Wednesday 20 October 2021

कश्मीर जन्नत नहीं, यह मौत का घर है

कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का नया चैप्टर है। इस महीने टारगेट किलिंग की वारदातों को अंजाम देने के लिए आतंकी नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। वारदात से पहले वह सॉफ्ट टारगेट की पूरी रेकी कर रहे हैं। इसमें हाईब्रिड आतंकियों के साथ ओवर ग्राउंड वर्पर को भी लगाया जा रहा है। पांच अक्तूबर को श्रीनगर के स्कूल में परिचय पत्र देखने के बाद सिख महिला प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और जम्मू के हिन्दू शिक्षक दीपक चंद की आतंकियों ने हत्या की थी। कुलगांव में रविवार को दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने धान कटाई के लिए मजदूर खोजने के बहाने को हथियार बनाया। सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि टारगेट किलिंग के पीछे सॉफ्ट टारगेट की मुकम्मल रेकी प्रमुख वजह है। आतंकी कई दिनों तक सॉफ्ट टारगेट की रेकी कर उसके बारे में पूरा ब्यौरा जुटा रहे हैं। उन्हें यह अच्छी तरह पता होता है कि कब और किस वक्त हमला करना मुफीद होगा। इस महीने हुई सभी टारगेट किलिंग की जांच में यह बात सामने आई है कि आतंकी हमलावरों ने अपने टारगेट की पूरी तरह जानकारी हासिल की थी। श्रीनगर स्कूल में हमला, कश्मीरी पंडित दवा कारोबारी की हत्या या फिर कामगार मजदूरों की हत्या हो सभी यह दर्शाती हैं कि आतंकियों को पता था कि टारगेट मौजूद है और हमले का उपयुक्त समय है। घाटी में एक के बाद एक हत्याओं से खौफजदा प्रवासी श्रमिक घाटी छोड़कर जम्मू पहुंचे। निराश श्रमिकों ने कहा कि सुना था कि कश्मीर जन्नत है, लेकिन यह हमारे जैसे गरीबों के लिए तो मौत का घर है। कश्मीर संभाग के बड़गांव में ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले पति-पत्नी गोविंदा और राजेश्वरी ने कहा कि सुबह छह बजे जम्मू पहुंचे थे। आठ महीने से वहीं काम कर रहे थे, लेकिन आतंकी हमलों से डर गए हैं। ठेकेदार ने भी हालात ठीक होने तक चले जाने को कह दिया। बिहार के सीतापुर के श्रमिक मोहन भगत ने कहा कि घर वाले चिंतित हैं। पहले हमें डर नहीं लगता था। इस बार हालात डराने वाले हैं। ठेकेदार ने भी बिना पैसे के भेज दिया। आठ महीने में जो कमाया वह ठेकेदार के पास ही रह गया। एक अन्य श्रमिक जयचंद ने कहा कि पांच साल से लगातार कश्मीर में ईंट-भट्ठे पर काम करता हूं। डर तो हमेशा रहता था, लेकिन इस बार स्थिति काफी अलग है। कई दिन तक एक कमरे में बंद रहे। 2019 में अनुच्छेद 370, 2020 में लॉकडाउन और 2021 में टारगेट किलिंग की दहशत ने श्रमिकों को घाटी से घर लौटने को मजबूर कर दिया है। घाटी में करीब पांच लाख प्रवासी श्रमिक हैं जो निर्माण संबंधी गतिविधियों से लेकर खेती व अन्य स्थानीय उद्योगों में काम करते हैं। ऐसे में अगर बड़ी संख्या में कामगार अपने राज्यों में लौटने लगे तो कश्मीर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन महत्वपूर्ण अंश है। घाटी में लगातार हो रहे आतंकी हमलों को हताशा में किए गए हमले बता कर या सिर्प पाकिस्तान पर ठीकरा फोड़कर पल्ला झाड़ने से काम नहीं बनेगा। अगर सेना के आतंकवाद निरोधी अभियानों के बावजूद आतंकी सरेआम हत्याएं करने में कामयाब हैं तो कहीं न कहीं सुरक्षा संबंधी रणनीति पर सवाल जरूर खड़े होंगे। यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार तत्काल ऐसे कदम उठाए जिससे प्रवासियों के भीतर पनपा असुरक्षा का भाव खत्म हो और उन्हें घर लौटने को मजबूर न होना पड़े।

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