Saturday 6 March 2021

उपचुनाव नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी

दिल्ली नगर निगम की पांच सीटों पर हुए चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इस बार निगम में कब्जा बनाए रखने के लिए बड़े दंगल में उतरना होगा। इन नतीजों से भारतीय जनता पार्टी की घबराहट बढ़ना स्वाभाविक ही है। मतगणना से पहले बड़ी-बड़ी बातें कर रही भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया और भाजपा को पांच सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा है। आम आदमी पार्टी (आप) से कोई सीट छीनना तो दूर उल्टा भाजपा अपनी परंपरागत शालीमार बाग की सीट भी गंवा बैठी। इस चुनाव को अगले वर्ष होने वाले निगम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था और इन परिणामों ने भाजपा नेताओं को पार्टी की दिल्ली में हकीकत बता दी। चुनाव प्रक्रिया शुरू होने पर भारतीय जनता पार्टी जरूरत से ज्यादा आशावादी नजर आ रही थी। उसके नेताओं का कहना था कि राजनीतिक रूप से भले ही हम पांच सीटों पर जीत का दावा कर रहे हों, लेकिन हकीकत में हम चौहान बांगर को छोड़कर सभी सीटें जीत रहे हैं। त्रिलोकपुरी व कल्याणपुरी सीट को तो वह अपने कब्जे में आई मान रहे थे। कल्याणपुरी में तो भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी। यहां सांसद गौतम गंभीर से लेकर निगम के तमाम नेता जुटे थे। उस सीट पर आम आदमी पार्टी के धीरेंद्र कुमार बंटी ने 7043 वोटों से जीत दर्ज कर भाजपा की गलतफहमी दूर कर दी। इसी तरह त्रिलोकपुरी सीट आप के रोहित महरोलिया ने पिछली बार 3049 वोटों से जीती थी। इस बार आप प्रत्याशी विजय कुमार ने मतों का अंतर बढ़ाते हुए 4986 वोटों से जीत दर्ज की। चौहान बांगर सीट पर भी पार्टी दावा कर रही थी कि इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन वहां भी कुछ नहीं कर पाई। भाजपा पार्षद रेनू जाजू के निधन से खाली शालीमार बाग सीट से भाजपा को उम्मीद थी कि वह बड़े बहुमत से जीतेगी। उसने वहां सहानुभूति लहर चलाने के लिए रेनू जाजू की पुत्रवधू को ही टिकट दिया था। लेकिन पार्टी इस सीट को भी गंवा बैठी। रोहिणी सीट पर तो भाजपा कार्यकर्ता जीत की शर्तें भी लगाने लगे थे, लेकिन यहां भी चुनाव परिणामों ने भाजपा की गलतफहमी दूर कर दी। निगम चुनाव में चार सीट जीतने के बावजूद आम आदमी पार्टी के लिए भी खतरे की घंटी बज गई है। अपने पूर्व विधायक इशराक खान को चौहान बांगर में उम्मीदवार बनाने के बावजूद मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आप की हार मुस्लिम मतदाताओं के उससे मोहभंग की ओर इशारा कर रही है। उल्लेखनीय है कि यह सीट आप पार्षद अब्दुल रहमान के विधायक चुने जाने से खाली हुई थी। इस सीट पर कांग्रेस की जीत उसके लिए संजीवनी जैसी साबित हुई है। वहीं यह परिणाम भाजपा नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर रहा है। मुस्लिम वोट बैंक के दम पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया करने वाली आप भले ही चार सीटें जीतने में कामयाब रही है। लेकिन मुस्लिम बहुल चौहान बांगर में उसकी हार ने दिल्ली की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत दे दिए हैं। जाहिर है कि मुस्लिम मतदाता आप पार्टी से नाराज हैं और उन्होंने अपना वोट कांग्रेस को देना बेहतर समझा। कांग्रेस ने इस सीट पर लगातार पांच बार विधायक रहे चौधरी मतीन अहमद के बेटे जुबैर अहमद को मैदान में उतारा था। जबकि आप से पहली बार मतीन अहमद को हराने वाले पूर्व विधायक इशराक खान को टिकट दिया था। दिल्ली में सत्ता में कमल खिलाने की कवायद सिरे नहीं चढ़ पाई। आरोप लग रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व खुद गुटबाजी का हिस्सा बन गया है। यही वजह है कि जिस पार्टी के केंद्रीय गृहमंत्री ने हैदराबाद निगम चुनाव में पार्टी की स्थिति मजबूत कर दी, उस पार्टी का दिल्ली नेतृत्व अपना गढ़ बचाने में ही असफल रहा।

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