चुके हैं। कुछ साल पूर्व उन्होंने कांग्रेस छोड़ एनआर कांग्रेस बना ली व इस चुनाव में राजग साझीदार के रूप में कांग्रेस से सत्ता छीन ली। अरुणाचल के सीएम पेमा खांडू ने 2017 में कांग्रेस के 43 विधायकों के साथ पाला बदल भाजपा में आए और वह राज्य के मुख्यमंत्री हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. वीरेन्द्र सिंह ने 2016 में कांग्रेस छोड़ी तो वह सूबे की कांग्रेस सरकार के मंत्री थे। नागालैंड के सीएम निधियू रियो एक दशक तक राज्य में कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। 2002 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और 2003 में क्षेत्रीय पार्टी का गठबंधन बना चुनाव जीता और सीएम बने। मेघालय में कोनार्ड संगमा एनपीपी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री हैं और वह कांग्रेस के पुराने दिग्गज पीए संगमा के पुत्र हैं। आंध्र में तो 2014 में कांग्रेस ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी चलाई और आंध्र के बंटवारे व नेतृत्व की अनदेखी के बाद जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर वाईएसआर कांग्रेस बना ली। 2019 के चुनाव में जगन बड़ी जीत के साथ आंध्र के सीएम बने। तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव ने भी सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था। असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा ने एक बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पिद्दी वाले ट्वीट की खिल्ली उड़ाई थी। अक्तूबर 2017 में राहुल ने एक ट्वीट किया था जिसमें वह पालतू डॉग पिद्दी के साथ थे। सरमा ने ट्वीट किया था, उन्हें मुझसे बेहतर कौन जानता है। मुझे याद है कि जब हम अहम मसलों पर चर्चा करना चाहते थे, आप उसे (पिद्दी को) बिस्कुट खिलाने में व्यस्त थे। आज अगर कांग्रेस का यह हाल है तो इसका जिम्मेदार खुद कांग्रेस नेतृत्व है। उन्होंने काबिल नेताओं को नजरंदाज किया और भाजपा ने उसका फायदा उठाया।

सेंट्रल विस्टा परियोजना सवालों के घेरे में

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना सेंट्रल विस्टा पर चारों ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं। हालांकि यह परियोजना शुरू हुए लंबा समय हो गया, लेकिन देश में कोरोना महामारी के चलते विपक्ष इस परियोजना पर हो रहे खर्च को लेकर जहां सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है वहीं इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी वार छिड़ी हुई है। यहां तक कि सोशल मीडिया पर फर्जी फोटो जारी कर इस परियोजना के नाम पर सैकड़ों पेड़ काटने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। इंडिया गेट से विजय चौक तक सेंट्रल विस्टा का पुनरुद्धार करने की योजना केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है। इसी परियोजना के एक हिस्से के रूप में सेंट्रल विस्टा के दोनों ओर मंत्रालयों के लिए नए भवन बनाए जाने तथा नए संसद भवन का निर्माण भी किया जाना है। इस परियोजना पर काम शुरू हो गया है। वर्ष 2020 में जब देश में पहली बार कोरोना संकट आया था तो भी उस दौरान कांग्रेस ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को बंद करने की मांग की थी अब जब कोरोना की दूसरी लहर से देश त्राहि-त्राहि कर रहा है तो एक बार फिर विपक्ष इस परियोजना पर होने वाले खर्च को लेकर सरकार को घेर रहा है। विपक्ष का आरोप है कि कोरोना संकट काल में हजारों करोड़ क्यों खर्च किए जा रहे हैं? केंद्र सरकार के अनुसार इस परियोजना पर कुल 20 हजार करोड़ खर्च होंगे और यह परियोजना वर्ष 2024 तक पूरी होगी और यह राशि एक साथ खर्च नहीं की जा रही है। अब तक 862 करोड़ रुपए के काम आबंटित किए गए हैं। सरकार इस बात का तर्प भी दे रही है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार इस वर्ष लगभग तीन लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है। शिवसेना ने शनिवार को कहा कि कोविड-19 से निपटने में जहां पड़ोस के छोटे देश भारत की मदद की पेशकश कर रहे हैं वहीं सरकार कई करोड़ के सेंट्रल विस्टा परियोजना के काम को रोकने के लिए भी तैयार नहीं है। पार्टी ने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह समेत पूर्व प्रधानमंत्रियों द्वारा पिछले 70 वर्ष में बनाई गई व्यवस्था ने देश को कठिन समय से पार पाने में मदद की है जिसका सामना वह आज कर रहा है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के एक संपादकीय में कहाöयूनिसेफ ने डर व्यक्त किया है कि भारत में जिस गति से कोरोना फैल रहा है उससे दुनिया को विषाणु से खतरा है। उसने यह भी अपील की है कि अधिकतम देशों को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत की मदद करनी चाहिए। बांग्लादेश ने रेमडेसिविर की 10 हजार शीशियां भेजी हैं जबकि भूटान ने चिकित्सकीय ऑक्सीजन, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका ने आत्मनिर्भर भारत की मदद की पेशकश की है। इसमें कहा गयाöसाफतौर पर भारत नेहरू-गांधी द्वारा बनाई गई व्यवस्था के सहारे है कई गरीब देश भारत को मदद की पेशकश कर रहे हैं। इससे पहले पाकिस्तान, रवांडा और कांगो जैसे देश दूसरों से मदद ले लेते थे। लेकिन आज के शासकों की गलत नीतियों के चलते भारत आज इस स्थिति से गुजर रहा है। शिवसेना ने कहा कि जहां गरीब देश अपने-अपने तरीके से भारत की मदद कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री 20 हजार करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना को रोकने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी ने इस बात पर आश्चर्य जताया। शिवसेना ने कहा कि दुनिया कोविड-19 वैश्विक महामारी की दूसरी लहर से जूझ रही है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि तीसरी लहर और खतरनाक होगी लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा को आज भी बस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को कैसे घेरना है इसकी पड़ी है। उसने कहा कि भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने स्वास्थ्य मंत्रालय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को देने की मांग की है और यह इस बात का सुबूत है कि मौजूदा स्वास्थ्य मंत्रालय पूरी तरह विफल रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 11 May 2021

