Tuesday 12 October 2021

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पत्रकारों का सम्मान

जान की बाजी लगाकर अभिव्यक्ति की आजादी, गलत सूचनाओं से मुकाबला और निरंकुश सरकारों को जिम्मेदार ठहराने का संघर्ष कर रहे दो पत्रकारों को इस बार शांति के नोबेल पुरस्कारों के लिए चुना गया है। नोबेल कमेटी ने शुक्रवार को रूस के पत्रकार दिमित्री मुरातोव (59) और फिलीपींस की मारिया रेसा (58) को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार देने की घोषणा की। कमेटी ने कहाöइन दोनों ने बोलने की आजादी की रक्षा की पुरजोर कोशिश की। यह लोकतंत्र और शांति के लिए जरूरी शर्त है। यह दुनिया के उन पत्रकारों के प्रतिनिधि हैं, जो अपनी-अपनी जगहों पर विपरीत हालात में संघर्ष करते हुए लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 80 साल बाद किसी पत्रकार को नोबेल पुरस्कार मिला है। इससे पहले 1935 में जर्मन पत्रकार कॉर्ल वॉन ओस्सिएट्जकी को जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के बाद गुप्त रूप से फिर से सशस्त्र हो रहा है के खुलासे के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। 126 साल के इतिहास में मारिया 18वीं महिला हैं जिन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला। मारिया फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते को उनके फैसलों और गलत सूचनाओं के लिए लगातार जिम्मेदार ठहराती रही हैं। उन्हें 2018 में टाइम मैग्जीन ने पर्सन ऑफ द ईयर नामित किया था। मारिया ने 2012 में पोर्टल शुरू किया और दुतेर्ते की सरकार से लोहा लेती रहीं। अपने पोर्टल के जरिये वह लगातार सरकारी भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती रही हैं। मारिया ने देश में तानाशाही और सत्ता के दुरुपयोग का खुलासा किया। नशे के विरुद्ध युद्ध में मानवाधिकार हनन और हत्याओं को सामने लाईं। बताया कि सरकार ने सोशल मीडिया से फर्जी खबरें छपवाईं। विरोधियों को परेशान किया और सार्वजनिक विमर्श अपने मुताबिक करने के लिए खेल किया। रोज अपनी वेबसाइट बंद होने की आशंका के बावजूद सच्ची पत्रकारिता करती हूं, मारिया ने कहा। यह पुरस्कार रेखांकित करेगा कि आज पत्रकारिता कितनी कठिन है। सच की कीमत 28 साल में अखबार के छह पत्रकारों की हत्या हो चुकी है रूस में। नोबेल कमेटी कहती है कि 28 साल में छह पत्रकारों की हत्या के बावजूद दिमित्री ने अखबार की स्वतंत्र नीति छोड़ने से इंकार कर दिया। उन्होंने पत्रकारिता के पेशेवर और नैतिक मानकों का पालन करते हुए अपने पत्रकारों के कुछ भी लिखने के अधिकार का हमेशा बचाव किया। दिमित्री मुरातोव कहती हैंöइस पुरस्कार का श्रेय सिर्फ मैं नहीं ले सकती। यह उनका है जिन्होंने बोलने की आजादी की हिफाजत करते हुए अपनी जान गंवा दी। हम इन दोनों पत्रकारों को बधाई देते हैं और नोबेल कमेटी का धन्यवाद करते हैं कि आखिरकार उन्होंने पत्रकारिता का सम्मान किया। उन्होंने रेखांकित किया कि इस समय पत्रकारिता कितना जोखिमभरा काम है।

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