Friday 12 March 2021

धुर नक्सली से अब दक्षिणपंथी खेमा

कभी तृणमूल कांग्रेस से सांसद रहे फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने रविवार को कोलकाता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली में भाजपा का दामन थामने के बाद अपने चिरपरिचित अंदाज में संकेत दिया कि भाजपा की ओर से बंगाल के सियासी मैदान में वह अहम भूमिका निभाने को तैयार हैं। बांग्ला फिल्मों में महागुरु कहे जाने वाले मिथुन चक्रवर्ती के मुंबई स्थित आवास पर राष्ट्रीय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले महीने उनसे मुलाकात की थी। इसके बाद उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चा तेज होना स्वाभाविक ही थी। तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रह चुके अभिनेता ने सारदा पोंजी घोटाले में नाम आने के बाद 2016 में उच्च सदन की सदस्यता छोड़ दी थी। उन्होंने हालांकि इसके लिए स्वास्थ्य ठीक नहीं होने का हवाला दिया था। उन्होंने मृणाल सेन की 1976 में आई फिल्म मृगया में एक आदिवासी तीरंदाज की भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। वो कोलकाता के प्रतिष्ठित स्कॉटिश चर्च कॉलेज के छात्र रहे हैं, जहां से सुभाष चंद्र बोस, नेपाल के प्रथम प्रधानमंत्री बीपी कोइराला और असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बार्दोलोई ने भी पढ़ाई की थी। फिल्मों में जाने से पहले मिथुन चक्रवर्ती बंगाल के नक्सल आंदोलन से जुड़े थे और तब हत्या के एक मामले में उन्हें वांछित घोषित किया गया था। हिन्दी फिल्मों में डिस्को डांसर की छवि वाले इस अभिनेता को हमेशा से राजनीतिक रूप से जागरूक अभिनेता माना गया। अकसर उन्हें वामपंथी फिल्म निर्देशकों ने अपनी फिल्म में काम करवाया। वह 1980 के दशक में बॉलीवुड और पूर्व सोवियत संघ जैसे विदेशी फिल्म बाजारों में एक लोकप्रिय नाम बन गए थे, जब उन्होंने एक्शन फिल्मों, पारिवारिक फिल्मों और संगीत पर आधारित फिल्मों में अभिनय किया। बॉक्स ऑफिस पर उनकी हिट फिल्मों में डिस्को डांसर, कसम पैदा करने वाले की, सुरक्षा आदि से उनकी खास छवि बनी। वह बंगाली फिल्म उद्योग में भी स्टार बने। अपने लंबे फिल्मी कैरियर में राजनेता की भूमिका उन्होंने दर्जनों बार निभाई। वाम मोर्चा के करीबी रहते हुए उन्होंने जंगीपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के तत्कालीन उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी के समर्थन में प्रचार किया। बंगाल में वामों की सरकार के दौर में मिथुन कि गिनती भाकपा और खासकर तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु और तब परिवहन मंत्री रहे सुभाष चक्रवर्ती के सबसे करीबी लोगों में होती थी। मिथुन कई बार खुद को वामपंथी बताते रहे। वर्ष 2011 में वामों का शासन खत्म होने के बाद वह धीरे-धीरे तृणमूल कांग्रेस के करीब आए। दो-तीन साल के दौरान बनी आपसी समझ और रिश्ते मजबूत होने के बाद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनको राज्यसभा में उम्मीदवार बनाया और वह जीते। हालांकि कुछ समय बाद ही सारदा चिट फंड घोटाले में नाम आया। करीब तीन साल तक राज्यसभा सदस्य रहने के दौरान वह महज तीन बार ही संसद में गए। तो यह है धुर नक्सली रहे मिथुन चक्रवर्ती को अब रास आ रहा है दक्षिणपंथी खेमा। रविवार को कोलकाता में ब्रिगेड परेड मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली से पहले मिथुन चक्रवर्ती औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो गए। -अनिल नरेन्द्र

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