क्या ममता की जीत से संघ खुश है?

अगर यह कहा जाए कि बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की जीत से आरएसएस खुश है तो क्या आप यह बात हजम कर पाएंगे? निश्चय ही आप सोचने पर मजबूर हो गए होंगे कि क्या यह बात सही है? 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा बुरी तरह हार गई और इसका पालक संगठन इससे कैसे खुश होगा? नरेंद्र मोदी और भाजपा, दोनों ही राजनीतिज्ञ या पार्टी का अंतिम लक्ष्य चुनाव जीतना और सरकार बनाना है। लेकिन आरएसएस शुरू से अंत तक धार्मिक संस्था मानी जाती है और उसका लक्ष्य सत्ता पर कब्जा इतना ही नहीं है जितना भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। संघ का मूल उद्देश्य है हर हिन्दू में हिन्दुत्व का गौरव पैदा करना। बंगाल चुनाव-प्रचार के दौरान ममता बनर्जी का चंडी-पाठ और खुद को ब्राह्मण परिवार की बेटी के रूप में दिखाना, बेशक मोहन भागवत के लिए खुशी की बात होगी। इसे लेकर सवाल उठ सकता है कि भाजपा के हिन्दुत्व को लेकर तो बहुत सारी बातें होती हैं, तो फिर? दरअसल यहां का समीकरण थोड़ा हटकर है। हिन्दुत्ववादी पार्टी का तमगा तो शुरू से ही भाजपा को मिला हुआ है। लेकिन हाल के कुछ चुनावों ने यह समझा दिया कि सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं, अरविन्द केजरीवाल से लेकर राहुल गांधी तक, हर राजनेता चुनाव के समय कुशलतापूर्वक हिन्दुत्व का सहारा लेता है। केजरीवाल को हनुमान चालीसा का पाठ करना पढ़ रहा है, वहीं राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर जाकर जनेऊ दिखाना पड़ रहा है। हिन्दुत्ववादी संगठन के तौर पर भाजपा हमेशा ही कट्टर हिन्दुत्व की पक्षधर रही है। लेकिन आरएसएस की चिन्ता है कि अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने को हिन्दुत्व के रूप में उजागर करने में सहज महसूस नहीं करते। ऐसे में वर्तमान हालात में इतिहास का पहिया अगर घूमता है और हर राजनीतिक दल के नेता हिन्दू अस्मिता को उजागर करने में जुट जाएं तो क्या संघ को खुशी नहीं मिलेगी? लंबे समय से पल रही उम्मीद संघ को खुशी देने के बावजूद भाजपा की नींव को हिलाने के लिए पर्याप्त है। बंगाल चुनाव मोदी और भाजपा के लिए खतरे का संकेत जरूर है। शून्य से सीधे इतनी सीटें जीतना बेशक बड़ी सफलता है, पर आंकड़ों की कसौटी पर एक बड़ी असफलता की ओर इशारा करता है। वर्ष 2016 के बंगाल चुनाव में सिर्फ तीन सीटें और 10 प्रतिशत वोटों से ही भाजपा को संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उससे बहुत आगे 18 सीटें और 40 प्रतिशत वोट मिले। लोकसभा सीट के इस परिणाम से स्वाभाविक तौर पर 2021 के विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साह था। प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह व अन्य केंद्रीय नेता बाकी सब कुछ छोड़कर बंगाल को ही लक्ष्य करके मैदान में उतर पड़े, लेकिन बाजी हाथ से निकल गई। इस हार के कई कारण हैं। वर्ष 2002 में जिस तरह नरेंद्र मोदी गुजराती अस्मिता का कार्ड खेलकर गुजरात चुनाव जीते उसी प्रकार ममता ने 2021 में भाजपा का आक्रामकता के जवाब में बंगाल अस्मिता का इस्तेमाल किया। भाजपा के जय श्रीराम का नारा जैसा असर उत्तर भारत में छोड़ता है, वैसा बंगाल में नहीं छोड़ पाया। इसके जवाब में ममता ने जय चंडी, जय दुर्गा का नारा देकर बंगालियों का दिल जीत लिया। इसके विपरीत भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दिलीप घोष ने बंगाल की नारीशक्ति दुर्गा की पहचान को लेकर जिस तरह का व्यंग्य किया, उससे भी पार्टी के विरोध में बंगालियों का असंतोष बढ़ा। बंगाली संस्कृति को लेकर भाजपा की समझ की कमी ने ममता मुद्दा बनाकर भुनाया। बंगाल अपनी बेटी को बहुमत के साथ वापस लौट आया है और झटका लगा है ]िहन्दुत्ववादी सर्वेसर्वा भाजपा को।

