Thursday, 7 October 2021
लखीमपुर खीरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना
दुर्भाग्यपूर्ण घटना उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है।
इस घटना में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गईं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के तिवुनिया कस्बे में रविवार को केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे के वाहन से वुचलकर मारे गए किसानों और उसके बाद दो भाजपा कार्यंकर्ताओं, एक पत्रकार और मिश्रा के ड्राइवर को पीट-पीटकर मार डालने की बर्बर घटना सिर्प क्षणिक आवेश का नतीजा नहीं है बल्कि पिछले वुछ दिनों से चले आ रहे तनाव का नतीजा है जिसे टालने में प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा। तीन वृषि कानूनों के विरोध में लखीमपुर खीरी क्षेत्र के पहले से आंदोलनरत किसान 25 सितम्बर को दिए गए केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री मिश्रा के एक बयान से नाराज थे, जिसमें उन्होंने कथित राय से अांदोलनकारी किसानों से कहा था कि सुधर जाओ वरना दो मिनट में सुधार देंगे। रविवार को लखीमपुर खीरी में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्यं के प्रस्तावित प्रवास के दौरान किसानों ने वृषि कानूनों के साथ ही मिश्रा के विरोध में प्रदर्शन किया और इसी दौरान किसानों ने मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले के साथ टकराव हो गया। इस मौके पर किसान आंदोलनकारियों ने उपमुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने का तय किया था। वे हजारों की संख्या में वहां एकत्र थे। इस वजह से उपमुख्यमंत्री ने वहां पहुंचने का अपना कार्यंव्रम बदल दिया था। आरोप है कि इससे चिढ़कर गृह राज्यमंत्री के बेटे ने वुछ भाजपा कार्यंकर्ताओं के साथ दो बड़ी गािड़यों से किसानों को वुचल दिया।
इसमें चार किसान मारे गए और दर्जनों जख्मी हो गए। टक्कर मारने वाली दोनों गािड़यां संतुलन खोकर पलट गईं और फिर किसानों ने उसमें आग लगा दी। इस तरह एक चालक समेत चार भाजपा कार्यंकर्ताओं की भी मौत हो गईं।
किसानों का आरोप है कि मंत्री के बेटे ने सोची-समझी योजना के तहत इस घटना को अंजाम दिया, जबकि मंत्री और उनके बेटे का आरोप है कि वे इन गािड़यों में सवार नहीं थे, किसानों ने उन गािड़यों पर पथराव किया, जिससे वह असंतुलित होकर उनसे टकरा गईं। सच्चाईं क्या है, यह तो निष्पक्ष जांच हो, तभी पता चलेगा। मगर इस घटना से स्वाभाविक कि है किसान आव्रोशित हैं। दरअसल इस घटना में केन्द्रीय मंत्री की संलिप्तता के वुछ आधार मौजूद हैं, जिनके चलते लोग उनके बयान पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं। वुछ दिनों पहले ही दो जगह जनसभाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने आंदोलन कर रहे किसानों को सार्वजनिक रूप से धमकाया था कि वह इस तरह आंदोलन करना बंद करें वरना उन्हें सबक सिखाया जाएगा। उसके बाद जब किसान सड़क किनारे खड़े होकर उन्हें काले झंडे दिखा रहे थे तब मंत्री जी ने खिड़की से बाहर निकल कर अंगूठा नीचे की तरफ करके इशारा किया था जिसका भाव था कि तुम हमारे लिए कोईं मायने नहीं रखते। इस इलाके में चल रहा आंदोलन अब तक शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक रहा है। इसलिए किसानों के पथराव करने या उग्र रूप धारण करने की बात बहुत सारे लोगों के गले नहीं उतर रही। चूंकि उत्तर प्रदेश में वुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव हैं, लिहाजा इस बात की आशंका है कि वृषि कानूनों पर राजनीतिक टकराव बढ़ सकता है और लखीमपुर खीरी की इस घटना को विपक्षी दल उछाल सकते हैं। हम तो बस इतना ही कहेंगे कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है जिसे थोड़ी-सी समझदारी से टाला जा सकता था।
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