Wednesday 20 October 2021

फिर वही सोनिया गांधी की कांग्रेस

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से अब तक दिखी चाशनी से यह बात तो साफ है कि पार्टी के संचालन में गांधी परिवार शक्ति और पावर का केंद्र बना रहेगा। अब यह भी चर्चा जोरों पर है कि राहुल गांधी के सिर पर दोबारा पार्टी मुखिया का मुकुट सज सकता है। इस काम में राज्य विधानसभाओं के चुनावों तक इंतजार का इसलिए भी कोई लाभ होता नहीं दिख रहा, क्योंकि कांग्रेस पार्टी अपना स्थायी अध्यक्ष घोषित करने में जितनी देरी करेगी, पार्टी के भीतर उतनी ही तेजी से दरकन भी आती जाएगी और भविष्य में नई दरारें पैदा होने की आशंका बनी रहेगी। असंतुष्ट खेमे के नेताओं की मांग पर बुलाई गई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कोई विवाद तो नहीं उभरा। लेकिन अपने तीखे तेवर के जरिये सोनिया गांधी ने तमाम पार्टी नेताओं को जो संदेश दिया वह हताशा ही ज्यादा पैदा करता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी लगातार चुनावी पराजयों के अलावा भी जिन समस्याओं से जूझ रही है, उन पर संजीदगी से व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है। मसलन, जिन कुछ राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वहां अंदरूनी विवाद न केवल बना हुआ है, बल्कि उसके समाधान में भी नेतृत्व की कोई रुचि नहीं दिखती। सोनिया गांधी कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में काम करती आई हैं। इसके चलते कांग्रेस के कई नेता लंबे समय से असंतुष्ट चल रहे हैं। 23 नेताओं ने अपना एक समूह बना लिया है। कई नेता समय-समय पर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। उनकी मांग पर ही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। बैठक में सभी वरिष्ठ नेता शामिल हुए। असंतुष्टों ने भी हिस्सा लिया। इससे पहले भी सोनिया गांधी ने इन असंतुष्ट नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाया, फिर स्पष्ट कर दिया कि बेशक वह कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम करती हैं पर वह पूर्वकालिक अध्यक्ष हैं। फिर तय हुआ कि एक साल तक पार्टी अध्यक्ष को लेकर विचार-विमर्श चलेगा और फिर अगले साल अक्तूबर में अध्यक्ष का चुनाव होगा। कई युवा नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं। जबकि अनेक वरिष्ठ नेता खुद को असहज पा रहे हैं। कांग्रेस भले ही अपनी विविधता और मतभिन्नता के लिए जानी जाती रही हो। लेकिन अभी तो स्थिति यह है कि वरिष्ठ नेताओं की टिप्पणियां नेतृत्व की दिशाहीनता के बारे में बताती हैं, जो ज्यादा गंभीर और चिंताजनक है। सोनिया गांधी ने बेशक यह साबित करने की कोशिश की हो कि वह अब भी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं पर स्थिति यह है कि कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व न केवल दिशाहीन ही है बल्कि वह सही नेतृत्व नहीं दे पाया। तभी तो पार्टी की एक के बाद एक राज्य में पराजय होती जा रही है। यह कार्यसमिति की बैठक का कोई सार्थक नतीजा निकलेगा, हमें तो नहीं लगता। कांग्रेस पार्टी उसी ढर्रे पर चलती रहेगी। आज आवश्यकता है कि विपक्ष इकट्ठा हो ताकि सरकार को टक्कर दे सके। इस काम में कांग्रेस का नेतृत्व बहुत आवश्यक है। हमें तो नहीं लगता कि कांग्रेस पार्टी की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव आएगा। उम्मीद तो यह थी कि राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व संभालना चाहिए पर इसके लिए अभी और इंतजार करना होगा और कांग्रेस का पतन जारी रहेगा।

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