खान मार्केट गैंग का कोविड कनेक्शन

लोधी कॉलोनी के रेस्तरां-बार से 419 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बरामदगी के मामले में दक्षिण जिला पुलिस ने शुक्रवार को खान मार्केट के दो बड़े खान चाचा और टाउन हॉल रेस्तरां में छापेमारी की। पुलिस ने दोनों रेस्तरां से करीब 105 कंसंट्रेटर बरामद किए। पुलिस ने एक आरोपी की निशानदेही पर खान चाचा रेस्तरां से 96 और टाउन हॉल से नौ कंसंट्रेटर मशीन बरामद की हैं। पुलिस अब तक कुल 524 मशीनें बरामद कर चुकी है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तीनों ही रेस्तरां का मालिक नवनीत कालरा नामक शख्स है। पुलिस ने इस मामले में एक कंपनी मैट्रिक सेल्यूलर सर्विस लिमिटेड कंपनी के सीईओ गौरव खन्ना को गिरफ्तार किया है। गौरव ने सभी मशीनें विदेश से आयात की थीं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में और गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं। दक्षिण जिला पुलिस अतुल कुमार ठाकुर ने बताया कि बुधवार को लोधी कॉलोनी थाना पुलिस ने सेंट्रल मार्केट के एक रेस्तरां में छापेमारी की थी। वहां से पुलिस ने 419 कंसंट्रेटर बरामद कर चार लोगोंöगौरव, सतीश सेठी, विक्रांत और हितेश को गिरफ्तार किया था। आरोपी रेस्तरां-बार नेगजू में ऑनलाइन इन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी कर रहे थे। पुलिस ने यहां से अन्य सामान भी बरामद किए। रेस्तरां-बार नवनीत कालरा नामक शख्स का था। पुलिस ने आरोपी से पूछताछ की तो हितेश ने बताया कि कुछ अन्य कंसंट्रेटर खान मार्केट स्थित खान चाचा रेस्तरां और टाउन हॉल में भी मौजूद हैं। पुलिस टीम ने शुक्रवार को दोनों जगहों पर छापेमारी कर कुल 105 कंसंट्रेटर बरामद किए। आरोपियों के पास से अब तक कुल 524 कंसंट्रेटर बरामद हो चुके हैं। लोधी कॉलोनी स्थित नेगजु बार-रेस्तरां में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को बड़ी संख्या में स्टॉक कर उसकी ब्लैक मार्केटिंग किए जाने के खुलासे के बाद पुलिस की जांच का केंद्र बार मालिक नवनीत कालरा बना हुआ है। करीबी सूत्रों की मानें तो नवनीत कालरा का कई बड़े सेलेब्रिटी व क्रिकेटर्स से और कई बड़े रसूखदार नेताओं से अच्छे संबंध हैं। ऐसे लोग अकसर उसके बार-रेस्तरां में आते-जाते हैं। जानकारों की मानें तो ऐसे लोग नवनीत कालरा को बचाने की जुगत में जुटे हुए हैं। जरूरत पड़ने पर उसकी अग्रिम जमानत की कोशिशें भी कर रहे हैं। हालांकि फिलहाल पुलिस पूरे मामले की बारीकी से जांच कर रही है और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई किए जाने की बात कह रहे हैं। उधर पुलिस ने देर रात जांच के बाद मैट्रिक्स सेल्यूलर सर्विसेज लिमिटेड के सीईओ गौरव खन्ना (47) को गिरफ्तार कर लिया है। मंडी गांव में स्थित उक्त खुल्लर फार्म जहां से पुलिस ने 387 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बरामद किए थे, सूत्रों के मुताबिक वह फार्म हाउस असल में मैट्रिक्स सेल्यूलर सर्विसेज द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा था। इसके साथ इस मामले में अब तक पांच लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। दिल्ली में कोरोना मरीजों के बीच ऑक्सीजन की किल्लत को लेकर मचे हाहाकार के बीच कालरा के लोधी कॉलोनी व खान मार्केट स्थित बार-रेस्तरां में ब्लैक मार्केटिंग में रखे गए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की बड़ी संख्या में बरामदगी को लेकर दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव ने गहरी चिन्ता जाहिर की है। उन्होंने साथ ही इस पूरे मामले को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की सख्त लफ्जों में बात कही है। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि भारतीय हमेशा से गरीब व मजबूर लोगों की मदद के लिए सम्मान देते आए हैं। उस पर ऐसी विकट परिस्थिति में इस घटना ने भारतीयों की इस परिभाषा को ही दागदार कर दिया। उन्होंने टाउन हॉल, खान चाचा व नेगजू पर उचित कार्रवाई किए जाने का पूर्ण भरोसा दिया है।

