Tuesday, 23 March 2021

केजरीवाल ने खेला हिन्दू कार्ड

इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा। देशभर में जोरदार मोदी लहर के बावजूद 2014 में पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में एकतरफा जीत के बाद अरविन्द केजरीवाल ने मंच से यही गाना गया था। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने स्वास्थ्य और शिक्षा में अपने काम के आधार पर वोट मांगे और लोकप्रियता की लहर पर सवार भाजपा केजरीवाल को अपना शानदार प्रदर्शन दोहराने से रोक नहीं पाई। बुनियादी मुद्दों पर कामयाबी के साथ राजनीति करने के लिए जानी जाने वाली पार्टी अब अचानक देशभक्ति और राम राज्य की बातें करने लगी है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इसके पीछे उसकी मंशा क्या है? केजरीवाल खुद को भगवान हनुमान और भगवान राम का भक्त बता चुके हैं। साथ ही वह यह भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार दिल्ली की सेवा करने के लिए राम राज्य से पारित 10 सिद्धांतों का पालन करती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री यहां तक कह चुके हैं कि जब अयोध्या में बन रहा राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा तो वह दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों को वहां की मुफ्त तीर्थयात्रा कराएंगे। कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार का बजट देशभक्ति बजट के नाम से पेश किया गया। राष्ट्रीय गौरव की बातें करते हुए कहा कि पूरी दिल्ली में पांच सौ विशाल राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाएंगे। केजरीवाल सरकार पहले ही दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की बात कर चुकी है। उनका कहना है कि इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य देशभक्त नागरिकों का एक वर्ग बनाना है। सवाल यह है कि क्या यह केजरीवाल की सोची-समझी रणनीति है? वरिष्ठ वकील और केजरीवाल के साथ जुड़े रहे प्रशांत भूषण कहते हैं कि यह सब बातें एक पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी का हिस्सा हैं। वह कहते हैं कि इनको लगता है कि इससे उन्हें हिन्दुओं के वोट मिल सकता है। यह भाजपा को एक तरह से उसी के खेल में पछाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इनको लगता है कि हम अपने आपको एक बड़े राष्ट्रीय विकल्प की तरह पेश कर सकते हैं। यह शायद अरविन्द का राजनीतिक आकलन है कि इनको हिन्दू वोट बैंक पर मुख्यत निर्भर होना पड़ेगा क्योंकि इस समय भाजपा ने ध्रुवीकरण कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार और आम आदमी पार्टी के नेता रहे आशुतोष कहते हैं कि धर्म और राष्ट्रवाद की बात करना केजरीवाल और उनकी पार्टी की चुनावी मजबूरी है। आशुतोष आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं और अब उन्होंने पार्टी छोड़ दी है। वह कहते हैं कि अरविन्द केजरीवाल को इस बात का अंदाजा है कि दिल्ली में एक बहुत बड़ा तबका है जो भाजपा को भी वोट करता है और आम आदमी पार्टी को भी वोट करता है। अगर आप संसद का चुनाव देखें तो भाजपा को 57 प्रतिशत वोट मिलते हैं और सभी सातों सीटें भाजपा को चली जाती हैं। लेकिन विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत जाती है। इसका मतलब यह है कि अगर आम आदमी पार्टी को अपने वोट बैंक को संभालकर रखना है तो उसको अपने हिन्दू नेता के तौर पर स्थापित करना पड़ेगा। साथ ही दोनों कहते हैं कि अरविन्द केजरीवाल की कोई खास विचारधारा नहीं है और उन्हें लगता है कि जो चीज हमको वोट दिलवाएंगी वो हमको करना चाहिए। वह यह भी कहते हैं कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अरविन्द केजरीवाल का थोड़ा-सा वैचारिक झुकाव सॉफ्ट हिन्दुत्व की तरफ हो सकता है। भूषण कहते हैं कि केजरीवाल एक शुद्ध राजनीतिक प्राणी हैं, जिधर दिखे कि कुछ करने से ज्यादा वोट मिल सकते हैं वो हर काम उसी के हिसाब से कर लेते हैं।

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