Wednesday, 27 October 2021

सवाल सीबीआई की साख का

सीबीआई डायरेक्टर सुबोध कुमार जायसवाल ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया है, उससे न केवल इस जांच एजेंसी के कामकाज की मौजूदा स्थिति स्पष्ट होती है बल्कि उन अड़चनों का भी पता चलता है जिनका इसे सामना करना पड़ता है। बता दें कि एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की बैंच ने तीन सितम्बर को कहा था कि सीबीआई चीफ एजेंसी के कामकाज का पूरा ब्यौरा पेश करें ताकि यह अंदाजा हो सके कि पिछले 10 वर्षों के दौरान मामले दर्ज करने और उन्हें सुलझाने के लिए एजेंसी कितनी कामयाब रही है। हलफनामे में सीबीआई ने दावा किया है कि अपराधियों के खिलाफ फौजदारी मामलों में 65 से 70 प्रतिशत केस सजा में तब्दील हुए हैं। यह दर अगले साल तक 75 प्रतिशत तक चली जाएगी। ज्यादा सटीकता से कहा जाए तो 2011 से 2014 तक कन्विकशन रेट 67 प्रतिशत से 69 प्रतिशत तक पहुंचाई जा सकी, उसके बाद 2015 में अचानक यह गिरकर 65.1 प्रतिशत पर आ गई, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए 2020 में 69.8 प्रतिशत तक आई। साल 2015 में आई इस अचानक गिरावट की वजहें साफ नहीं हो पाईं। लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि सीबीआई चीफ इसे अगले साल 75 प्रतिशत तक ले जाने का इरादा रखते हैं। उसने कहा कि पुराने दिशानिर्देश के स्थानों पर नए दिशानिर्देश जारी किए गए जिससे सीबीआई के लिए ऊपरी अदालतों में अपील दायर करने एवं उन पर नजर रखने से संबंधित विषयों पर निगरानी पर जोर दिया गया। सीबीआई ने कहा कि फिलहाल आठ राज्योंöपश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा छह के तहत सीबीआई को दी गई आम मंजूरी वापस ले ली है जिससे मामले दर मामले पर इन राज्यों से सहमति प्राप्त करने में वक्त बहुत लग जाता है और यह त्वरित जांच के रास्ते में रुकावट है। सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता मोहम्मद अलताफ मोहंद और शेख मुबारक के मामले में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा है। यह अपील 542 दिन के विलंब से दायर की गई थी। बहरहाल सीबीआई का कन्विकशन दर के मौजूदा आंकड़े भी कम नहीं कहे जा सकते। खासकर जब एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़ों के मुताबिक आईपीसी के तहत दर्ज किए गए मामलों में कन्विकशन रेट 2020 में 59.2 प्रतिशत ही रहा है। विशेषज्ञ के मुताबिक यह स्पष्ट नहीं है कि हलफनामे में कन्विकशन रेट तय करने का आधार ऊपरी अदालतों के अंतिम निर्णय को बनाया गया है या निचली अदालतों के शुरुआती फैसलों को? हलफनामे में सीबीआई ने अदालतों से स्टे ऑर्डर जारी किए जाने और कई राज्यों द्वारा सीबीआई को मिली जांच करने की आम इजाजत वापस लिए जाने जैसी अड़चनों का भी जिक्र है, जो कुछ हद तक जायज है। सीबीआई पर आमतौर पर आरोप लगता है कि वह मौजूदा सरकार के आदेशों पर काम करती है। एजेंसी को तो यहां तक कहा गया है कि यह पिंजरे में बंद तोता है। जिस तरह से कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सरकार के इशारे पर यह एजेंसी अपना रुख तय करती है। वह इसकी साख बनने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। अकसर मांग की जाती है कि एजेंसी को स्वायत्त बनाना चाहिए पर कटु सत्य यह है कि कोई भी सरकार चाहे किसी पार्टी की हो, यह करने को तैयार नहीं है।

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