मोदी पर सोरेन के ट्वीट पर बवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों से फोन पर बात करके कोरोना महामारी की स्थिति पर जानकारी ली। पीएम मोदी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी फोन किया था। हेमंत सोरेन ने खुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। साथ ही उन्होंने इस ट्वीट में प्रधानमंत्री पर एकतरफा संवाद का आरोप लगाते हुए तंज भी कसा। हेमंत सोरेन ने कहा कि बेहतर होता अगर पीएम मोदी काम की बात करते और काम की बात सुनते। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट में कहा कि आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया। उन्होंने सिर्फ अपने मन की बात की। बेहतर होता कि वो काम की बात करते और काम की बात सुनते। हेमंत सोरेन के इस ट्वीट के बाद कई भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, केंद्र सरकार के मंत्री समेत कई बड़े नेता सोरेन के विरोध में उतर आए। इन्होंने सोशल मीडिया पर सोरेन को नसीहत देते हुए प्रधानमंत्री के साथ खड़े नजर आए। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने हेमंत सोरेन को जवाब देते हुए कहाöकृपया संवैधानिक पदों की गरिमा को इस निम्न स्तर तक न ले जाएं। महामारी के इस कठिन समय में राजनीति नहीं होनी चाहिए। असम सरकार में मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने सोरेन को जवाब देते हुए लिखा कि आपका यह ट्वीट न सिर्फ न्यूनतम मर्यादा के खिलाफ है बल्कि उस राज्य की जनता की पीड़ा का भी मजाक उड़ाना है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हेमंत सोरेन नाखुश हैं क्योंकि उन्हें अपने राज्य से संबंधित मुद्दों के बारे में अवगत कराने की अनुमति नहीं दी गई। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 9 May 2021

