Wednesday 10 March 2021

युवाओं, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर ममता ने लगाया दांव

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस ने शुक्रवार को 291 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। टिकट आबंटन में तृणमूल ने युवाओं, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और पिछड़े समुदायों को तरजीह दी है। पार्टी की ओर से जारी सूची में लगभग 50 महिला, 42 मुस्लिम, 79 अनुसूचित जाति और 17 अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशी शामिल हैं। वहीं बुजुर्ग नेताओं को विधान परिषद में समायोजित करने का निर्णय लिया गया है। सीटों की घोषणा के बाद ममता ने कहा कि मैं अपने शब्दों से पीछे नहीं हटती। मैंने कोलकाता की भवानीपुर सीट छोड़ दी है। इस बार मैं पूर्वी मिदनापुर के नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ूंगी। ऊर्जा मंत्री शोभन देब चट्टोपाध्याय भवानीपुर से पार्टी प्रत्याशी होंगे। वह यहीं के निवासी हैं। ममता ने दिसम्बर 2020 में तृणमूल नेता शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें नंदीग्राम में चुनौती देने की घोषणा की थी। वह 2011 और 2016 में भवानीपुर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। नंदीग्राम तृणमूल कांग्रेस के लिए मजबूत सीट मानी जाती है। 2016 में पार्टी के पूर्व नेता शुभेंदु अधिकारी यहां से विधायक चुने गए थे। वहीं 2011 में फिरोजा बीबी ने तृणमूल को नंदीग्राम से जीत दिलाई थी। तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल की 294 सीटों पर आठ चरणों में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के लिए 291 उम्मीदवारों की सूची जारी की। पार्टी ने दार्जिलिंग क्षेत्र की तीन सीटें (दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और करसियांग) अपनी सहयोगी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के बिमल गुरुंग गुट के लिए छोड़ी है। ममता ने कहा कि मैं मां, माटी, मानुष से अपील करती हूं कि वह मुझ पर भरोसा जताएं। मैं बंगाल की हिफाजत करते हुए राज्यों को नई ऊंचाइयों पर ले जाऊंगी। दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक संघर्ष ने उनका कद बढ़ाया है। मुख्यमंत्री होते हुए भी उन्हें जनता में पश्चिम बंगाल से एक बड़े राष्ट्रीय नेता के रूप में देखा जा रहा है। संसद में भी उनकी पार्टी सत्तापक्ष से जूझती नजर आई है। प]िश्चम बंगाल के चुनावों में हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति का कितना असर होगा, यह अभी कहना मुश्किल है। लेकिन गैर-राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की व्यक्तिगत छवि और उनके राजनीतिक संघर्ष का असर अभी खत्म नहीं हुआ है। पिछले दो चुनावों की तरह इस चुनाव में भी असर जरूर दिखेगा। ऐसी सोच रखने के पीछे एक वजह यह भी है कि टक्कर में नजर आ रही भाजपा भावी मुख्यमंत्री के लिए कोई ऐसा चेहरा पेश नहीं कर पाई है, जो ममता की बराबरी करता हुआ दिखे। इतना ही नहीं, राज्य में जितने भी बड़े भाजपा नेता हैं, उनमें कोई चेहरा ऐसा नहीं है, जिसमें तृणमूल प्रमुख जैसा करिश्मा हो। ममता का 10 वर्ष का शासन और उसकी अच्छाइयां व खामियां एक तरफ हैं तथा मुख्यमंत्री की ईमानदारी-संघर्षपूर्ण राजनीतिक जीवन दूसरी तरफ है। यह दोनों अलग-अलग पहलू हैं। इसलिए लंबे राजनीतिक संघर्ष के बाद उनकी जो छवि बनी है और 10 साल के शासन में भी उन पर कोई दाग नहीं है। उसका असर निश्चित रूप से चुनाव में पड़ेगा। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार से सीधी टक्कर लेने की क्षमता भी ममता ने खूब दिखाई है। भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री, भाजपा अध्यक्ष, सांसद व तृणमूल में तोड़फोड़ कर सभी हथकंडे अपनाए गए हैं। देखें कि कौन जीतता है?

No comments:

Post a Comment