Tuesday, 12 October 2021

एयर इंडिया की घर वापसी

चार साल की जद्दोजहद के बाद कर्ज में डूबी सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया को न केवल नया खरीददार मिला है बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण यह बात है कि टाटा समूह के पास जाना एयर इंडिया की 68 साल बाद घर वापसी है। एयर इंडिया की बिक्री शायद इसलिए आवश्यक हो गई थी, क्योंकि उसके घाटे से उबरने के कहीं कोई आसार नहीं थे। एक लंबे समय से सरकार उस पर धन व्यय कर रही थी, लेकिन वह घाटे से बाहर आने का नाम ही नहीं ले रही थी। प्रसिद्ध उद्योगपति जेआरडी टाटा ने वर्ष 1932 में टाटा एयर सर्विसेज नाम से विमानन कंपनी शुरू की थी, लेकिन 1953 में भारत सरकार ने एयर कारपोरेशन एक्ट पास कर टाटा सन्स से उसका मालिकाना हक खरीद लिया था। वर्ष 1962 में इसका नाम एयर इंडिया हुआ और सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी उड्डयन क्षेत्र में देश की शान थी। शायद यह गलत कदम था। इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि उस समय यह एयरलाइन दुनिया की प्रमुख उड्डयन कंपनियों में शामिल थी। दुर्भाग्य से उस समय के हमारे शासक इस सोच से ग्रस्त थे कि सब कुछ और यहां तक कि उद्योग-धंधे भी सरकार को चलाने चाहिए। इस सोच ने कुल मिलाकर निजी क्षेत्र को हमसे दूर कर दिया, रही-सही कसर कोटा-परमिट राज ने पूरी कर दी। एयर इंडिया के टाटा समूह के पास जाने का फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है। यह घटनाक्रम सिर्फ इतना ही नहीं है कि लगातार कर्ज में डूबती एक एयरलाइंस को जीवन दान मिला है। यह इंडिया और इंडिया के भीतर के हवाई सफर करने की काया पलटने वाली है। टाटा के आने से एयर इंडिया की छवि उम्मीद की जाती है बदलेगी और भारत की छवि भी निखरेगी। टाटा की पहली चुनौती इस इंटरनेशनल एयरलाइंस को नई लीडरशिप और कुशल मैनेजमेंट देने की है। इसके लिए जो नॉलेज, पेशन और पैसा चाहिए वह सब टाटा के पास है। एक कमजोर एयर इंडिया देश की प्राइवेट एयरलाइंस को कोई प्रतिस्पर्धा नहीं दे पा रही थी। अब प्राइवेट सैक्टर की एयरलाइंस को भी बदलना पड़ेगा, दुनिया की कई मंजिलें हैं, जहां भारत से एयर इंडिया के विमान ही जाते हैं। दरअसल सरकार ने संसद को बताया था कि अगर एयर इंडिया बिक नहीं पाती, तो इसे बंद करना ही एकमात्र उपाय था। ऐसे में देखें तो देर से ही सही पर बदहाल एयर इंडिया को टाटा समूह जैसा बेहतर खरीददार मिला है। इससे विमानन के क्षेत्र में खुद टाटा समूह की स्थिति मजबूत होगी, जो पहले से ही सिंगापुर एयरलाइंस के साथ विमानन सेवा विस्तारा का परिचालन कर रहा है। इस सौदे का फायदा विस्तारा को व्यापक रूप देने में हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एयर इंडिया का निजीकरण देश में उद्योगीकरण की बदलती तस्वीर और नीति-नियंताओं की बदलती प्राथमिकताओं के बारे में भी बताता है। टाटा समूह को वैसे भी इस समय विस्तारा और एयर एशिया के संचालन का अच्छा-खासा अनुभव है। एक तरह से टाटा के पास अब तीन एयरलाइंस हो गई हैं। यह तो भविष्य ही बताएगा कि टाटा प्रबंधन कैसे एयर इंडिया को फिर से पटरी पर लाता है, लेकिन यह संतोषजनक है कि सरकार ने इस कंपनी के कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखने का आश्वासन दिया है।

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