मीडिया की शिकायतें बंद करें संस्थाएं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट कार्यवाही की रीयल टाइम रिपोर्टिंग पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता के तहत अभिव्यक्ति की जो आजादी है उसमें ओपन कोर्ट की कार्यवाही को कवर करना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट की उस टिप्पणी को हटाने का मामला नहीं बनता क्योंकि चुनाव आयोग को अधिकारियों के खिलाफ जो टिप्पणी की गई थी वह मौखिक थी और ऑर्डर का हिस्सा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी के दौरान मद्रास हाई कोर्ट की भूमिका सराहनीय है। लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की चुनाव आयोग के अधिकारियों पर हत्या का केस चलाने संबंधित मौखिक टिप्पणी को कठोर बताया और कहा यह अनुचित था। सुप्रीम कोर्ट में मद्रास हाई कोर्ट की उस टिप्पणी के खिलाफ चुनाव आयोग ने अर्जी दाखिल कर चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि हत्या का केस चुनाव आयोग के अधिकारियों पर चलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक संस्थानों को कोर्ट रिपोर्टिंग की शिकायत करने के बजाय अपना काम बेहतर तरीके से करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि संवैधानिक फ्रेमवर्क में चेक और बैलेंस होता है। हम कहना चाहते हैं कि कोर्ट ओपन होता है सिर्फ इन कैमरा कार्यवाही में ओपन नहीं होता। मीडिया की स्वतंत्रता में कोर्ट कार्यवाही कि रिपोर्ट भी शामिल है। इसके लिए संविधान में अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत जो अभिव्यक्ति की व्यवस्था है उसमें कोर्ट की कार्यवाही को कवर करना भी शामिल है। कोर्ट ने कहा कि यह इंटरनेट का दौर है और कोर्ट की कार्यवाही की रिपोर्टिंग को दबाया नहीं जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया को इस तरह की टिप्पणियों को रिपोर्ट करने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि यह जवाबदेही तय करती है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट और यहां तक गुजरात हाई कोर्ट ने लोगों को अदालती कार्यवाही देखने तक की इजाजत दी है।

तीसरी लहर के लिए क्या प्लान है

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना की तीसरी लहर आने की वैज्ञानिकों की चेतावनी पर चिन्ता जताते हुए कहा कि विशेषज्ञ तीसरी लहर की बात कर रहे हैं। इसमें बच्चों के प्रभावित होने की आशंका ज्यादा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहाöअगर बच्चे संक्रमित होते हैं तो मां-बाप क्या करेंगे? अस्पताल जाना होगा? इस पर क्या प्लान है? इसे देखते हुए टीकाकरण तेज करना चाहिए और बच्चों के लिए भी सोचना चाहिए। अगर आज वैज्ञानिक तरीके से तैयारी करेंगे तब इससे निपट पाएंगे। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने गुरुवार को दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी पर करीब पांच घंटे सुनवाई की। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बतायाöदिल्ली को 700 की जगह 730 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई है, लेकिन इसे अस्पताल तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली में 700 मीट्रिक टन की मांग सही नहीं। दूसरे राज्यों को ऑक्सीजन नहीं दे पाएंगे। इस पर बेंच ने कहाöऑक्सीजन अलॉट करने के साथ अस्पतालों तक पहुंचाना होगा। हम इस मसले पर दिल्ली केंद्रित नहीं करना चाहते। केंद्र अपने ऑक्सीजन आपूर्ति के फार्मूले पर फिर से विचार करे। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने बदहाली का ठीकरा केंद्र पर फोड़ा तो मेहता ने कहा कि दिल्ली सरकार कोर्ट को अखाड़ा न बनाए। उसे पर्याप्त ऑक्सीजन दी गई। इस्तेमाल के ऑडिट की जरूरत है। दिल्ली सरकार ने कहा कि दिल्ली ही क्यों पूरे देश का ऑडिट हो।

तृणमूल के कचरे को टिकट दिए, संकट में है पार्टी

बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी राजनीतिक हिंसा जारी है। साथ ही अब भाजपा में घमासान शुरू हो गया है। वरिष्ठ भाजपा नेता और मेघालय-त्रिपुरा के पूर्व गवर्नर तथागत रॉय ने कहा कि प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष और अन्य पार्टी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का नाम खराब किया है। हार पर तथागत ने कहाöइन्हीं नेताओं ने बंगाल में भाजपा चुनाव मुख्यालय और सात सितारा होटलों में बैठकर तृणमूल से आए कचरे को टिकट बांटा। अब जब कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट रहा है तो भी यह वहीं बैठकर तूफान गुजरने का इंतजार कर रहे हैं। चुनाव के बाद हो रही हिंसा पर उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकर्ता तृणमूल के जुल्मों का शिकार हो रहे हैं तो कैलाश, दिलीप, शिव, अनविन्द उन्हें बचाने नहीं जा रहे। बल्कि यह लोग इसी बात से सुकून हासिल करने की कोशिश में हैं कि भजापा तीन से 77 सीटों तक पहुंच गई। रॉय ने कहा कि मुझे अब दो बातों की आशंका है। पहली, जो कचरा टीएमसी से आया है, वह वापस चला जाएगा। दूसरा, हो सकता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को अगर पार्टी के भीतर बदलाव नजर नहीं आया तो वह भी चले जाएंगे और यह बंगाल में भाजपा का अंत होगा। रॉय को हाई कमान ने दिल्ली बुला लिया है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा जनादेश को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। केंद्र सरकार के मंत्री राज्य में आकर हिंसा भड़का रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था जब पिछले तीन महीने से चुनाव आयोग के हाथ में थी, उस दौरान हिंसा में 17 लोग मारे गए। इनमें से आधे टीएमसी के थे और आधे भाजपा के। एक कार्यकर्ता संयुक्त मोर्चा का था। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 7 May 2021

