Saturday, 23 October 2021

उत्तराखंड में काल बने बादल

मानसून की विदाईं के बाद भीषण बारिश से हो रही जानमाल की क्षति बेहद चिंताजनक है। चूंकि जलवायु परिवर्तन का असर साफ-साफ दिखने लगा है, ऐसे में अगर अब भी पर्यांवरण मानकों के प्रति गंभीरता न दिखाईं गईं तो बहुत देर हो जाएगी। बारिश से प्रभावित उत्तराखंड में बुधवार को छह और शव बरामद किए गए। इससे राज्य में मरने वालों की संख्या बढ़कर 52 हो गईं जबकि उत्तर प्रदेश, सिक्किम और उत्तरी बंगाल में भी मूसलाधार बारिश हुईं। इस कारण हुए भूस्खलन से गंगटोक को देश के शेष हिस्सों से जोड़ने वाली सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग 10 को बंद करना पड़ा। उत्तराखंड में बारिश से जुड़ी घटनाओं में 17 लोग घायल हो गए और एक ट्रैकिग टीम के 11 सदस्य समेत 16 लोग लापता हो गए। राज्य का वुमाऊं क्षेत्र जो बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है में भी 46 मकानों के क्षतिग्रस्त होने के मामले सामने आए हैं। नैनीताल में सबसे अधिक 28 लोगों की मौत हुईं है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्थिति का जायजा लेने के लिए वुमाऊं के उधम सिंह नगर और चंपावत जिलों के प्रभावित इलाकों का दौरा किया। उन्होंने सड़क मार्ग से यात्रा की क्योंकि उनका हेलीकाप्टर तकनीकी कारणों से हल्द्वानी से उड़ान नहीं भर सका। चार धाम यात्रा आंशिक रूप से फिर से शुरू हुईं जिससे तीर्थ यात्रियों को केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री जाने की अनुमति मिली। हालांकि बद्रीनाथ की यात्रा फिर से शुरू नहीं की जा सकी क्योंकि मंदिर की ओर जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग कईं जगहों पर भूस्खलन से अवरुद्ध हो गया है। हिमाचल प्रदेश में चितवुल की यात्रा पर आए आठ ट्रैक्टर और उनके साथ आए तीन रसोइये लापता हो गए हैं। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) ने कहा कि उसने उत्तराखंड के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से 1300 से ज्यादा लोगों को बचाया है और बचाव दल की टीमों की संख्या बढ़ाकर 15 से 17 कर दी है। बेमौसम बारिश से फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है। स्थानीय लोगों को इस बारिश के कारण नुकसान की भरपाईं में समय लगेगा जबकि पंसे हुए अनेक पर्यंटकों को भी खतरे से बाहर निकाला गया है। पहाड़ की नदियां उफान पर हैं। तराईं में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं और उत्तर प्रदेश के कईं जिलों में बाढ़ का अलर्ट जारी कर दिया गया है। ऐसे में राज्य की चार धाम सड़क परियोजना समेत उन तमाम विकास योजनाओं के मामले में सतर्वता से आगे बढ़ने की जरूरत है जो पर्यांवरण दृष्टि से नाजुक है। जलवायु परिवर्तन का असर साफ-साफ दिखने लगा है। ऐसे में अब जब भी अगर पर्यांवरण मानकों के प्रति गंभीरता न दिखाईं गईं तो बहुत देर हो जाएगी।

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