Friday 22 October 2021

पिता की जिम्मेदारी

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि एक पिता को अपने बेटे की शिक्षा के खर्च को पूरा करने की जिम्मेदारी से केवल इसलिए मुक्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह बालिग हो गया है। हाई कोर्ट ने कहा कि एक पिता को यह सुनिश्चित करने का वित्तीय बोझ उठाना चाहिए कि उसके बच्चे समाज में एक ऐसा स्थान प्राप्त करने में सक्षम हो जहां वह पर्याप्त रूप से अपना भरण-पोषण कर सके। न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि मां पर अपने बेटे की शिक्षा का पूरे खर्च का बोझ सिर्प इसलिए नहीं डाला जा सकता है क्योंकि बच्चे ने 18 साल की उम्र पूरी कर ली है। पीठ ने कहा कि पिता को अपने बेटे की शिक्षा के खर्चों को पूरा करने के लिए सभी जिम्मेदारियों से केवल इसलिए मुक्त नहीं किया जा सकता है कि उसका बेटा बालिग हो गया है। हो सकता है कि वह आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हो और खुद का गुजारा करने में असमर्थ हो। एक पिता अपनी पत्नी को मुआवजा देने के लिए बाध्य है, क्योंकि बच्चों पर खर्च करने के बाद शायद ही उसके पास अपने लिए कुछ बचे। पीठ ने यह आदेश एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज करते हुए दिया जिसमें हाई कोर्ट के उस आदेश की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया था, जिसमें उसे अपनी अलग रह रही पत्नी को तब तक 15 हजार रुपए का मासिक गुजारा-भत्ता देने का निर्देश दिया गया था, जब तक कि बेटा स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेता और वह कमाने नहीं लग जाता। इससे पहले एक परिवार को अदालत ने आदेश दिया था कि बेटा वयस्क होने तक भरण-पोषण का हकदार है और बेटी रोजगार मिलने या शादी होने तक, जो भी पहले हो, भरण-पोषण की हकदार है।

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