ऑक्सीजन न देना नरसंहार के समान

कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन की आपूर्ति न होने पर अदालतों ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। चाहे सुप्रीम कोर्ट हो, चाहे हाई कोर्ट हो सभी जगह सरकार की जबरदस्त खिंचाई हो रही है। दिल्ली में रोजाना 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही पर रोक लगा दी। दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी में जरूरत के मुताबिक सप्लाई न होने पर अवमानना नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस पर रोक लगा दी और कहा कि अधिकारियों को जेल में डालने से दिल्ली की ऑक्सीजन नहीं आने वाली है। हम इतना सुनिश्चित करें कि लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकें। इस कमेंट के साथ कोर्ट ने साफ किया कि वह कोरोना मामलों से जुड़ी निगरानी के लिए हाई कोर्ट को नहीं रोका जा रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने ऑक्सीजन के मुद्दे सुलझाने के लिए तुरन्त केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकारियों को बैठक करने का निर्देश दिया है। साथ ही केंद्र से गुरुवार सुबह तक बताने को कहा था कि पिछले तीन दिन में दिल्ली को कितनी ऑक्सीजन दी गई। अदालत ने कहाöहम दिल्ली के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं। हम भी यहीं रहते हैं और असहाय हैं। हम यह कल्पना कर सकते हैं कि लोग किस स्थिति में हैं। उधर उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के चलते अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह न केवल आपराधिक कृत्य है, बल्कि ऐसा करना नरसंहार से कम नहीं है। ऐसी मौतों की जवाबदेही ऑक्सीजन आपूर्ति करने वालों की है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने कहाöमेडिकल साइंस इतना आगे है कि हम हार्ट ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। ब्रेन ऑपरेट कर रहे हैं और दूसरी तरफ ऑक्सीजन की कमी से मौतें होती जा रही हैं। अदालत ने कहा कि सामान्यत कोर्ट सोशल मीडिया की खबरों पर ध्यान नहीं देती, मगर इस खबर का समर्थन वकीलों ने भी किया है कि उत्तर प्रदेश में कई जिलों में ऑक्सीजन की आपूर्ति न हो सकने के चलते मौतें हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि यह नरसंहार उन लोगों के हाथों हो रहा है जिनके पास लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन मुहैया करवाने और सप्लाई चेन बनाए रखने का जिम्मा है। यह देखना बेहद दुखदायी है कि कोविड-19 के मरीज बिना ऑक्सीजन के मर रहे हैं। हम लोगों को इस प्रकार कैसे मरने दे सकते हैं? वह भी तब जब आज विज्ञान इतना आगे निकल चुका है। पीठ ने मंगलवार को कहाöलखनऊ और मेरठ में ऑक्सीजन की कमी से मौतों की खबरें आई हैं। आमतौर पर खबरों की जांच के लिए वह सरकार या जिला प्रशासन को निर्देश नहीं देती, लेकिन बड़ी संख्या में वकीलों ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि प्रदेश में लगभग सभी जिलों में यही हालात हैं। ऐसे में लखनऊ और मेरठ के जिला अधिकारियों को निर्देश दिए जाते हैं कि वह 48 घंटे में जांच कर हमें रिपोर्ट दें। साथ ही अगली तारीख पर वीडियो कांफ्रेंसिंग में कोर्ट के सामने पेश हों।

