Saturday, 9 October 2021
कश्मीर की बेटी ने दी आतंकियों को खुली चुनौती
कश्मीर में धीरे-धीरे अमन-चैन का माहौल लगता है कि आतंक के सौदागरों को रास नहीं आ रहा। अब आतंकी संगठनों की हताशा स्पष्ट नजर आने लगी है। मंगलवार शाम को आतंकवाद की तीन दुस्साहसिक वारदातों ने सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ा दी है। कश्मीर लौटने की उम्मीद लगाए पंडित भी इनसे कांप उठे हैं। श्रीनगर और बांदीपोरा में एक से डेढ़ घंटे में हुए तीन अलग-अलग आतंकी हमलों में तीन नागरिक मारे गए। श्रीनगर में पिछले चार दिनों में इस तरह के कम से कम पांच हमले हुए हैं। हमलों में मारे गए लोगों में श्रीनगर के जाने-माने दवा बिकेता माखन लाल बिंद्रू, सड़क किनारे रेहड़ी वाले वीरेंद्र कुमार पासवान और एक टैक्सी स्टैंड यूनियन के अध्यक्ष मोहम्मद शफी लोन शामिल हैं। श्रीनगर में मंगलवार सुबह आतंकियों द्वारा मारे गए माखन लाल बिंद्रू के आवास पर बुधवार सुबह से ही लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हर एक इस शोक में शामिल होना चाह रहा था। बुधवार को उनके अंतिम संस्कार से पहले उनकी बेटी श्रद्धा बिंद्रू ने पिता की हत्या करने वालों को खुली चुनौती देते हुए कहा कि उनके पास बंदूक है तो मेरे पास भी पिता का दिया शिक्षा का हथियार है। श्रद्धा बिंद्रू ने कहा कि जिस किसी ने मेरे पिता को गोली मारी है, मैं उसे चुनौती देती हूं। वो मेरे सामने आए। राजनेताओं ने तुम्हें गोली और पत्थर दिए हैं तो मेरे पिता ने मुझे शिक्षा दी है। तुम बंदूकों और पत्थरों से लड़ना चाहते हो? यह कायरता है। सभी नेता तुम्हारा इस्तेमाल कर रहे हैं... आओ लड़ना है तो शिक्षा को हथियार बनाओ। मैं आज एसोसिएट प्रोफेसर हूं, मैंने शून्य से शुरुआत की थी। मेरे पिता ने एक साइकिल पर शुरुआत की थी। मेरा भाई प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ हैं। मेरी मां तक दुकान चलाती हैं... यह हमें माखन लाल बिंद्रू ने बनाया। मैं हिन्दू हूं... मगर मैंने कुरान पढ़ी है। कुरान कहता हैöतुम एक आदमी को मार सकते हो, मगर उसके जज्बे को नहीं मार सकते। माखन लाल बिंद्रू का जज्बा भी जिंदा रहेगा। मेरे पिता एक योद्धा थे, हमेशा कहते थेöमैं तो काम करते-करते ही मरूंगा। श्रीनगर में कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंद्रू की हत्या ने एक बार फिर घाटी में कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा का सवाल खड़ा कर दिया है। बिंद्रू की हत्या इस तरह की पहली घटना नहीं है। जनवरी 2021 से अब तक जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग जिलों में कम से कम पांच कश्मीरी पंडितों व गैर-स्थानीय लोगों की हत्या हो चुकी है। इनमें राजनीतिक कार्यकर्ता, पुलिस कर्मी और कारोबारी शामिल हैं। इन सभी हत्याओं को जोड़ने वाली बात यही है कि सभी आतंकवादियों के निशाने पर होने के बावजूद लंबे समय से घाटी में रह रहे हैं। दरअसल घाटी में सक्रिय आतंकी संगठनों पर चौतरफा शिकंजा कस चुका है। सबसे बड़ी मुश्किल उन्हें स्थानीय लोगों से पहले जैसा समर्थन न मिल पाने की वजह से पैदा हो रही है। पहले उन्हें स्थानीय लोग संरक्षण देते थे, अगर कभी सुरक्षा बल उन्हें पकड़ने के लिए घेराबंदी करते थे, लोग उन्हें रोकने के लिए कवच की तरह खड़े हो जाते थे। अब वैसा नहीं होता। स्थानीय कश्मीरी भी समझ चुके हैं ]िक उनका मुकाबला आतंक से नहीं, मुख्यधारा में शामिल होकर विकास, तरक्की, शिक्षा से है। हुर्रियत के नेता और कट्टरपंथी सलाखों के पीछे हैं। ऐसे में पाकिस्तान और उनके पिट्ठू संगठनों की हताशा सामने आ रही है। आतंकियों की खीज व हताशा साफ नजर आने लगी है।
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