Thursday 14 October 2021

कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमले ः एक दिन में 5 जगह एनकाउंटर

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ चल रहे अभियान के दौरान मुठभेड़ और उसमें हमारे जवानों के शहीद होने की जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे एक बात यह साफ हो गई है कि घाटी में आतंकवाद की जड़ें अभी कमजोर नहीं पड़ी हैं। पुंछ में सोमवार को आतंकी हमले में जेसीओ समेत 5 सैनिक शहीद हो गए। हमलावर आतंकी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग गए। इससे पहले 3 मई, 2020 को एक हमले में पांच सैनिक शहीद हुए थे। उसके बाद एक साथ इतनी शहादत नहीं हुई थी। सोमवार को पांच अलग-अलग जगहों पर सेना की आतंकियों से मुठभेड़ हुई। घटनाओं का पैट्रर्न भी एक जैसा था। सूचनाओं के आधार पर सैन्य टुकड़ियों ने सर्च ऑपरेशन लांच किए। इसी दौरान आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। दो जगहों पर एक-एक आतंकी मार दिए गए। 2 जगहों पर से 5 से ज्यादा छिपे हुए आतंकी बताए जा रहे हैं। इनकी घेराबंदी कर दी गई है। सोमवार रात तक ऑपरेशन जारी थे। सेना ने बताया कि सभी आतंकी जब तक मारे नहीं जाते यह सर्च ऑपरेशन जारी रहेगा। ताजे हमलें के पीछे दो प्रमुख कारण लगते हैं। पहलाöसरकार ने कश्मीरी विस्थापितों व पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को 45 लाख मूल निवासी प्रमाण-पत्र बांटे हैं। इससे गैर-मुस्लिम उत्साहित थे। यही आतंकियों की बौखलाहट की वजह है। इसलिए न सिर्फ हिंदुओं बल्कि सिखों को भी निशाना बनाया जा रहा है ताकि इनमें दहशत फैले। दूसरा-5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटा। इसके बाद से अब तक एक भी हिंदू परिवार का विस्थापन नहीं हुआ। जम्मू-कश्मीर प्रशासन इसे अपनी उपलब्धि बता रहा था। यह बात आतंकियों को लगातार परेशान कर रही थी। इसलिए उन्होंने गैर-मुस्लिमों पर हमले शुरू किए हैं। एलओसी पर सख्ती की वजह से सेना को घुसपैठ रोकने में कामयाबी भी मिली है। दूसरी ओर घाटी में सेना ने संदिग्ध युवाओं के परिवार के साथ मिलकर नए आतंकियों की भर्ती पर भी लगाम लगा रखी है। कई युवाओं को मुख्यधारा में लाया गया है। इन दो वजहों से आतंकी संगठनों के पास घाटी में स्थायी लड़कों की कमी हो गई है, इसलिए पाकिस्तान से संचलित होने वाले आतंकी संगठनों ने पार्ट टाइम आतंकियों से हमले कराने का तरीका अपनाया है। यह बात मिलिट्री इंटेलिजेंस एजेंसियों को घाटी में बैठे हैंडलर्स को पाकिस्तान से भेजे गए संदेशों में इंटरसेफ्ट करने से पता चला है। विडंबना यह है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे को लेकर जारी कोशिशें जब भी सार्थक मानी जाती हैं, तब आतंकी गिरोहों की ओर से हमले बढ़ जाते हैं। आतंकी संगठन शायद दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर अभी भी आतंकवाद की गिरफ्त में है। दरअसल इस जटिल समस्या की जड़े सीमापार से संचालित गतिविधियों में fिछपी है। भारत के अलावा वैश्विक मंचों पर भी ऐसे सवाल लगातार उठाए जाते हैं कि पाकिस्तान स्थित fिठकानों से आतंकवादी समूह अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। इसके लिए आए दिन पाकिस्तान को बेहद सुविधाजनक स्थितियों से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद वह इस मामले पर कोई सख्त और ठोस नतीजा देने वाले कदम उठाने से बचता रहा है। खासतौर पर अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान का दोहरा खेल खेलना शुरू हो चुका है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद निरोधक राजनीति पर नए सिरे से विचार इसलिए भी होना चाहिए, क्योंकि घाटी में हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाया जाने का सिलसिला तेज हो गया है और उसके चलते उनके पलायन का खतरा पैदा हो गया है। कश्मीर की ताजा हालत सेना के लिए तो चुनौती है ही साथ-साथ केन्द्र सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।

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