आईपीएल पर लगी कोरोना संक्रमण की मार

कोरोना की मार आईपीएल पर भी पड़ गई है। कोलकाता और चेन्नई के बाद हैदराबाद और दिल्ली के सदस्यों के संक्रमित पाए जाने के बाद बीसीसीआई और आईपीएल संचालन परिषद ने लीग को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का फैसला लिया है। हालांकि मंगलवार सुबह से लीग के अगले सभी मैच मुंबई में कराए जाने की बात हो रही थी। लेकिन सनराइजर्स के साहा के संक्रमित होने पर इसे स्थगित करने में भलाई समझी गई। हमारी समझ से आईपीएल का आयोजन हमारे यहां कोरोना काल में होना ही नहीं चाहिए था। अभी कुछ ही महीने पहले आईपीएल का पिछला सीजन खत्म हुआ था। इसे शुरू से ही सर्दियों में करना चाहिए था। इससे बीसीसीआई को स्पांसरों और ब्रॉडकास्ट के करीब 2000 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है। कई विदेशी खिलाड़ी अपने देशों में लौटने को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि कई देशों ने भारत से उड़ान पर पाबंदियां लगा रखी हैं। आईपीएल के चेयरमैन ब्रजेश पटेल ने कहा कि लीग रद्द होने के बाद बीसीसीआई जल्द ही विदेशी खिलाड़ियों की वापसी का तरीका ढूंढेगा। उधर कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से इस साल भारत में होने वाला टी-20 वर्ल्ड कप यूएई में हो सकता है। बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने कहाöहम देखेंगे कि इस साल आईपीएल आयोजन के लिए कोई सही समय मिल सकता है। यह सितम्बर हो सकता है, लेकिन अभी यह केवल कयास हैं। अभी भी स्थिति यह है कि हम टूर्नामेंट का आयोजन नहीं कर रहे हैं। क्रिकेट-प्रेमियों का आईपीएल स्थगन होने का दुख है। लॉकडाउन के दौरान शाम को अच्छा मनोरंजन हो जाता था और लगभग आखिरी दौर में यूं खत्म होना अफसोसजनक है।

बंद हुआ कंगना रनौत का ट्विटर अकाउंट

नियमों का उल्लंघन करने के कारण ट्विटर ने अभिनेत्री कंगना रनौत का ट्विटर अकाउंट स्थायी रूप से बंद कर दिया है। अब इसे चालू कराने के लिए कंगना को फिर से ट्विटर से आग्रह करना होगा। ट्विटर ने यह कार्यवाही कंगना के कई ट्वीट को भड़काऊ व आपत्तिजनक मानते हुए की है। बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की जीत के बाद हुई हिंसा पर कंगना ने कई ट्वीट किए थे। एक वीडियो भी पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और ऐसी हिंसा को लोकतंत्र की मौत बताते हुए हिंसा के लिए ममता पर आरोप लगाया था। इससे पहले भी कंगना का ट्विटर अकाउंट अस्थायी रूप से निलंबित किया जा चुका है। पिछले साल कंगना की बहन रंगोली चन्देल का ट्विटर अकाउंट निलंबित कर दिया गया था। सोमवार को गीतकार और लेखक हुसैन हैदरी ने अभिनेत्री के दो ट्वीट को सांझा करते हुए लोगों से उनके अकाउंट की रिपोर्ट करने का आग्रह किया था। ट्विटर के प्रवक्ता द्वारा जारी बयान में कहा गया कि कंगना ने ट्विटर के नियमों का उल्लंघन किया है। उनका अकाउंट लगातार गुस्सा और हिंसा भड़का रहा था। ऐसा व्यवहार लोगों को हतोत्साहित करता है। साथ ही वैश्विक सार्वजनिक बातचीत के मूल्य को इस मंच पर कम करता है। हम हर उस व्यवहार पर कार्यवाही करेंगे, जिससे किसी भी तरह का नुकसान हो सकता है। हमारे नियम यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि हर कोई सार्वजनिक बातचीत में स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से भाग ले सके। अकाउंट स्थायी रूप से बंद किए जाने के बाद कंगना ने एक बयान में कहा कि सौभाग्य से मेरे पास कई मंच हैं, जिनका उपयोग मैं अपनी आवाज को उठाने के लिए कर सकती हूं। मेरी फिल्में भी मेरे लिए एक मंच हैं, सिनेमा के रूप में भी मैं अपनी बातें रख सकती हूं। कंगना ने इंस्टाग्राम पर एक भावनात्मक वीडियो भी सांझा किया। उन्होंने बंगाल की हिंसा पर उदारवादी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी को भारत के खिलाफ षड्यंत्र बताया। ट्विटर ने मेरी बात को साबित कर दिया है कि वह अमेरिकी हैं और एक सफेद (व्हाइट) रंग के व्यक्ति को जन्म से ही एक भूरे (ब्राउन) रंग के व्यक्ति को गुलाम बताना अपना हक लगता है, कंगना ने कहा कि वह आपको बताना चाहते हैं कि क्या सोचना, बोलना या करना है। -अनिल नरेन्द्र

