Thursday, 28 October 2021

फेकबुक की शक्ल ले चुका फेसबुक

वैसे तो पूरी दुनिया में फेसबुक पर फर्जी खबरों और भड़काऊ सामग्री को अनदेखा करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन, भारत में यह प्लेटफार्म साफ तौर पर फेकबुक (फर्जी सामग्री की पुस्तक) की शक्ल ले चुका है। यह निष्कर्ष किसी और ने नहीं निकाला, बल्कि फेसबुक की ही एक दर्जन अंदरूनी fिरपोर्ट और उच्च सूत्रांs का है। यह अध्ययन फेसबुक के कर्मचारियों और शोधकर्ताओं ने किया है। समाचार संस्थानों के एक वैश्विक समूह ने फेसबुक पेपर्स के नाम से यह सारी जानकारी सार्वजनिक की। इस समूह में द न्यूयार्प टाइम्स भी शामिल है। फेसबुक की पूर्व डायरेक्टर मैनेजर फांसेस हॉजेन ने इन रिपोर्टों, अध्ययनों के दस्तावेज जुटाए हैं, इनके आधार पर वह लगातार फेसबुक की कार्य-संस्कृति, अंदरूनी खामियों आदि से जुड़े खुलासे कर रही हैं। उनके द्वारा सार्वजनिक किए गए फेसबुक पेपर्स के मुताबिक भारत में फर्जी एकाउंट्स से झूठी खबरों के जरिए चुनावों को पभावित किया जाता है। इसकी पूरी जानकारी फेसबुक को है। लेकिन उसके पास इतने संसाधन ही नहीं कि वह इस गड़बड़ी को रोक सके। इस तरह की सामग्री को रोकने के लिए कंपनी ने जितना बजट तय किया है, उसका 87 पतिशत सिर्प अमेरिका में खर्च होता है। फेसबुक की पवक्ता एंडी स्टोन भी मानती हैं कि भारत में इस तरह की दिक्कतें हैं। लेकिन वह यह दावा भी करती हैं कि इसे नियंत्रित करने के लिए तकनीक उन्नत कर रहे हैं। भारत में आपत्तिजनक सामग्री के पचार पसार के बारे में फेसबुक को सब पता है पर इसे पसारित करने वाले संगठनों पर कार्रवाई से डरता है। क्योंकि ऐसे अधिकांश संगठन राजनीतिक तौर पर सकिय हैं। मसलन धर्म के आधार पर बने एक संगठन को फेसबुक ने खतरनाक बताने की तैयारी की है। मगर कुछ किया नहीं है। फेसबुक का फीचर पॉप्युलर अकास ऐसी-ऐसी सामग्री दिखा रहा था, जिसकी कहीं पुष्टि नहीं की गई थी। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन बातों पर गहराई से नजर रखे और सोशल मीडिया को भ्रामक सूचनाएं फैलाकर समाजिक तानाबाना छिन्न-भिन्न करने से रोके।

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