Friday, 12 March 2021
20 साल में बदलने पड़े 10 मुख्यमंत्री
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के 20 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन यह अखंड प्रश्न बना हुआ है कि राज्य को स्थिर नेतृत्व क्यों नहीं मिलता? मंगलवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत 10वें मुख्यमंत्री बन गए। इस्तीफे के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि केंद्रीय नेतृत्व की मंशा के अनुरूप पद छोड़ा है। पार्टी विधायकों ने नए मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत को नया मुख्यमंत्री चुना। चार दिनों की उठापटक के बाद तीरथ सिंह रावत ने एक सादे समारोह में नए मुख्यमंत्री के रूप में पद की शपथ ली। उत्तराखंड में 70 सीटों में से 57 विधायकों की प्रचंड संख्या के बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी छोड़नी पड़ी और वह अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए। वह पार्टी के विधायकों के असंतोष को भांप पाने में नाकाम रहे। नतीजन उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। पार्टी के भीतर और बाहर विधायकों की नाराजगी की चर्चाएं गाहे-बगाहे सुनाई देती रहीं, लेकिन मुख्यमंत्री खेमा अंदर ही अंदर सुलग रहे असंतोष को नहीं भांप सका। विधायकों की नाराजगी कभी अफसरशाही की मनमानी के विरोध के रूप में तो कभी उनके विधानसभा क्षेत्रों में विकास योजनाओं के तौर पर सामने आती दिखीं। उनका यह असंतोष कई बार विधानसभा में अपनी ही सरकार के असहज करने वाले सवालों की शक्ल में सामने आया। लोहाघाट के विधायक पूरन फर्त्याल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। उन्होंने अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर प्रश्न खड़े कर दिए। सदन में कार्यस्थगन प्रस्ताव के जरिये इस मुद्दे को उठाने की कोशिश पर सरकार की खूब किरकिरी हुई। इसे मुख्यमंत्री के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलने की कवायद के तौर पर देखा गया। रायपुर के विधायक उमेश शर्मा काऊ की नाराजगी तो कई बार सामने आई। अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक से शिकायत की। डीडीहाट के विधायक बिशन सिंह मुफाल, लोहाघाट के विधायक पूरन सिंह फर्त्याल की नाराजगी भी कई बार सतह पर दिखी। लेकिन मुख्यमंत्री ने विधायकों के इस असंतोष को हल्के से लिया जो बाद में उनकी कुर्सी पर भारी पड़ा। मुख्यमंत्री की कार्यशैली से केवल विधायक ही असहज नहीं थे। बल्कि मंत्रियों की नाराजगी भी खुलकर सामने आती रही। अपने मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज अफसरशाही की मनमानी से इस कदर व्यथित थे कि उनकी यह व्यथा भाजपा संगठन से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय नागपुर तक पहुंच गई थी। कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत कर्मकार बोर्ड के कथित घोटालों की जांच को लेकर खासे असहज थे। हरक ने जेपी नड्डा से शिकायत की थी। महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य आईएएस अधिकारी डॉ. षणमुगम से विवाद में सरकार की भूमिका से असहज थीं। शिक्षा मंत्री अरविन्द पांडेय भी अफसरशाही की मनमानी से बहुत ज्यादा नाराज थे। रावत ने मंत्रिमंडल में दो रिक्त पदों को भी नहीं भरा, जिससे विधायकों में असंतोष बढ़ रहा था। बहरहाल भाजपा आलाकमान ने पार्टी के भीतर ही भीतर पनप रहे असंतोष को देखते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत को बाहर का रास्ता दिखा दिया है, लेकिन उनकी जगह कमान संभालने वाले नेता के समक्ष भी चुनौती होगी कि वह कमाऊं और गढ़वाल के क्षेत्रीय संतुलन के साथ ही जातीय समीकरणों को कैसे साधते हैं, विधायकों में बढ़ते असंतोष को कैसे काबू करते हैं और बेलगाम नौकरशाहों को लाइन पर कैसे लाते हैं यह समय ही बताएगा।
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