लोकतांत्रिक चुनाव में हिंसा का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीते रविवार जो हिंसा का दौर आरंभ हुआ उस पर अविलंब रोक लगानी चाहिए। राज्य के विभिन्न इलाकें में तीन और लोगों की मौत होने के साथ ही मरने वालों का आंकड़ा 17 तक पहुंच गया है। भाजपा ने इनमें से नौ के अपना कार्यकर्ता होने का दावा किया है तो टीएमसी ने अपने सात लोगों की भाजपा के हाथें हत्या का आरोप लगाया है। इस बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिनों के दौरे पर कोलकाता पहुंच गए हैं। उन्होंने मंगलवार शाम को इस हिंसा के कथित टीएमसी समर्थकों के हाथों मारे गए पार्टी के दो कार्यकर्ताओं के घर जाकर पfिरजनों से मुलाकात की। दूसरी और ममता बनर्जी का आरोप है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार पचा नहीं पा रही है। इसलिए वह साम्प्रदायिक हिंसा भड़काकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रयास कर रही है। पूर्व मेदिनीपुर के बीजेपी जिला अध्यक्ष प्रलय पाल दावा करते है कि टीएमसी कार्यकर्ताआंs को अत्याचार से आजिज आकर पार्टी के कई कार्यकर्ता जान बचाने के लिए घर से भाग गए हैं। कई जगह घरों में लूटपाट और आगजनी की घटनाएं हुई है और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि हिंसा की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर भाजपा बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कराने का प्रयास कर रही है। उनका कहना था, राज्य मे चुनाव के बाद हिंसा की कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं। लेकिन भाजपा इस आग में घी डालने का प्रयास कर रही है। हिंसा उन इलाकों में ज्यादा हो रही है जहां भाजपा जीती है। इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी हो रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। मैने सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक और कोलकाता के पुलिस आयुक्त के साथ बैठक में हिंसा से उपजी परिस्थिति की समीक्षा की और प्रशासन को इस पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी कार्रवाई का मैने निर्देश दिया है। ममता ने कहा कि सोमवार तक पूरा प्रशासन चुनाव आयोग के हाथों में था। लेकिन उसने 24 घंटे के दौरान इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार शाम कुछ पीड़ित परिवारों के साथ मुलाकात के बाद कहा, भाजपा कार्यकर्ताओं की शहादत बेकार नहीं जाएगी। पार्टी ने बीते दिनों के दौरान राज्य में हिंसा की एक सूची तैयार की है जिसमें हत्या, हिंसा, आगजनी और लूटपाट की 273 घटनाआंs होने का दावा किया गया है। हिंसा की ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण इलाकों में हुई है। वहां स्थानीय लोगों की आपसी तनातनी इसकी एक वजह हो सकती है। यह संभव है कि शीर्ष नेताओं ने इसका समर्थन नहीं किया हो। लेकिन अब इन मामलों को अपने हित में भुनाने की कवायद तेज हो गई है। तीसरी बार प्रदेश की कमान संभाल रही ममता बनर्जी की यह पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि हिंसा को नियंत्रित करने के लिए वह राज्य की कानून व्यवस्थाओं को संभालने वाली एजेंसियों के साथ बेकाबू हो रहे तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश दें। दरअसल बंगाल के राजनीतिक हिंसा के अतीत को देखते हुए पहले ही आशंका जताई जा रही थी कि वहां नतीजे आने के बाद हिंसा भड़क सकती है। यह वाकई त्रासद है कि जिस समय पश्चिम बंगाल को पूरे देश की तरह कोविड-19 की महामारी को नियंत्रित करने के लिए एकजुटता दिखानी चाहिए तब वहां राजनीतिक बदला लेने के लिए हिंसा की जा रही है। यह नहीं भूलना चाहिए कि माकपा और कांग्रेस तक ने हिंसा को लेकर तृणमूल को जिम्मेदार ठहराया है। अब जब ममता बनर्जी अपनी नई पारी की शुरुआत कर रही हैं तो यह कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि हिंसा पर कड़ाई से काबू पाने के बाद ही वह महामारी और उससे उपजी परिस्थिति से प्रभावी ढंग से निपटेंगे।