Thursday, 18 March 2021
एलजी व दिल्ली सरकार के बीच जंग शुरू होना तय
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच एक बार फिर टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जो उपराज्यपाल (एलजी) को अधिक शक्तियां देता है। यह विधेयक उपराज्यपाल को कई विवेकाधीन शक्तियां देता है, जो दिल्ली के विधानसभा से पारित कानूनों के मामले में भी लागू होती हैं। प्रस्तावित कानून यह सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (या दिल्ली कैबिनेट) के फैसले लागू करने से पहले एलजी की राय के लिए उन्हें जरूरी मौका दिया जाना चाहिए। इसका मतलब हुआ कि मंत्रिमंडल को कोई भी कानून लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेना जरूरी होगा। इससे पहले विधानसभा से कानून पास होने के बाद उपराज्यपाल के पास भेजा जाता था। 1991 में संविधान के 239एए अनुच्छेद के जरिये दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था। इस कानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति हासिल है लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, जमीन और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती है। दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टकराव की यह कोई नई बात नहीं है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार भाजपा शासित केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजधानी को लेकर लिए गए कई प्रशासनिक मामलों को चुनौती दे चुकी है। दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2021 को सोमवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने पेश किया। यह विधेयक 1991 के अधिनियम के 21, 24, 33 और 44 अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव करता है। गृह मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि 1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 समय से प्रभावी काम करने के लिए कोई संरचनात्मक तंत्र नहीं देता। बयान में कहा गया है कि कोई आदेश जारी करने से पहले किन प्रस्तावों या मामलों को उपराज्यपाल को भेजना है इस पर भी तस्वीर साफ नहीं है। 1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 कहता है कि उपराज्यपाल के सभी फैसले जो उनके मंत्रियों या अन्य की सलाह पर लिए जाएंगे, उन्हें एलजी के नाम पर उल्लेखित करना होगा। यानि एक प्रकार से इसको समझा जा रहा है कि इसके जरिये उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के रूप में परिभाषित किया गया है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने भाजपा पर दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने का आरोप लगाया है। वहीं भाजपा का कहना है कि दिल्ली सरकार और एलजी पर 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रस्तावित विधेयक आम आदमी पार्टी (आप) शासित सरकार के असंवैधानिक कामकाज को सीमित करता है। एलजी और दिल्ली सरकार के बीच कामकाज का मामला अदालतों तक जा चुका है। चार जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि मंत्रिमंडल पर एलजी को अपने फैसले के बारे में सूचित करने का दायित्व है और उनकी कोई सहमति अनिवार्य नहीं है। 14 फरवरी 2019 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायकी शक्तियों के कारण एलजी मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हुए हैं। वह सिर्फ अनुच्छेद 239एए के आधार पर ही उनसे अलग रास्ता अपना सकते हैं। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने सोमवार को प्रस्तावित विधेयक का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार संसद में असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बिल लेकर आई है। इस बिल के पास होने के बाद दिल्ली की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की बजाय उपराज्यपाल ही दिल्ली सरकार बन जाएंगे। उपराज्यपाल को अलोकतांत्रिक तरीके से निरंकुश शक्तियां दी जा रही हैं। वहीं कांग्रेस ने कहा है कि केंद्र सरकार ने सोमवार को संसद में जीएनसीटी 1991 एक्ट में संशोधन करके दिल्ली की चुनी हुई सरकार के जनता के प्रति जवाबदेही के सभी अधिकारों को उपराज्यपाल की शक्तियों में समाहित करके लोकतंत्र की हत्या करने का काम किया है। इस काले कानून के तहत लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार के अधिकारों को सीमित बना दिया है।
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