Wednesday 17 March 2021

सरकारी अधिकारी राज्यों के चुनाव आयुक्त नहीं बन सकते

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहाöकोई भी केंद्र या राज्य सरकार का कर्मचारी राज्य के चुनाव आयुक्त के रूप में काम नहीं कर सकता। सरकार में किसी पद पर बैठे व्यक्ति को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान का माखौल उड़ाना है। उसे स्वतंत्र व्यक्ति होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गोवा सरकार के सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार देने के मामले में सुनाया गया है। जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन और बीआर गवई की पीठ ने कहाöलोकतंत्र में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता। ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो केंद्र या किसी राज्य सरकार के अधीन कार्यरत या लाभ का पद धारण करता है, चुनाव आयुक्त नियुक्त नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहाöयह एक परेशान करने वाली तस्वीर है कि एक सरकारी कर्मचारी जो सरकार के साथ रोजगार में था, गोवा में चुनाव आयोग का प्रभारी भी है। पीठ ने आदेश दिया कि इसके बाद ऐसे किसी व्यक्ति को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा। पीठ ने यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 और 144 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जारी किया। अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट अदालत को पूर्ण न्याय करने के लिए निर्देश जारी करने का अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 144 सभी अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट की सहायता में कार्य करने के लिए बाध्य करता है। दरअसल मामला यूं थाöगोवा सरकार ने हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसने राज्य के पांच नगरपालिकाओं के चुनाव रद्द कर दिए थे क्योंकि कानून के अनुसार महिलाओं के लिए वार्डों को आरक्षित नहीं किया गया था। शीर्ष अदालत ने राज्य में नगरपालिका परिषद चुनाव कराने के लिए अपने कानून सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार देने से रोक दिया। पीठ ने राज्य सरकार की अपील पर दिए अपने फैसले में कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत यह राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्य चुनाव आयोग के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करे। यह टिप्पणियां और निर्देश 96 पन्नों के फैसले में दिए गए जिसे न्यायमूर्ति नरीमन ने गोवा के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने से जुड़ी कई याचिकाओं पर दिए। न्यायमूर्ति ने कहाöराज्य निर्वाचन आयुक्त राज्य सरकार से इतर स्वतंत्र व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि वह महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारी होता है जो राज्य में पूरे चुनावी प्रक्रिया के साथ ही पंचायतों एवं नगर निगमों के चुनाव को भी देखता है।

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